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गरीबा : महाकाव्य (दूसर पांत : धनहा पांत)

गरीबा

महाकाव्य

नूतन प्रसाद

2. धनहा पांत
ठेलहा बइठे मं तन लुलसा-ऊपर ले बदनामी ।
काम करे मं समय व्यवस्थित-ऊपर मिलत प्रशंसा ।।
काम के पूजा करिहंव जेकर ले होथय जग आगे ।
महिनत मं तन लोहा बनथय-बनन पाय नइ कामी ।।
समय हा रेंगत सुरधर-सरलग, मौसम घलो पुरोथय काम
ओसरी पारी पुछी धरे अस, वर्षा ऋतु-जड़काला-घाम.
नेत लगा-अब पानी गिरगे, अड़बड़ कृपा करिस बरसात
अपन बुता मं किसान भिड़गें, फुरसुद कहां करे बर बात!
छोड़ बिस्कुटक कथा कंथली, नांगर ला सम्हरात किसान
बइला मन ला मसक खवा अब, जावत खेत छिते बर धान.
गीस गरीबा अपन खेत मं, हरिया धर के छीतत धान
नांगर फांद-रेंगावत कोरलग, चलत माल मन छाती तान.
हो हो, तत तत, डिर डिर, चच चच, देत गरीबा रोंठ अवाज
दूुसर डहर के कुछ सुध-बुध नइ, काम पुरोय के करथें फिक्र.
बेर लुकाय हवय बादर मं, कतका टेम ज्ञात नइ होत
मंझन होगिस तेकर गम नइ, अपन काम भर मं बिपताय.
अकता बेर जोंत नांगर ला, आत गरीबा खुद के गेह
सनम के दद्दा नाम फकीरा, तेहर मिलिस देखावत स्नेह.
कहिथय -“बिरता रुप बदलथय, कभू रहय नइ एक समान
जे लइकुसहा तेन युवक हे, अउ जवान हा बुढ़ऊ सियान.
तंय बालकपन मं इतरवला, काजर पोत देस मुंह मोर
लेकिन अब हस अड़िल जवनहा, महिनत करथस मरत सजोर.”
मंदरस भाखा कथय गरीबा -“तंय बढ़ाय प्रेम-अमृत सींच
तोरेच आशीष ले मंय उत्तम, कमल फूल तरिया के बीच.”
“बाबू, तोर आचरण उत्तम, बात के उत्तर निश्छल देत
धान के बीज कहां ले पाये, कोन धनी हा बाढ़ी दीस ?”
“अपन जांग का खोल देखावव, का बतांव जीवन के हाल !
बड़ मुस्कुल मं बांच पाय हम, झेले हवन बिपत-अंकाल.
धनवा तिर ले ऋण उठाय हम, ओकर एवज देय हन खेत
फेर उधार धान लाने हंव, तभे भराइस भूमि हा नेत.”
“एक जानबा ठीक किहिस हे- कृषक हा ऋण मं लेवत जन्म
जीवन भर कर्जा मं जीयत, मरे के छिन मं ऋण हा साथ.
पर तंय ठीक काम जोंगे हस, छींचे हवस खेत भर धान
विपत हा आगू छेंकत रहिथय, पर मनसे हा बढ़य सदैव.”
दुनों सुहातू गोठला करके, ओहिले चलिन ओ तिर ला छोड़
अपन मकाम गरीबा अमरिस, धोइस साफ चिखलहा गोड़.
कोठा गीस माल मन के तिर, पयरा भुंसा ला धर के साथ
धन मन ला पुचकार खवाइस, हलू-हलू सारिस एक सांस.
बइला मन हा बिधुन हो – खावत, मुड़ी हलात – पुछी छटकार
कोंड़हा नून मिले जल पीयत, पागुर भांजत-लेत डकार.
अब ओ ठउर गरीबा त्यागत, ओकर पेट मरत हे भूख
सुक्सा साथ भात ला हेरिस, पाटत पेट जतिक मन साद.
एकर बाद हाथ धोइस सरका भोजन के थारी ।
सुखी नाम एक मनसे आइस बचपन के संगवारी ।।
सुखी कथय -“तंय हवस निफिकरी, तोर चलत हे सरलग काम
लेकिन मोर बुता हा अंड़गे, तेकर कारण नींद हराम”
पीढ़ा रख गोठियात गरीबा- “यहदे तीर सुखी आ बैठ
कइसे फिफिया आय इहां तक, का कारण हस दुखी उदास?”
“अपन बिखेद बतात तोर तिर, झन हंस खुल खुल सुनते साठ
सुर के साथ खेत ला जोंतत, नांगर ला जरकुल धर लीस.
मेड़ मं हावय पेड़ बहुत ठक, ओकर जर फइले हे खेत
जर मं हल के नास हा फंसगे, बइला मन आगुच तन जात.
सेवर नांगर रट ले टूटिस, कइसे ओहिले काम बजांव !
यदि उबरत तब मदद ला कर दे, धर आसरा तोर तिर आय”
मित्र के दुख सुन कथय गरीबा – “मोर रहत तंय झन कर हाय
जउन वस्तु आवश्यक तोला, बिन ढचरा मंय देहंव जल्द.
गुरतुर भाव चिरई के बीच मं, फिर हम बुद्धिमान इन्सान
एक दुसर के बिपत ला टारन, झनिच करन पर के हिनमान.
तोला आज जिनिस के जरुरत, तब मंय हा सहाय कर देत
कल तंय मोर सहायता करबे, इसने होत आदान प्रदान.”
चोक्खा नांगर हेर गरीबा, सुखी के खांदे पर रख दीस
सुखी के मांग हा पूरा होगे, उहां ले निकलिस हे तत्काल.
आगू मिलिस वृद्ध सुद्धू हा, बारी ला रुंधत कर यत्न
साबर मं जमीन ला कोड़त, अंदर तक गड्ढा बन जात.
तंह बबूल के डाल ला खोंचत, गड्ढा मं मट्टी भर देत
मट्टी ला साबर मं धांसत, होत डाल मन अंड़ के ठाड़.
बांस ला दू फलका मं चीरत, डाली मं ओला लपटैस
रस्सी मं कड़कड़ ले बांधिस, होगे सफल रुंधई के काम.
ओकर श्रम ला सुखी ला देखिस, तंहने कहिथय भर आश्चर्य-
“तोर देंह हा थके चुराचुर, आंखी घलो होय कमजोर.
उम्र बचे हे बस अराम बर, जादा महिनत ला झन जोंग,
अगर बुता बर जिद्द धरे हस, अउ कर सकत हवस कल ज्वार”
सुद्धू कथय -“कोन हा जानत, कल के पूर्व निकलगे जान !
कल हा अंधरी गुफा मं छुपगे, ओकर पर झन करव यकीन.
वर्तमान ला महत्व देवव, प्राप्त वक्त के सद उपयोग
तभे मंहू मिहनत बजात हंव, वक्त के चिड़िया झन उड़ जाय.”
“तोर नीति अपनाय के लाइक, मगर मोर हे एक सलाह-
करतिस काम गरीबा हा अब, ओकर खांद डार सब भार.”
“करत गरीबा बुता शक्ति तक, ओहर दबे काम के भार
जीवन भर जांगर पेरे हंव, आज घलो करथंव कुछ काम.
तभे देंह मं फूर्ति लगत-मंय बइठ खांव नइ खाना ।
तभे अटकिहय काम-बुताही ए जीवन के बाती ।।
“तंय बुजरुक रटाटोर कमावत, तब मंय हंव भरपूर जवान
तोर प्रेरणा ले उत्साहित, महिनत ला करिहंव प्रण ठान”
सुखी हा अपने रद्दा रेंगिस, सोनसाय निकलिस ए ओर
फइले रिहिस बबूल के डाली, काँटा हा फइले सब ओर.
ओकर गोड़ चभक गिस कांटा, सोनू दरद मं करथे हाय
कांटा ला हेरे बर सोचिस, पर असफल चल दीस प्रयास.
मण्डल हा सुद्धू पर बिफड़िस – “दरद बढ़ाय धरे हस राह
कांटा ला बगराय सबो तन, ताकि मरय मनसे अनजान.
यद्यपि तंय कांटा गड़ास नइ, तब तंय कहां ले पाबे दोष
बिगर जीव के बपुरा कांटा, फोकट हो जाहय बदनाम.
पर मंय हा दिग्भ्रमित होंव नइ, समझत खूब कपट के चाल
पैर मं कांटा टूटिस रट ले, लहुट जहय गुखरु के घाव.
मोर पांव हा पंगु हो जाहय, चले फिरे बर मंय असमर्थ
मंय स्पष्ट जवाब मंगत हंव – का कारण दुश्मनी उठाय?”
सुद्धू कथय -“भड़क झन मण्डल, तर्क वितर्क के वन झन घूम
तोर मोर शत्रुता कहां कुछ, नइ पहुंचांव दर्द तकलीफ.
तोर पांव मं कांटा गड़ गिस, ओहर तो बस धोखा आय
मोर पास चिमटा पिन तेमां, कांटा ला झप देत निकाल.”
सोनसाय के पांव ला राखिस, सुद्धू निज घुटना पर जल्द
पैर मं कांटा घुसे जउन कर, पिन से कोड़ हलावत खूब.
