Categories
कविता

फांदा मा परगे किसानी

फांदा मा परगे किसानी
नुन मिरचा अउ बासी भात
सुते नई हंव कतको रात
खेती नई हे बहुत असानी
फांदा मा परगे किसानी

रगड के हमन बुता करेन
बुता करके बिमार परेन
ए बछर काबर बरसत नई हे पानी
फांदा मा परगे किसानी

कोन समझ ही पीरा ला
कइसे भगई धान के कीरा ला
हमर ले होगे नदानी
फांदा मा परगे किसानी

किसानी होगे दुखदाई
फलत फुलत हे रूखराई
सावन के होगे मनमानी
फांदा मा परगे किसानी

मुड धरके बइठे हन
भुख मा हमन अइठे हन
पीरा हरा दुर्गा रानी
फांदा मा परगे किसानी

कोमल यादव
मदनपुर खरसिया
9977562133