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व्यंग्य

गरीब बनो अउ बनाओ

नवा बछर के बधाई म मोर एकलौता संगवारी जब ले केहे हे – ‘मंगलमय’। मंगलवार घलो इतवारमय लागत हे। इतवार माने सब छोड़छाड़ के, हाथ गोड़ लमाके अटियाय के दिन। फुरसत के छिन। अच्छा दिन।जब ले सुने हंव गरीब नामक जीव के उद्धार बिल्कुल होवईयाच हे, संडेवा काड़ी सहिन शरीर के छाती मुस्कुल म बीस पचीस इंच होही, फूलके छप्पन इंच होगे हवय।
अब देखव न हर कोई गरीबेच के सेवा ल अपन धरम मान के तन मन लगाके धन बनात हें। जब ले ए दुनिया के सिरजन होय हे तउन दिन ले ए बुता ह चलत आवत हे। आने आने बेरा म आने आने बलवान पहलवान खिंचत हेचकारत उठाय के, रेंगाय के उदिम करत आवत हवंय, फेर वाह रे जीव! एक कदम आघु तनी जाय बर नी उसाले। उल्टा दू कदम पीछु घुच जावत हे। पेट भीतर ले अमर होके आय जीव ल मारे के, भगाय के सिरीफ ढोंग होवत हे। हर बछर दसराहा म रावण बध के ड्रामा सहिन। अब रावण हर मनखे रिहीस हे त मुस्कुल से छै ले सात फीट रिहीस होही, तइहा जमाना ले मारत आवत हवय, वो हिसाब म ओकर नानकुन केस तको नी बांचतिस। फेर ए कलजुग म तो पचास-पचास, सौ-सौ फीट के कद काठी वाला रावण संवहत किंजरत बुलत दिखत हाबे।
इही ड्रामा म गम्मतिया मन आनी बानी संवागा रचाके हमन ल भुलियारे हवय। किसम किसम के खेल तमासा ल देखके मनखे मोहाय भकवाय हांस हांसके ताली बजावत हे।




फेर आजकाली गरीब नामक जीव के रुतबा ल देखके कुबेर महराज घलो गरीबी रेखा प्रमाण पत्र बर पंचायत के घेरी बेरी चक्कर लगावत हवंय। वहु हर अपन धन संपत्ति ल राखे धरे बर ठौर ठिकाना के जुगाड़ म हवय। कहुं मेर फोकट म बेंक खाता खुल जही ते थोर बहुत ल लुकात बने तिसने। एति बेंक वाला मन घलो तो लुलवात हे गरीब के सेवा करे बर। बिना खाता के सेवा करत नइ बने। अमीर नामक जीव बर ए दुनिया म कहुं मेर ठउर नइ हे। जउन ल भी इहां जिनगी पहाना हे गरीब बने ल परही। दाऊ गौटिया मन के कोनो इज्जत नइहे अब। गरीब मन के जोरदार पुछपरख अउ मान सनमान ल देखके हर कोई के मन गरीब कहाय बर मचलत हे। एकर बर अच्छा अच्छा योजना घलो चलत हवय। अपन किसमत ल संहराय के गंज मउका हाथ लगे हवय।




बिना धान के कोठी बनवाले, राखे धरे बर एकात काठा खोंची नइहे तभो ले कोन्हो ल मांग जाच के डार। मुसवा मन बर तो चाही न। नान्हे नान्हे मुसवा के बड़े बड़े पेट।आज के जमाना के मनखे बर एक अउ सिरिफ एक सुत्रीय नारा हे ‘गरीब बनो अउ बनाओ’
ए धरती म सरग, सरग जइसे सुख सुविधा, आनंद मंगल के फूल फूलत हे, एकर महक ल गरीबहा नाक मे सुंघे जा सकत हे। अतेक बेवस्था, अतेक जानकारी ल जान के घलो गरीब नइ बनेव या गरीब नइ बनाय त ए मानुष जोनी म आना अकारथ समझो।
इही परम ज्ञान ल, गुरूमंत्र मानके कई झिन साधक मन जी जान देके भीड़े हे ए नीक बुता म। अउ ए हमर बर बड़ गौरव के बात आय। अपन काम अउ ईमान के प्रति इंकर लगन ल देखके अइसे लागत हे, देश गरीब ले महागरीब के परम पद ल जरूर पाही। इंहा के जनमानस के सहयोगी सुभाव अउ पंदोली देय बर आगु ले तियार बइठे मशीनरी के किरपा ल देखत मन महागरीब के रद्दा म दउड़े बर कुलबुलावत हवय। अइसने सबके अपार मया दुलार अउ सहयोग सरलग मिलत रइही त हमुमन ए गरीब नामक जीव के नाव ल एक दिन जरूर जगाबो। अउ ए देश ल ‘गरीब रत्न’ के महा गहना ले सिंगारबो।

ललित नागेश
बहेराभाठा (छुरा)
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