कांटा हिल के ऊपर आइस, चिमटा मं निकाल दिस खींच
अपन हथेली कांटा ला रख, सोनू ला बन नम्र देखात.
कहिथय- “कांटा बाहिर आ गिस, अपन फिकर ला तंहू निकाल
व्यर्थ गोठशत्रुता बढ़ाथय, फइलत अमर बेल कस नार.”
सोनसाय हा कहिथय रोषहा – यद्यपि कांटा हा निकलीस
लेकिन ओकर दर्द शेष अभि, जेहर कभू मिटन नइ पाय.
मंय अहसान तोर नइ मानों, निंदा लइक तोर सब चाल
कुआं गिराके फेर निकालत, ओहर कहां आय उपकार !
ओहर आय बड़े हत्यारा, प्राण हरे बर उदिम उचैस
तइसे दुख पीरा बांटे हस, करिहय कोन तोर तारीफ ?”
सोनसाय हा उहां ले हटगे, आगू बढ़िस थोरकिन दूर
परस आत टपटप ओकर बल, जउन हा हंफरत लेवत सांस.
परस किहिस- “मंय तोला खोजत, तोर एक ठक मोतीखेत
ओमां नांगर चलत रिहिस तब, उहें फकीरा खब ले अैस.
ओहर रेंगत नांगर रोकिस -“एहर आय मोर प्रिय खेत
सोनू के अधिकार इहां नइ, तुम्मन निकल जाव चुपचाप.”
सोनू मानो सोय ले उठगे, कथय झकनका कर के रोष-
“मोतीखेत आय मोरेच बस, कोन कथय दूसर के आय?
अगर फकीरा हक बतात तब, चल तो देखंव ओकर टेस
ओकर नसना टोर के रहिहंव, तभेच मोर चोला हा जूड़.
मंय हा पटवारी तिर जावत उही दबाहय पाती ।
नाप जोख के उही बताहय – कोन करत गद्दारी ।।
सोनू हा पटवारी तिर गिस, स्वार्थ सिधोय चलिस हे चाल-
“शिक्षक अगर करत आमंत्रित, अस्वीकार तभो ले ठीक.
अगर नर्स हा करत नमस्ते, उहू ला ठुकरा सकत बलात
पर पटवारी मन हा चुम्बक, आत तुम्हर तिर बिगर बलाय.
कृषक के भाग्य तुम्हर तिर होथय, नक्शा कंघी लौह जरीब
जिलाधीष अव गांव के तुम्मन, सुनना परत जमों आदेश.”
पटवारी हां हंस के बोलिस- “मोर प्रशंसा झन कर व्यर्थ
मंय अकास मं उड़त गरब कर, अगर काम तब कहि दे साफ.?”
सोनू कथय -“तंहू जानत हस-हवय एक ठक मोतीखेत
ओमां अन्न उपजथय गसगस, नाम धरे तब मोतीखेत.
गीन भृत्य मन धान बोय बर, ओमन उहां करत हें जोंत
तभे फकीरा उंहचे पहुंचिस, काम के बीच पार दिस आड़”
पटवारी दबके अस बोलिस -“मंहू करत हंव शंका एक
मोतीखेत फकीरा के ए, तभे बतात अपन अधिकार.
तोर पास हे भूमि गंज अक, मोती खेत के मोह ला छोड़
एके गोड़ खजूर के टूटत, तब ले चलत सरसरा ठीक.”
सोनसाय हा रुपिया हेरिस, पटवारी ला पकड़ा दीस
कहिथय -“मोर बात ला चुप सुन, मोतीखेत हा उत्तम खेत.
जइसे तन मं आंख हाथ मुड़, यने सुरक्षित हे हर अंग
मगर प्राण के बिना व्यर्थ सब, यने प्राण के बहुत महत्व.
मोतीखेत मोर बर जीवन, ओला तंय कर हक मं मोर
मंय भुंइया के लाभ ला पाहंव, तुम रुपिया के नफा कमाव.”
धन मं होथय नंगत ताकत, जउन कराय बहुत कम मीत
आत्मा ठोकर देथय तब ले- करथय मनसे गलत अनीति.
पटवारी हा कुटिल हंसी हंस, कहिथय- “ककरो पक्ष नइ लेंव
शासन के वेतन खावत हंव, तब चलिहंव शासन के नीति.
तुम “सीमांकन” करा लेव झप, वाजिब तथ्य हो जाहय ज्ञात
मोतीखेत सही मं जेखर, भूमि हा जाहय ओकर हाथ.
एकर साथ बुता तंय ए कर – पंच ला धर के लेगव साथ
कभू कभार उठाहयझंझट, दिहीं पंच मन सही जवाब.”
सोनसाय हा परस ला नेमिस, परस पंच मन ला धर लैस
उहां अैन अंकालू मुटकी, केड़ू घंसिया झड़ी लतेल.
पटवारी ला केड़ू हा कहिथय- “तंय हमला बलाय हस कार
हमर पास का बुता हे आखिर- एकर सही ज्वाप तुम देव ?”
पटवारी हा बोलिस कुछ हंस- “मोतीखेत ला जानत खूब
सोनसहाय फकीरा दूनों, ओकर पर बतात अधिकार.
पर वास्तव मं खेत हा काकर, नाप के बाद हो सकही ज्ञात
तुम्मन हमर साथ में रेंगव, खेत नाप मंय सच कहि देत.
तुम्हर उपस्थिति आवश्यक यदि बाद मं उठत लड़ाई ।
गलत काम ला रोक सकत- अउ न्याय दुहू बन साक्षी ।।
सोनसहाय पंच पटवारी, राह धरिन नापे बर खेत
नक्शा बांस जरीब उंकर तिर, सब झन पहुँचिन मोतीखेत.
उहां फकीरा पूर्व ले हाजिर, घंसिया हा बोलिस फटकार-
“सोनू मण्डल के धरती पर, तंय काबर अधिकार बतात ?”
कथय फकीरा हाथ बजा के- “एकर स्वामी मंय भर आंव
एकर संबंध मं तुम पूछव, मंय दे सकथंव सही जवाब .
इहां के माटी कोन किसम के, एकर मेड़ कतिक अस पेड़
कते फसल हा उत्तम उबजत, छिचना परत कतिक अस खाद ?
यदि सोनू हा दावा मारत, मोर प्रश्न के उत्तर लाय-
कतका लगत धान के बीजा, कतका लगत चना के बीज ?
यदि सोनू सच उत्तर देवत, कर दव बंद नाप के काम
मोतीखेत सौंप मंय देवत, हार जहंव मंय अपने आप.”
सोनू नांग असन फुंफकारिस -“मोर पास हे कतका भूमि
कतका अन धन सोना चांदी, कतका अस हे गरुवा गाय.
मोला एको कनिक ज्ञात नइ, नौकर रखथंय इंकर हिसाब
मंय हा बस अतका जानत हंव, मोतीखेत आय बस मोर.”
पटवारी हा बीच मं छेंकिस -“तुम्मन बहस करो झन व्यर्थ
मंय हा खेत नाप देवत झप, बता देत स्वामी के नाम.”
पटवारी अउ कृषक पंच मन, किंजरत नाप करत हें खार
यद्यपि उहां जरीब घुमत हे, पर निर्णय हा पूर्व के होय.
पटवारी हा नाप के बोलिस- “भाई पंच तुमन सुन लेव
जिंहा भूमि के लड़ई हा उठथय, मंय जाथंव नापे बर भूमि.
वैज्ञानिक के गणना गलती, शिक्षक के सब ज्ञान हा झूठ
लेकिन मोर नाप सच उतरत, तब पटवारी पर विश्वास.
मोतीखेत रहय सोनू तिर उही हा वास्तविक स्वामी ।
इहां ले तुरते जाय फकीरा खेत ला मार सलामी ।।
पटवारी ला किहिस फकीरा -“तंय हा करेस गलत अन्याय
धन मं तोर ईमान बेचा गिस, पद के गरिमा ला बिसरेस.
मोतीखेत के हर कण मोरेच, माटी के सुगंध तक मोर
अपन प्राण ला गंवा सकत हंव, मगर खेत ला तज नइ पांव.”
मुटकी हा फकीरा ला बोलिस -“तंय कानून ला झन ले हाथ
कंघी नक्शा अउ जरीब मन, जमों जिनिस शासन के आय.
पटवारी के निजी वस्तु नइ, जेमां करय कुछुच अन्याय
ओमन मं जइसन हे अंकित, पटवारी फुरिया दिस नाप.
हमूं पंच मन इहां आय हन, दुनों पक्ष ला बांटन न्याय
सीमांकन हा उचित होय हे, हमर आंख हा देखिस साफ”
झड़ी हा फकीरा पर बमकिस- “यदि तंय हा करबे कुछ आड़
जमों पंच मन दण्डित करिहंय, न्यायालय मं खाबे हार.
दस्तावेज पंच पटवारी, बनिहंय साक्षी तोर विरुद्ध
तंय हा मोतीखेत ला तज अब, इहां ले निकलिच जा चुपचाप.”
