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कविता

मोर गांव गवा गे

अब कहा पाबे जी? जुन्ना गांव गवां गे।
बिहनिया के उगती सूरज, अउ संझा के छाव गवां गे।

दाई के सुग्घर चन्दा लोरी, लईका के किलकारी गवां गे।

माटी के बने घर कुरिया, अंगना के नाव गवां गे।
बखरी म बगरे अमली-आमा के रूख सिरागे।

गाय-गरुवा ह किंजरत हे रददा म,
अउ कुकुर ह घरो-घर बँधागे।

कहा पाबे जी संगी? मोर सुग्घर गांव गवां गे।

रुख रई सिरागे, तरिया नदिया ह सुखागे।
चिरई-चुरगुन के चहकना, कुकरा के बांग गवां गे।

गांव-गांव म बने चउक-चौराहा,
घर-कुरिया के चौरा सिरागे।

गांव के बजरहा-हाट, के अब रौनक गवां गे।
कहा पाबे जी संगी? मोर सुग्घर गांव गवां गे।

सियान मनखे के कहानी, सियानीन के गोठ गवां गे।
बिहनिया ले राम-राम के नाव बोलईया नंदागे।

गाड़ी म फान्दे बइला, नांगर म जोते खेत गवां गे।
अउ मशीन मन घरो घर छा गे।

छानी में ओइरे खपरा माटी के कुरिया सिरागे।
गोबर म लिपाये अंगना अब कहा पाबे।

कईसे करव जी संगी मोर सुग्घर गांव गवां गे।

अनिल कुमार पाली
तारबाहर बिलासपुर छत्तीसगढ़।
प्रशिक्षण अधिकारी आई टी आई मगरलोड धमतारी।
मो.न.-7722906664,7987766416
ईमेल:- anilpali635@gmail.com
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