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गज़ल

ग़ज़ल : गुलेल

हम बेंदरा अन, उन मंदारी लागत हावैं,
धरे गुलेल हे, बड़े सिकारी लागत हावैं।

हमरे इहाँ कौनो पूछइया हावै काँहाँ,
हम बोबरा उन बरा-सोंहारी लागत हावैं।

हाथ मा जेकर राज-पाठ ला सौंपे हम मन,
उन राजा कहाँ, बड़े बैपारी लागत हावैं।

जउन मनखे हर सीता जी के हरन करीन हे,
आज मंदिर के बड़े पुजारी लागत हावैं।

जुग के कोढ़िया, ठलहा किंजरत रहिस जउन,
खरतरिहा बनगे धरे तुतारी लागत हावैं।

बलदाऊ राम साहू

1. बंदर 2. स्वादहीन पकवान 3. बड़ा-पुरी 4. कामचोर 5. जिसके पास काम नहीं (निठल्ले) 6. घुम रहे थे 7. काम करने में तत्पर 8. नुकीली कील वाले लाठी

One reply on “ग़ज़ल : गुलेल”

फोटो डॉ सिया राम साहू जी का लग गया है।

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