बहत फकीरा के आँसू हा, खेत के माटी रख लिस हाथ
कलपिस- “तोला मंय माने हंव, सेवा कर- लगाय मंय माथ.
मगर मोर हक ले बिछले तंय, वास्तव मं तंय धोखा देस
तंय धनवन्ता के पुतरी अस, ओकर हाथ मं खुद चल देस.
मंय तोला वाजिब पूछत हंव- कार व्यर्थ चल दिस श्रम मोर
आय कृषक हा तोर मयारु, कब तक भगबे ओला त्याग ?”
बोम फार रो डरिस फकीरा, धथुवा गे होगिस निरुपाय
धरती के पंइया पर लहुटत, अंतस हृदय करत हे हाय.
पूंजीपति मन तिर कंस पूंजी, बिसा लेत कानून नियाव
सोनू के मुंह खुशी मं चमकत, पइसा भर- पर के हक लूट.
सोनू सब नौकर ला बोलिस- “अब कउनो ला झन डर्राव
मोतीखेत मोर हक लग गिस, नांगर ला बिन थमे चलाव.”
सोनसाय हा दांव जीत गिस, नांगर हा रेंगत निर्बाध
सोनू अउ पटवारी लहुटत, हंस हंस बोलत मित्र समान.
उंकर पिछू मं पंच चलत हें, कहां लुवाठ पूछ सम्मान
जहां जुआड़ी हारत सब धन, ओकर होत नमूसी खूब.
हलू अवाज कथय अंकालू -“आज फेर हो गिस अन्याय
दस्तावेज पंच पटवारी, गलत काम मं सामिल होय.
हमर पास नइ हृदय न आत्मा, पाप पुण्य के भय या त्रास
कृषक गरीब हा नंगरा हो गिस, लेकिन हमन द्रवित नइ होय.
चाहे तुम्मन कुछुच कहव जी सोनसाय गरकट्टा ।
मरहा मन के रकत ला चुहकत होवत हट्टा कट्टा ।।
कथय लतेल- “हमूं जानत हन, सोनू के खराब सब नीति
आज फकीरा के हक छीनिस, कल दूसर ला करिहय नाश.
आखिर हम रउती का जोंगन, सोनसाय तिर धन के शक्ति
ओकर सम्मुख निहू पदी अन, होथय हमरेच बिन्द्राबिनास ”
मुटकी बोलिस- “रहव कलेचुप, सोनू हा ओहिले चल जात
यदि चुगली चारी ला सुनिहय, बफल हमर पर करिहय घात.
गांव हा ओकर भूमि हा ओकर, हम जीयत हन ओकरेच छांव
पानी मं रहना हे हर क्षण, कोन मगर ला शत्रु बनाय !”
गीन पंच मन अपन अपन घर, अंकालू गिस खुद के ठौर
दुखिया हा छानी पर बइठे, करत हवय खपरा ला ठीक.
बन गंभीर कथय अंकालू- “छानी पर बइठे हस कार
यदि ऊपर ले तरी मं गिरबे, तोर देह भर परिहय मार ?”
दुखिया किहिस- “सरक गे खपरा, यदि होवत रझरझ बरसात
पानी हा कुरिया मं घुसिहय, पिल पिल मात जहय घर द्वार.
मंय हा छानी ला छावत हंव, ताकि मुंदाय जतिक हे छेद
अइसन मं पानी हा गिरिहय, तब ले घर अंदर नइ जाय.”
“बेटी, काम करत हस उत्तम, पर शंका ब्यापत हे एक-
यदि छानी पर तोला देखत, मनसे मन हा कहहीं काय ?”
“मनसे मन हा इही बोलिहंय- “अंकालू के टूरी एक
ओहर छानी पर बइठिस अउ, करत रिहिस खपरा ला ठीक.
ददा, तंय अड़बड़ झन सोचे कर, मनसे मन हा बोलत काय
मिहनत कर सुख लाभ ला पावन, पर ला देन मदद सुख चैन.”
“मंय हा तोर ले हरदम हारत, तंय बइला ला नहवा लेत
गाय के दूध ला घलो दूहथस, कठिन काम तक करथस पूर्ण.
अच्छा, नीचे तुरुत उतर तंय, मोला लगत भयंकर भूख
जउन पकाय परस मंय खाहंव, सहना कठिन नींद अउ भूख.”
दुखिया हा नीचे उतरिस तंह, पिनकू के मां कोदिया अैस
दुखिया ओकर स्वागत करथय -“मौसी, आज आय तंय ठीक.
मगर काम बिन कोन हा आवत, अगर तोर कुछ अटके काम
मोर पास तंय सच सच फुरिया, तोर जरुरत होही पूर्ण.”
कोदिया बोलिस- “सच पूछत हस, तब बतात मंय निश्छल बात
मोर पास हे एक ठक बखरी, उहां लगाय चहत हंव साग.
मोर पास नइ तुमा करेला, ना बरबट्टी तुरई के बीज
सब तिर पारे हंव गोहार मंय, पर लहुटे हंव रीता हाथ.
हारे दांव तोर तिर आएंव तंय सब साद पुरोबे ।
जउन जिनिस बर इहां आय हंव तिंहिच मदद पहुंचाबे ।।
दुखिया किहिस -“प्रशंसा झन कर, बिगड़ जहय आदत हा मोर
तंय हा साग के बीजा मांगत, तोर हाथ पाहय सब चीज.”
दुखिया हा कोदिया ला संउपिस, सबो साग के ठोसलग बीज
कोदिया किहिस -“बता तंय कीमत, एकर कतरा रुपिया देंव ?”
दुखिया कथय -“लेंव नइ रुपिया, जहां साग हा फरिहय खूब
मंय चोराय बर बारी जाहंव, करिहंव उहां चोराय के काम.
तंय मोला टकटक देख लेबे, मगर क्षमा करबे सब दोष
खूब साग ला टोरन देबे, कीमत हा हो जहय वसूल.”
“तंय हो गेस अटल युवती पर, बचपन के चंचलता शेष
नवा आदमी धोखा खाही- दुखिया हवय निर्दयी क्रूर.
पर मंय तोर नेरुवा तक जानत, तोर नहीं मं हे स्वीकार
छिपे क्रोध मं सहृदयता हा, छिपे घृणा मं आदर स्नेह.”
कोदिया साग के बीजा ला धर, उहां ले रेंगिस मन संतोष
अंकालू हा दुखिया ला कहिथय- “तोर बहुत झन रिश्तेदार.
लहुट जथय तोर मौसी हा तंह, गप ले आथय मामी तोर
मामी लहुटत स्वार्थ सिधो के, तुरुत तोर काकी हा आत.
आखिर कतका हें संबंधी, गिनती करा गणित ला जोड़
गांव मं जतका बुढ़ूवा बुजरुक, जमों आंय तोर रिश्तेदार ”
दुखिया किहिस- “तिंही बोले हस बुजरुक मन ला आदर देव
तब सब ला प्रणाम करथंव मंय, उंकर ले मंगथंव आशीर्वाद.”
अंकालू ला भूख हा ब्यापत, दुखिया परसिस भोजन शीघ्र
अंकालू हा जेवन नावत, बड़े कौर धर आंख पंड़ेर.
इही बीच मं दुखिया बोलिस -“लड़त फकीरा अउ सोनसाय
उंकर विवाद सुने हस तंय हा, आखिर मं का निर्णय होय ?”
अंकालू बोलिस -“का होहय-उहिच होय जे निश्चय पूर्व
याने सबल ले निर्बल हारत, कपटी ले निश्छल के हार.
मोतीखेत फकीरा के सुन, पर सोनू के हक लग गीस
आज धनी ले दीन हार गिस, हम बोकबोक देखत रहि गेन.”
“तुन जानत अन्याय हा होहय, फिर काबर मुड़ नावत व्यर्थ !
अन्यायी के मदद करत तुम, तुम्हर घलो हे नंगत दोष.”
“अगर अपन घर लुका के रहिबो, कभु अन्याय खत्म नइ होय
हम ओ जगह मं खत्तम जाबो, गलत न्याय अउ अत्याचार.
अन्यायी के काम जांचबो, तौल तौलबो ओकर शक्ति
लगही पता पोल दुर्बलता, उही ला कहिबो पास तुम्हार.
निपटे के उपाय ला सुनिहव, अनियायी संग करिहव युद्ध
थोथना भार उलंडही दुश्मन, युद्ध मं तुम्हर निश्चय जीत.”
“ददा, तंय बतावत हस ठंउका, झप नइ मिलय ठिंहा उद्देश्य
कई पीढ़ी हा आहुति देथय, भावी हा अमरत उद्देश्य.”
“अब मोला विश्वास तोर पर, तंय चुन सकत स्वयं के राह
जइसे मछरी के पीला मन, तउरे बर सीखत हें आप.”
“हां, अब चर्चा बंद करन हम, शांति साथ तुम जेवन लेव
समय शांत हो- बहस होय झन, आत अनंद देह ला लाभ.”
अंकालू हा जेवन नावत, मुंह मं लेगत सरलग कौंर
बस जेवन तक ध्यान ला राखत, बुद्धि जात नइ दूसर ओर.
बछर हा जइसे क्रमशः बढ़थय, घंटा पहट दिवस सप्ताह
होगिस खतम धान के बांवत, कृषक धरत भर्री के राह.
कोदो बीज मं मिला अमारी- तिली बाजरा मूंग उरीद
पटुवा खमस मिंझार छींच दिन, चलत हवय जस जुन्ना रीत.
एकर बाद मं नांगर जोंतिन, हांक दून आंतर नइ होत
जलगस अंड़े बुता नइ उरकिस, मारन कहां सकत गप गोठ !
धान जाम के कुछ अउ सरकिस, हर्षित होत कृषक हा देख
दूबी कांद हेर के फटकत, बिरता ला पहुंचय झन हानि.
ददा अपन बेटा ला पालत, करथय उदिम भविष्य बनाय
कृषक चिभिक कर खेत सजावत, सनसन उठय फसल के बाद.
अपन खेत मं गीस गरीबा देखत धान के पौधा ।
ओमन बढ़त सनसना तंहने होत प्रसन्न गरीबा ।।
पर दूबी अउ कांद घलो हें, जेहर छेंकत फसल के वृद्धि
खरपतवार उखान गरीबा, ओला देखत हेरिस बोल-
“धान के बिरता ला देखेंव मंय, मोर हृदय मं भरिस उमंग
लेकिन जानेंव तोर उपस्थिति, मन मं उभरिस कई ठन प्रश्न.
आतंकी अउ देश के अरि मन, अपन राष्ट्र ला करथंय नाश
उंकरे भाई तुमन घलो अव, उत्तम फसल ला करथव नाश.
मंय किसान बिरता के पालक, पौधा मन मोर पुत्र समान
धान के पौधा के रक्षा बर, मात्र मिंही हा जिम्मेवार.
मोर पुत्र मन बाढ़ंय सनसन, तंय झन देन सकस कुछ हानि
पहिलिच ले तोर बुता बनाहंव, किरिया खाय हवंव प्रण ठोस.”
दूबी कांद उखान गरीबा, बना दीस नींदा के ढीक
बांस के झंउहा मं खब जोरिस, अब उठाय बर करत प्रयास.
झंउहा उठा मुड़ी पर राखिस, चलिस मेड़ तन तन तन दौड़
उंहचे जमों कांद ला खपलिस, झंउहा रीता कर लहुटीस.
कतका टेम पता नइ होवत, सुरुज ला राखे बादर तोप
भूख जनावत तभो गरीबा, करतब पूर्ण करत कर खोप.
इही बीच धनवा हा आइस, जेहर ए सोनू के पुत्र
एकर आदत घलो ददा सहि- जलनखोर गरकट्टा भ्रष्ट.
धनवा चिल्ला हूंत कराइस- “ए खरथरिहा, बूता छेंक
घर चल ओंड़ा आत भात झड़, खटिया सुत लव नींद अराम.”
कथय गरीबा- “धनवा भइया, काय बतांव इहां के हाल
खरपतवार ले खेत पटे हे, ओला खन मंय फेंकत मेड़.
मोर बुता हा बचे हे अधुवन, करिहंव पूर्ण आज सब काम
सैनिक हा दुश्मन ला मारत, तब ओला मिल सकत अराम.”
धनवा हेरिस व्यंग्य के वाणी- “तंय कब ले बइला हो गेस
जलगस जोंतई पूर्ण नइ होवय, जुंड़ा हा रहिथय ओकर खांद.
मोर वचन ला कान खोल सुन- तंय झन झेल व्यर्थ तकलीफ
जीवन पाएस सुख अराम बर, पर तंय हेरत तन के तेल.”
व्यंग्य वचन ला सुनिस गरीबा, सब तनबदन मं लग गिस आग-
“तंय हा सोनू के लइका अस, ओकरे सीख चलत हस राह.
तंय हा छोटे रेहेस जेन दिन, तोर पिता गुरुमंतर दिस
सब के संग हंस खेल मजा कर, पर अस्मिता ला अलगे राख.
उनकर स्तर निम्न गिरे अस, तन के घिनमिन दीन दलिद्र
तंय सम्पन्न धनी के बेटा, तोर ओहदा पद हा ऊंच.
दूसर संग तंय प्रेम बना रख, मंदरस मीठ बोल ला हेर
पर वास्तव मं होय दिखावा, अंदर हृदय घृणा ला राख.
मोर साथ मिट्ठी अस बोलत, मगर हृदय मं मारत बाण
तब तंय मोर बात ला चुप सुन, मंहू बतात जगत के सत्य.
हम्मन नित अभाव ला झेलत, तब फिर कहां मजा सुख पान !
दुर्गति रहिथय गाड़ के खमिहा, तलगस भेदभाव के रोग.
कपड़ा कल मं श्रमिक कमाथय, चुहा पसीना जांगर टोर
सब के तन ढंक के पत राखत, मगर ढंकत नइ खुद के लाज.
पर के भोभस मं भर देवत, रड़ श्रम कर किसान मजदूर
अपन पोटपोट भूख मरत नित, सुख सुविधा ले रहिथंय दूर.
यदि तुम धनवन्ता मन चाहत, होय श्रमिक पर झन दुख भार
अपन धन दोंगानी ला बांटव, लूटव झन पर के अधिकार.”
“तोर ददा हा धन कमाय अउ, मोर चई मं सुपरित दीस
मोर पास आ बांटा देहंव- बोहनी मं थपरा दस बीस.
आज जहर अस बचन ढिले हस, ओकर कसर लुहूं मंय हेर
धधकत आत्मा तभे जुड़ाहय, तब मंय सोनसाय के लाल.”
जरमर करत पढ़त कंस कलमा, धनवा रेंगिस पटकत गोड़
पुनः गरीबा करतब टोरत, कांद अउ निंदा उचात खखोड़.
उदुप एक ठक बिखहर बिच्छी, ओला झड़का दीस चटाक
झार चढ़त सनसना देह पर, ओकर जीव बस एक छटाक.
वापिस होत गरीबा हा अब छोड़ कमाती डोली ।
बाय बियाकुल होगे- मुँह ले निकलत कातर बोली ।।
धनवा ला अमरा लिस तंहने, कहत गरीबा नम्र जबान-
“भइया, तोर मदद मंय मांगत, रंज छोड़ के कर उपकार.
बिखहर टेड़गी हा चटका दिस, झार चढ़त होवत बेहाल
झार उतारे के दवई ला जानत, कर उपचार मोर तत्काल.”
करत गरीबा बहुत केलवली, पर धनवा देवत नइ ध्यान
घाव के ऊपर नून ला भुरकत, देत ठोसरा टांठ जबान.
“खरथरिहा अस मोर बात ला, चुटचुट फांके हस हुसनाक
मोर शरण अब काबर आवत, जा अब बजा काम चरबांक.”
कथय गरीबा- “काम करत मंय, टेड़गी चटका- कर दिस काम
मितवा, बाचिस तोर काम अब- विष उतरे कहि दवई लगाय.”
“यदि तोला बिच्छी तड़कातिस, टांयटांय कइसे धर राग !
आभा मार दुसर ला तंय हा, ए तिर ले पंचघुंच्चा भाग.”
“मंय हा गल्ती करेंव जेन अभि, छोटे समझ क्षमा कर देव
मोला सिरिफ आसरा चहिये, मोर कष्ट ला भिड़ हर देव.
यदि भविष्य मं तंहू अटकबे, मंय हा बनहूं धारन तोर
रेत हा ईंट के मदद ला करथय, तब बन जाथय भव्य मकान.”
“तोर जरुरत होय कभू नइ, तंय जन धन ले कंगलाहीन
अपन मदद मंय स्वयं करत हंव, मंय जन धन ले पूर्ण समर्थ.
बेर हा सब ला रफ ला बांटत, ओकर तिर रफ के भण्डार
चन्दा ले कभु मदद मंगय नइ, चंदा भीख मं मंगत प्रकाश ”
“कोन जीव भावी ला जानत, कभू ना कभु पावत हे कष्ट
ओहर कतको होय शक्ति धर, मदद ला मांगत पर के पास.
होत समुन्दर विस्तृत गहरा, ओकर तिर जल के भण्डार
लेकिन नदी ले पानी मंगथय, आखिर ओहर बनत लचार.
वास्तव मं तंय खूब सबल हस, पर निर्बल ला मंगबे शक्ति
तंय अतराप के धनवन्ता अस, पर गरीब ले मंगबे भीख.”
व्यर्थ बिलमना सोच गरीबा, मीनमेख तज गीस मकान
सुद्धू हा कुब्बल घबरा गिस, अपन टुरा ला केंघरत जान.
सुद्धू चेंध के कारण पूछिस, देत गरीबा सही जुवाप
झार अधिक झन बढ़ जाये कहि, बाप हा सारत दवई ला जोंग.
थोरिक वक्त कटिस तंह सुद्धू, करत पुत्र ले हलू सवाल-
“झार कहां हे- लगत कतिक पन, अपन देह के फुरिया हाल ?”
कथय गरीबा- “झार हा उतरत, कल तक तबियत बिल्कुल ठीक
मगर रहस्य उमंझ नइ आवत, कते दिवस मानवता नीक !
पशु मन एक दुसर ला चांटत, रखथंय सहानुभूति के भाव
चिड़िया मन मं मित्रता रहिथय, चारा खावत आपस बांट.
पर हम मानव बुद्धिमान अन, भाषण देत सुहावन लाम
एकता मैत्री अउ सदभावना, भाषा मीठबंटत उपदेश.
मगर मया हा टूटे रहिथय- मित्र ला देवत घाटा ।
ऊँच नीच हा काबर होथय उत्तर लान तड़ाका ।।
“मोर पास नइ ज्ञान बिस्कुटक, पढ़ नइ पाय ग्रंथ साहित्य
तंय शिक्षित- आधुनिक जानबा, तिंहिच बता-का कारण भेद !”
सुद्धू प्रश्न खपल दिस उल्टा, कहत गरीबा हा कुछ घोख-
“तोला जग के अड़बड़ अनुभव, पर तंय फांसत हस मुड़ मोर.
भेदभाव ले दुरिहा रहिथस, तब तंय मोला उठा के लाय
यदि अंतस मं कपट एक कन, पर के बिन्द ला लातेस कार !
तंय हा प्रश्न के उत्तर जानत, मगर धरेस तंय एक विचार-
बढ़य गरीबा के तर्क क्षमता, तब मंय बोलत मति अनुसार-
एक असन धन के वितरण नइ, छल प्रपंच मानव के बीच
शोषक के पथ बस लूटे बर, शोषक हा चुसात खुद खून.
प्रेम एकता अउ समानता, मानव के जतका गुण श्रेष्ठ
झगरा के चिखला मं फँस गिन, उहां ले उबरई मुश्किल जात.
मनसे देखत अपन स्वार्थ ला, दूसर ला फँसात कर यत्न
तब मानवता राख होत हे, टूटत हवय प्रेम के तार.”
तभे लतेल इंकर तिर पहुंचिस, खोल के बोलत खुद के हाल-
“तीन कांड़ के मोला कमती, तब वन गेंव करे बर पूर्ति.
मोर साथ अउ मनखे तेमन, सोनसाय मण्डल के भृत्य
हम्मन छांटेन पेड़ सोज तंह, बोंग गिराय करेन प्रारंभ.
कट के पेड़ गिरिन भर्रस ले, छांट देन जकना अउ डार
हरु करे बर छंड़ा छालटी, बाद खांद पर रखेन उवाट.
तंहने हम सब वापिस होवत, लुंहगी चल फुरसुदही मार
हंफरत-खांद पिरावत कतको, तभो रुकत नइ हिम्मत हार.
हम्मन मुंह ला चुप कर रेंगत यद्यपि आवत खांसी ।
उदुप सामने दड़ंग पहुंच गिस जंगल के चपरासी ।।
वनरक्षक ललिया के कहिथय- “कइसे जात हलू अस रेंग
खड़े झाड़ बिन पुछे गिराये, वन लगाय का बाप तुम्हार ?
पटकव इहिच मेर सब लकड़ी, तुरुत लिखाव नाम ठंव गांव
यदि आदेश उदेल के भगिहव, एकर बहुत गलत अन्जाम.”
अतका कहि लतेल चुप होवत, सोचत हे घटना के दृश्य
एकर बाद जउन हा बीतिस, कहत उंकर तिर वाजिब बात-
“हम्मन डर मं लकड़ी ला रख, रक्षक पास सुकुड़दुम ठाड़
ओकर शरण गिरेन नीहू बन, पर ओहर हा देत लताड़.
सोनू के नौकर मन बोलिन- “हमला मालिक इहां पठोय
थोरिक मोहलत देव कृपा कर, ठाकुर ला हम लानत शीघ्र.”
रेंगिस परस धरापसरा अउ, खड़ा करिस सोनू ला लान
सोनसाय हा वनरक्षक ला, अलग लेग के लालच देत.
खुसुर पुसुर का करिन दुनों झन, का समझौता सब अज्ञात
हम दुरिहा तब समझ पाय नइ, पर गड़बड़ अतका सच बात.
सोनू मोरे ऊपर बखलिस- “मोर गुमे एक लगता गाय
ढुंढे बर इहां आय भृत्य मन, तेला तंय फंसात हस व्यर्थ.
तंय चोराय डोंगरी झपाय हस, तेकर स्वयं भोग परिणाम
दूसर ऊपर लांछन झन कर, वरना बहुत गलत अंजाम.
सोनू के हुंकी भरिन भृत्य मन, सब जंजाल ले फट बोचकीन
जम्मों दोष मोर मुड़ खपलिन, धथुवा बैठ गेंव धर गाल.
ओमन थोरको सोग मरिन नइ, हार करेंव एक ठक काम-
अपन चीज बस ला बिक्री कर, फट भर देंव दण्ड के दाम.
बिपत कथा ला कतिक लमावंव, गांव मं जब पंचायत होत
सोनसाय के पक्ष लेत मंय, ओला सदा मिलत फल मीठ.
मगर मोर पर कष्ट झपाइस, ओहर मदद ले भागिस दूर
ओकर फाँदा मोर गटई मं, हाय हाय मं मुश्किल प्राण.”
अपन बेवस्ता ला लतेल कहि, होत कलेचुप मुंह ला रोक
कथा ला सरवन करिस गरीबा, जानिस के लतेल फँस गीस.
कथय- “धनी के इही चरित्तर, दया मया नइ उनकर पास
अपन पाप ला पर मुड़ रखथंय, पापी तभो होय नइ नाश.”
इसने किसम बतावत बोलत, संझा होगिस बुड़गे बेर
चलिस लतेल अपन कुरिया बल, मन के व्यथा इंकर तिर हेर.
बइठन पैन बियारी ला कर, कोटवार हा पारिस हांक-
“सुन्तापुर के भाई बहिनी, मोर गोहार ला सरवन लेव.
हे कल ज्वार तिहार हरेली, गांव गंवई के पबरित पर्व
अपन खेत मं काम बंद रख, नांगर फंदई ला राखव छेंक.
भूल के झन टोरो दतून ला, काट लाव झन कांदी घास
परब हरेली ला सब मानो, ओला देव हृदय ले मान.”
सुद्धू कान टेंड़ के ओरखत, राखत हे रक्षित हर बोल
सुनत गरीबा घलो लगा मन, परब हरेली ला संहरात.
सुद्धू हा हरिया के बोलिस- “वास्तव मं ए पर्व हा श्रेष्ठ
जमों क्षेत्र मं हे हरियाली, हरा होत मन हरियर देख.”
रखिस गरीबा प्रश्न कठिन अस- “दीवाली होली तक पर्व
ओमन ला सब कोई जानत, उनकर हवय खूब यश नाम.
मगर हरेली के गुण गावत, देवत सब ले अधिक महत्व
हवय हरेली मं का प्रतिभा- मोर प्रश्न के उत्तर लान?”
“दीवाली होली मन उंचहा, धुमड़ा खेदत करा के खर्च
हर मनसे बर ओमन नोहय, कुछ सम्पन्न के उत्सव आय.
बहुत दयालू परब हरेली, सब झन मना सकत बिन भेद
थोरको आर्थिक हानि होय नइ, हे सजला सुकाल ए पर्व.”
“हाँ, वास्तव मं समझ गेंव मंय, मनसे हा कभु नइ फिफियाय
फोकट मं प्रसन्नता मिलथय, तब तिहार वास्तव में श्रेष्ठ.”
एकर बाद गरीबा सुद्धू लेवत हें खर्राटा ।
बड़े फजर खटिया ला तज के उठगें लउहा लाटा ।।
नित्यकर्म ले निपट गरीबा, गाय गरु खेदिस गउठान
कोठा के गोबर ला हेरिस, खरहेरिस गरुवा के थान.
गंहू पिसान मरकी ले हेरिस, सानिस निर्मल जल मं नेम
लोंदी बनगे तंह थारी रख, जावत हवय खइरखा डांड़.
अमरिस जहां गाय गरुवा तिर, लोंदी ला खवात कर हर्ष
हलू हाथ धन मन ला सारत, धन मन हा कूदत मेंछरात.
“संहड़ादेव” के पास मं पहुँचीस, करिस प्रार्थना श्रद्धासाथ
धरती पर सुत जथय गरीबा, संहड़ादेव ला टेकत माथ.
सुन्तापुर मं जतिक कृषक हें, एकरे असन जमावत काम
गाय गरु एकजई जहां हें, ग्रामीण मन बर तीरथधाम.
हे मंगतू बरदिहा उही ठंव, धरे हे दसमुर-डोंटो कंद
कथय गरीबा ला प्रसन्न मन- “संहड़ादेव ला करेस प्रणाम.
अब ओकर प्रसाद ला खावव, लेकिन सुनव एक सच गोठ-
मलई चाप – मेवा के मिठाई, यने आय नइ उंचहा चीज.
वन के कांदा कुसा ए एहर, नाम हे दसमुर डोंटो कंद
आज के दिवस इही हा बंटथय, तंहू चहत तब कहि के मांग.”
कथय गरीबा- “दे प्रसाद झप, करिहंव ग्रहण प्रेम के साथ
जमों जिनिस मं शुद्धता हावय, पर्व के भी हे निर्मल रुप.
अउ कई ठक हें देवी देवता, ओमन बसथंय मंदिर भव्य
उंचहा वस्तु प्रसाद मं लेवत, गहना पहिरत हीरा सोन.
पर ग्रामीण के ग्राम देवता, जेकर नाम हे संहड़ादेव
खुले अकास के नीचे खुश हे, ओकर तिर नइ कुछ टिमटाम.
देवता हा प्रसाद मं लेथय- जंगल के जड़ी बूटी कंद
एकर देह हवय बिन गहना, आज प्राकृतिक हे हर चीज.”
मंगतू हा प्रसाद ला अमरिस, लीस गरीबा लमा के हाथ
हर्षित मन प्रसाद ला खावत, हृदय मं रख श्रद्धा के भाव.
पिनकू उंहचे रिहिस उपस्थित, जेन आय कालेज के छात्र
कहिथय -“दाई हा इहां भेजिस, ओकर बात मान मंय आय.
धन मन ला लोंदी खवाय हव, याने होय पिसान के खर्च
लेकिन मोर उमंझ ले बाहिर- काबर करत गलत अस काम !
मनसे बर अनाज के कमती, उंकर जरुरत सदा अपूर्ण
तब गरुवा ला कार खवावन, आखिर एकर ले का लाभ ?”
मंगतू तिर मरकी तेमां उबले कांदा के पानी ।
उही नीर ला नरा मं भर के पिया दीस भैंसा ला ।।
मंगतू हा पिनकू ला बोलिस- “पशु के ऋणी आन इन्सान
गाय-भैस मन दूध पियाइन, तभे हमर जीवन बच पैस.
बइला-भंइसा करिन परिश्रम, तब उबजिस हे ठोस अनाज
ओला हम्मन खाय पेट भर, तभे बचान पाय हम जान.
वास्तव मं पशु मन उपकारी, उंकर खवाय ले हमला लाभ
यदि घिव हा खिचरी मं छलकत, खबड़ू पावत उत्तम चीज.”
पिनकू कथय- “ठीक बोलत हस, मंय हा शहर मं देखेंव दृष्य
उहां के स्वार्थी मनखे मन हा, गाय भैंस के दूहत दूध.
लेकिन दूध दुहई रुकथय तंह, मार पीट के देत निकाल
पशु मन किंजरत आवारा अस, दुर्घटना के होत शिकार.
अगर एक के टांग हा टूटिस, दूसर पेट बड़े जक घाव
बिना सुरक्षा के बपुरा मन, असमय जात मौत के गोद.”
“मानव होथय क्रूर भयंकर, उंकर कथा ला फुरिया देस
उंकर स्वार्थ के पूर्ति तभे तक, पशु के सेवा करथंय खूब.
पर पशु मन असहाय हो जाथंय, सड़क मं छोड़त हें मर जाय
एहर सहृदयता के दुश्मन, बिन मुंह पशु पर अत्याचार.”
कुछ रुक मंगतू हा फिर बोलिस- “पिनकू, तंय हस निश्छल जीव
पशु ला भूखा भटकत पावस, उनकर सेवा कर बिन स्वार्थ.
पशु के कमई ला खा के बाढ़ेस, तुम पर हवय कर्ज के बोझ
सेवा करके बोझ उतारो, पशु ला अपन हितैषी मान.”
पिनकू हा स्वीकार लीस फट, तभे उहां धनवा हा अैस
ओकर आंख मं रकत हा छलकत, नाक फुसन अकड़ावत बांह.
देखिस उहां गरीबा ला तंह, बोलिस गरज गिरे अस गाज-
“अरे गरीबा, नाश करत हस, सुन्तापुर के रीति रिवाज.
हम्मन गांव के परमुख मालिक, दीवाली उत्सव जब आत
हमर जानवर के टोंटा मं, सोहई बंधत हे सब ले पूर्व.
यने जतिक अस हवय काम शुभ, हमर हाथ ले होत मुहूर्त
पर तंय हा बुगबुग आगू बढ़, चरपट करेस कार्यक्रम आज.
हमर ले पहिली कार आय तंय, पशु ला लोंदी कार खवाय
संहड़ादेव के कर देस पूजा, आखिर कोन दीस आदेश ?”
कथय गरीबा हा अचरज भर- “धनवा, तंय हा क्रोध ला थूंक
मंय हा आय तोर ले पहिली, तब पहिली पूजा कर देंव.
पूजा-सेवा सहायता मं, स्पर्धा भावना हा व्यर्थ
पूजा मं श्रद्धा भर चहिये, मात्र दिखावा बिल्कुल व्यर्थ.”
“पर एहर हा गांव नियम ए, टोरे के अधिकार मं रोक
पर कानून ला तंय टोरे हस, यने करे हस तंय अपराध.”
“अच्छा ग्राम के नियम बताएस वाह रे धनवा भैय्या ।
होय तोर यश-प्रमुख बनस तंय-बाढ़य स्वार्थ खजाना ।।
लेकिन ओहर ग्राम नियम नइ, ग्राम नियम ला एतन जान
सबला मिलय लाभ बाढ़य यश, होय गांव के उचित विकास.
ग्राम नियम पर सदा चले हंव, संस्कृति के करे हंव सम्मान
संहड़ादेव ला तंय जानत हस, हुड़बुड़हा पथरा भर आय.
यदि ओकर पर मुड़ ला पटकत, मुड़ फुट के बन जाहय घाव
मगर गांव के संस्कृति ए तब, पूजा कर मंय करेंव प्रणाम.”
“तंय रख तर्क होत हस विजयी, पर वास्तव मं गल्ती तोर
मोर सदा हिनमान करे हस, काम के बीच बने हस आड़.”
“तंय हा अइसन किसम के वन अस, जिहांं बिछे हे शिला विशाल
लेकिन हवय हहर हेल्ला अस, एको ठक नइ हरियर पेड़.
तइसे तंय हस धनी प्रतिष्ठित, लेकिन शालीनता के अभाव
बात बात मं लांछन डारत, दूसर ला करथस बदनाम.”
“छोटे मनसे- बात बड़े कर, झन गरमा मोर मथे दिमाग
इहां तोर आवश्यकता नइ, तुरुत हटा थोथना-चल भाग.”
तुरुत गरीबा उत्तर देतिस, इही बीच बइला हा अैस
चांटिस खूब गरीबा ला अउ, मुड़ ला घंसरिस ओकर देह.
कथय गरीबा हा धनवा ला – “टकटक देख ए पशु के काम
लड़ई विवाद ला रोक लगावत, उग्र दिमाग ला कर दिस शांत.
एहर कहत- तिहार ला मानो, पशु पक्षी कीरा इंसान
सदभावना रखव आपुस मं, भेद जाय गोरसी के आग.
पर तंय मोला भगय कहत हस, तब एकर बर झन कर फिक्र
तोर ले पहिली इहां आय हंव, तब मंय लहुटत तोर ले पूर्व.”
अपन मकान गरीबा लहुटिस, साफ करिस कृषि कर्म के अस्त्र
एक जगह मं रेती डारिस, तंहने पुरिस पिसान के चौंक.
उही पवित्र जगह पर रख दिस, नांगर जुंड़ा कुदारी तीन
साबर हंसिया रापा गैंती, उंकर करत हे पूजा पाठ.
बिनती बिनो तियार गरीबा, जंगी पहुंच के खावत मांस-
“कका, बना गेंड़ी मंय चढ़िहंव, स्वयं लगा डोरी अउ बांस.
कुछ लाने बर मोला कहिबे, पर मंय हा बिल्कुल असमर्थ
दया मया कर तिंहिच पुरो सब, काबर के मंय तोर भतीज.”
सुनिस गरीबा तंह मुसकावत, हेरिस बांस मोठ अस छांट
आरी मं दू डांड़ तुरुत चुन, खिला धरा दिस लगा उवाट.
खीला पर घोड़ी पर पाऊ, नरियर बूच रज्जु दिस बांध
ओमां माटीतेल रुतोइस, आग मं सेंकिस कुछ क्षण बाद.
बनगे तंह जंगी चढ़ रुचरुच मचत बिकट के गेंड़ी ।
ओहिले भागत मार कदम्मा उठा थोरकिन एंड़ी ।।
रंगी रज्जू गुन्जा मोंगा- सब के संग मं गिजरत खोर
आगू होय चलत स्पर्धा, जउन प्रथम ते बनत सजोर.
रंगी बेलबेलहा गेंड़ी ला, गज्जू पर अंड़ात टप ताक
गज्जू गेंड़ी मचत तेन हा, चिखला मं गिर गीस दनाक.
गुन्जा-मोंगा टुरी मन हांसत, गेंड़ी मं भागिन कुछ दूर
गज्जू कपड़ा झर्रावत उठ, जम्हड़ धरे बर पीसत दांत.
पर रंगी हा पकड़ाइस नइ, खुद ला साफ बचा रख लीस
इसने लड़-मिल लइका मनहा, मानत सुघर हरेली पर्व.
इही बखत मंगतू मन निकलिन, पकड़े दसमुर-लीम डंगाल
लइका करथंय झींका पुदगा, उंकर काम मं पारत बेंग.
मंगतू कथय- “डाल झन झटकव, मोर प्रश्न के उत्तर देव
मंय खुद तुमला डाली देहंव, ओकर साथ मया चुचकार.
पेड़ ले हमला लाभ का हावय, ओहर देत कतिक ठक सीख
अगर जगत हा पेड़ ले खाली, तब ओकर बिन का परिणाम ?”
रंगी कथय- “शुद्ध पुरवाही, बीज फूल फल कठवा देत
पेड़ के ऊपर खेल करत हम, ओकर बिन जीवन हा शून्य.”
“यद्यपि तुम्मन बेलबेलहा हव, मगर रखत हव बुद्धि कुशाग्र
प्रश्न के उत्तर सही रखे हव, अमर लेव मनचही इनाम.”
मंगतू हा डंगाल बांटिस तंह, लइका मन खिल गिन जस फूल
चरवाहा मन सब घर जावत, उंकर इहां खोचत हें डार.
मगर गरीबा के घर तिर गिन, उंकर ठोठक गे रेंगत पांव
कथय गरीबा -“कार रुकत हव, तुम सीधा मोर घर मं आव.
बेंस ला हरदम खोल के रखथंव, स्वागत पावत हर इंसान
तुम्हर पास हे हरियर डारा, मोर दुवारी मं झप खोंच.”
मंगतू कथय- “का बतावन भई, हम नइ आन सकन घर तोर
अब डाली तक खोंचई हे मुश्किल, याने सब तन ले असमर्थ.”
“तुम्मन अचरज मं डारत हव, तुम्हर साथ मं नित सदभाव
सदा लड़ई झगरा ले दुरिहा, एक जिनिस ला खांयेन बांट.
तंय दैहान मं खुद बलाय अउ देस प्रसाद के बांटा ।
मगर शत्रुता कहां ले आइस – आये बर हे नाही ।।
“तंय हा धनवा संग झगड़े हस, ओकर होय गजब हिनमान
उही हा हमला छेंक लगा दिस, तब नइ आवत हन घर तोर.”
“तुम बोलत तब मंय मानत हंव, मंय हंव खूब लड़ंका बंड
धनवा के तोलगी झींके हंव, ओकर होय नमूसी आज.
मगर तुम्हर संग सदा मित्रता, अभिन बलावत करके मान
आये बर हे ढेकाचाली, एकर कारण ला कहि साफ ?”
“यदि हम तोरे घर मं जाबो, धनवा हा लेहय प्रतिशोध
पशु के चरई बंद कर देहय, तुरुत बंद बरवाही के दूध.
चरवाही हा मिलन पाय नइ, हमर सबो बल ले नुकसान
धनवा के अभि राज चलत हे, तब हम चलबो ओकर मान.”
“यदि तुम मोर मकान मं आवत, तुम्हर होत नंगत नुकसान !
तब बिल्कुल तुम भूल आव झन, मोर ले हरदम दूर भगाव.
वर्तमान मं लाभ दिखत कई, सच मं काटत खुद के गोड़.
धनवा हा दबात हे तुमला, करत तुम्हर पर अत्याचार
सांप दिखब में अति आकर्षक, मगर चाब के लेवत प्राण.”
“ए सच ला हम खुद जानत हन-हमर भविष्य कुलुप अंधियार
पर मानव हा तुरुत ला देखत, तब मानत धनवा के रोक.
गलत राह पर चलत विवश बन, इही मं खावत सुख के जाम
यदि सुख के कुछ समय मिलय तब, मनसे लेवय निश्चय लाभ.”
मंगतू चरवाहा मन चल दिन, करिन गरीबा के अपमान
ओहर खावत अबड़ घसेटा, तभो ले लेगत आगू पांव.
मुड़ी उठा देखिस अकास तन, करिया बादर गहगट छाय
एक के ऊपर दुसर चढ़त हे, मानो लगे विजय बर शर्त.
पानी के बड़े बूंद हा गीरत, तरुत गरीबा अंदर अैस
रमझम पानी दड़दड़ा गीरत, जेला कथंय-सुपा के धार.
परवा छेद गीस भीतर जल, लिपे भूमि ला कर दिस छेद
दउड़ गरीबा टपरत टप टप, पर हर ठौर चुहत रेदखेद.
सुद्धू कहिथय- “जल अंदर निंग, हमला देत सुघर अक सीख-
बिपत के दिन हा निश्चय मिटिहय, अब नइ लगय मंगे बर भीख.
बिजली कड़कड़ चमक के बोलत- जइसे होवत दमक अंजोर
कष्ट के करिया रात भगाहय, बनिच जहव दलगीर सजोर.”
कथय गरीबा-मोर घलो सुन, यदपि भेद नइ प्रकृति पास
पर ओकर बनाय दर्शन ला, मानव करथय चरपट नाश.
सम बरसा कुचरत हे सब तन, होहय फसल कचाकच धान
मगर भिन्नता हवय उपस्थित, वितरण प्रथा मं कई ठक दोष.
एकर कारण अइसे होहय- अन्न हा सरही भरे गोदाम
जेन जिनिस ला मनखे खातिन, ओहर नाश बिगर उपयोग.
दूसर डहर किसान श्रमिक मन, कमती आय के दीन गरीब
अन्न के बिना भूख मर जाहंय, बेर तभो ले करिया रंग.”
“तोर विचार हा हावय उत्तम, पर झलकत निराश के रुप
एकर मतलब इही होत हे- सब झन बइठ जांय चुपचाप.
खेत कमाय कृषक मन छोड़ंय, महिनत छोड़ भगंय मजदूर
दीन आदमी प्राण ला तज दें, जग के जमों बुता रुक जांय ?”
“वास्तव मं मंय अइसे चाहत- महिनत कर पुरोंय सब काम
फल ला पाय के कर लें चिंता, मात्र भाग्य पर झन रहि जांय.
वाजिब जगह मांग ला राखंय, विनती करंय बनंय कुछ बण्ड
तभे उंकर सुख सुविधा मिलिहय, हरदम बर रक्षित अधिकार ”
सुद्धू मन मं करत तरकना- कहत सोच गुन जोखू ।
ग्रहण लइक सिद्धान्त बतावत-मोर पुत्र नइ फोंकू ।।
पाठक मन ले एक निवेदन- आत जात हे क्षण दिन रात
बार-बार बस उहि वर्णन मं, कथा व्यर्थ अस लमिया जात.
नंगत पानी हा बरसिस तब, टिपटिप डबरा खोंचका खेत
अब किसान मन डोली जावत, ब्यासी बर हे सुघ्घर नेत.
नांगर बइला धरे गरीबा, ब्यासी करे चलत हे खेत
धनवा साथ भेंट हो जाथय, जेकर बरन रकत अस लाल.
मेंछा अंइठत-छाती अंड़िया, मोठ असन लउठी के हाथ
भंव किंजार देखत गरीबा ला, जावत नौकर चाकर साथ.
धनसहाय के धन हीरा हा, जोर भुकर के रोपिस पांव
बाद गरीबा के धन ऊपर, कूद गीस मारे बर दांव.
मगर गरीबा के धन “मोहर” व्यर्थ लड़ई ला टारिस खूब.
पर “हीरा” बरपेली झगरत, तंह मोहर तक देवत जोम.
पंजा उठा दुनों टकरावत, एक दुसर पर झड़कत सींग
पिछू डहर कुछ घुंच पंच घुच्चा, फेर दुचेलत बायबिरिंग.
कथय गरीबा हा हगरु ला -“इंकर लड़ई ला बंद कराव
लड़ई करत यदि टांग टूट गिस, या नाजुक स्थल पर वार
एमन घायल-पंगु हो जहंय, कृषि के काम करन नइ पांय
ऊपर ले हम दवई कराबो, आखिर इंकर अउ हमर हानि.”
हगरु हा खेदिस लउठी झड़, इनकर खतम होय तकरार
पर धनवा हा छेंक लगा दिस-लड़न देव धन मन ला आज.
कुकरा के झगरा देखे हन, पहलवान के देखेन युद्ध
बइला मन के घलो देख लन, आखिर काकर होवत जीत.”
धनसहाय हा जोश देत अब, अपन माल हीरा ला जोर –
“मोर शेर, तंय हा झन घबरा, डंटे रहाव युद्ध के क्षेत्र.
यदि तंय लड़ई मं विजयी होबे, मोर तोर होहय यश नाम
तोर ले काम लेवई हा रुकिहय, खाय पिये बर उचित प्रबंध.”
बिजली मं पानी पर जावत, फैल जथय सब डहर करेंट
जोश शब्द हा आग लगा दिस, लड़त माल मन बन खूंखार.
झड़क गरीबा के धन हा अब हीरा के पखुरा ला जमैस
दरद में हीरा कुबल बिलबिला, देत बोरक्की भग गिस हार.
धनवा हा आन्द उठावत, बेसुध देखत लड़ई के होड़
उरभेटटा हो गिस हीरा संग, खुर मं कंस चपकांगे गोड़.
निज मालिक पर क्रोध उतारत, खूब हुमेलत बिफड़े माल
धनवा हा “हीरा” ला ढकलत, पर अउ धुनत बन महाकाल.
धनवा सब ले मदद मांगथय-हीरा हा गुचकेलत तान
कउनो दउड़ बचावव मोला, बुझे चहत जीवन के दीप.”
भाखा ओरख गरीबा दउड़िस, हीरा हा खेदिस दपकार
धनसहाय ला टंच करे बर, सारत देह बिन दवा भेद.
चले लइक धनवा होइस तंह, रोष कर कथय मुंह फटकार –
“अपन हाथ ला घुंचा गरीबा, मंय नइ चहत तोर उपकार.
तोर माल हा बहुत लड़ंका, ओकरेच कारण दर्गति मोर
मोर माल हा साऊ सिधवा, तभो ले भोला दीस पधोर.
मोर देह भर दरद हा घुमरत, पर तंय मन मं एल्हत खूब
घाव के ऊपर नून ला भुरकत, बड़नउकी मारत कंगाल.”
कथय गरीबा -“काबर बकथस मोर का गल्ती भैया ।
मोर प्रशंसा करे के बदला धरथस मैय्या दैय्या ।।
अपन क्रोध मं अपन चुरत हस, मंय बचाय हंव जावत जान
हिलमिल जिये-बिपत बांटे बर, आय हवन बन के इंसान.
धनवा ओकर बात ला काटिस -“तंय रख बंद अपन उपदेश
तोर ले मंय जानबा अनुभवी, मंय खुद बांट सकत हंव ज्ञान.”
धनवा रेचेक रेचेक कर रेंगिस, खेत अमर गिस थोरिक बाद
काम हा जहां शुंरु हो जथय, धनसहाय हा करथय जांच.
ओकर चक के गणना कर लव-ब्यासी होवत हे जे खार
नांगर रेंगत सरलग गदबद, एकर बाद चलावत धान-
परहा लगत जउन चक मन मं, उहां बहुत अक श्रमिक कमात
ओकर असलग खातू छीतत, दिखत जंवारा अस सब पेड़.
नान नान लइका जेमन हा, खातिन पीतिन करतिन खेल
ओमन चिखला घुसर कमावत, खटत हवंय बालक मन जेल.
चरे केंदुवा घुठुवा तक ले, गोड़ उठाय बर मुस्कुल होत
कनिहा नवे – तन पिरावत कंस, पर अराम के पल हा दूर.
झंगलू शिक्षक उहें पहुंच गिस, नम्र बनैस अपन व्यवहार
धनवा ला सलाह देवत अब, सफल बनाय अपन उद्देश्य –
“एक काम धर आय तोर तिर, सुनबे बात रखत हंव आस
लइका मन ला काम झन करा, ओमन पावत हें तकलीफ.
जीवन शिक्षा बिना अबिरथा, नइ जानंय विकास के बात
ओमन ला छेल्ला कर छोड़व, ताकि भविष्य हा पाय प्रकाश.”
धनवा करखा देख के किहिस -“फोकट ज्ञान इहां झन झाड़.
एमन पढ़े बर अगर जांहय, कोन दिही भरपेट अनाज.
इंकर ददां मन भूख मरत खुद, कहां खा सकत बांट बिराज
खूब तरत खा-अबड़ सोग मर, एमन ला मंय देवत काम
मोर भरोसा तीन परोसा, इनकर जिनगी पात अराम.”
“यदि लइका मन शिक्षिका होहंय, तब कृषि क्षेत्र मं रखिहंय ज्ञान
अन्न के उत्पादन पढ़ाय बर, करिहंय खुद नव आविष्कार.
उंकर प्रयत्न हा सफल तंहने, अन्न हा उबजिहय भरपूर
आखिर मं तुम्हरे घर आहय, एमांमात्र तुम्हर हित – लाभ.”
“एक पक्ष भर तंय बताय हस, दूसर ओर मोर हे हानि
यदि लइका मन शिक्षित होवत, तब बढ़ जहय ज्ञान के क्षेत्र.
पूर्ण जगत संग मेल मिलापा, दिहीं अवाज – क्रांति अउ क्रांति
मोर पास वाजिब हक मगिहंय, तुरुत समाप्त मोर वर्चस्व.”
धनसहाय हा मुड़ी उठाथय, लइका मन तन डारिस दृष्टि
कहिथय -“राख जमे अगनी पर, ओला तंय उड़िया झन फूंक.
अगर राख हा उड़के हटिहय, आगू मं बस धधकत आग
आगी हा सब जिनिस ला बारत, बर्फ समान करय नइ शांत.
मोर भविष्य के सुख हा स्वाहा सब तन घाटच घाटा ।
तेकर ले मंय होंव सुरक्षित, बाद होय झन धोखा ।।
यदि तंय मोर नफा देखत हस, बालक मन साक्षर झन होंय
जग के जमों ज्ञान ले वंचित, मात्र कमांय टोर के देह.”
धनवा तर्क ढिलत बेमतलब, सोचत के झंगलू भग जाय
झंगलू चलिस छोड़ओ तिर ला, काबर पथरा पर मुड़ जाय.
ओहिले डहर गीस तंह दिखथय – सनम हा बियासत हें धान
ओकर खटला झरिहारिन हा, कनिहा नवा करत हे काम.
धरे हाथ मं धान के पौधा, दिखत जिंहा पर छटटा ठौर
पौधा उहें खोंच देवत फट, ताकि धान हा सघन चलाय.
तभे सनम के एक माल हा, बइठ गीस चिखला पर लदद
तंह झंगलू हा सनम ला कोचकत -“वास्तव मं मनसे मन क्रूर.
तोर माल के चलना मुश्किल, काबर लेवत काम बलात
बपुरा पशु पर दया मया कर, थोरको झन कर अत्याचार.”
सनम के रिस हा नंगत बढ़गिस, अंइठिस खूब बैल के पूंछ
लउठी ले घलो मरत ढकेलिस, बइला टुडुग हो जथय ठाड़.
सनम हा तंहने मया जनावत, सारत हाथ माल के पीठ
कहिथय – अपन आंख मं देखव – धन हा नइ कोढ़िया असमर्थ.
एहर हवय कमऊ फूर्तीला, पर अंड़ जथय पांव ला रोक
यदि दूसर बइला मिल जावत, उंकरो साथ अंड़ावत सींग.
एहर मोला देत खूब सुख, मोर काम ला करथय पूर्ण
मगर जहां डायली मं उमड़त, मोरा कर देथय परेशान.”
झंगलू गुरु हा हंस के बोलिस -“पहलवान अस हे धन तोर
मूड ठीक तब बैठक मारत, वरना सोवत हे दिन रात.”
उंकर गोठ सुनथय हठियारिन, झंगलू ला कहिथय कुछ हांस –
“गली के ददा ला नइ जानव, पर के निंदा करथय खूब.
अपन दोष ला चुमुक लुकाथय, छोड़त काम बहाना मार
अगर बहाना हा आवश्यक, जानत एक सौ एक उपाय.”
एल्हना सुनत सनम हा भड़किस -“कभू बहाना कोन बनैस
तोर अड़े मं देत पलोंदी, मदद करे बर हर क्षण ठाड़.”
“तोर बोवई मं हल चलात हस, गंहू ला ओनारत मंय साथ.
तंय दौरी ला खेदत तब मंय हा झींकत हंव पैरा ।
धान के बियासी तंय करथस – तब मंय चालत पौधा ।।
झंगलू हा खुश हो के कहिथय -“तुम्मन हव तारीफ के लैक
सुखी गृहस्थ जउन ला कहिथय, ओकर साथ करे हंव भेंट.
तुम्मन पहिली खूब लड़त हव, मगर बाद मं होवत एक
एक दूसरा के पूरक अव, काम पूर्ण करथव बन एक.”
तभे उही डायल बइला हा, नांगर झींकिस लगा के शक्ति
सनम हा हंस झंगलू ला बोलिस -“स्वयं देख बइला के हाल.
मंय हा तोर साथ गोठियावत, तउन ला एहर मारिस रोक
बचे बुता ला झप पुरोय बर, आगू तन लेगत हे पांव.”
झंगलू किहिस – सच बताए हस, ढचरा मारत हे धन तोर
पहली बइठगीस डायल अस, अब लेगत नांगर ला झींक.
अच्छा भैय्या, अपन काम कर, मंय हा चलत हंव अपन राह
जादा बखत व्यर्थ बिलमे मं, काम प्रेम मं अड़चन आत.”
झंगलू हा विद्यालय चल दिस, सनम अपन बूता मं व्यस्त
पुत्र गली के सुध हा आइस, तंह झरिहारिन मंगिस सलाह –
“ए बाबू के ददा, सुन भलुक, काम करे बर जब मंय आय
मोर गली हा नींद मं डूबे, घटकत रिहिस घोटोर कर नाक
पर अब नींद उमचगे होहय, या फिर भूख मं सपसप पेट
ओकर देखभाल बर जावत, इहां बिलमना बिल्कुल व्यर्थ.”
सनम हा तुरुत दीस समर्थन -“तंय हा निश्चय लहुट मकान
बासी खाय विचार आज नइ, रांध के रखबे जेवन तात.”
“मंय हा भात ला बना देहंव, मगर साग मं काय बनांव ?
घर मं कुहुच साग हा नइये, ओकर बढ़े हे घलो दाम.
जिनिस बिसाय के मन हा होवत, पर बिसाय बर हिम्मत पश्त
लगथय – सिर्फ धनी मन जीहंय, ओमन बिसा लिहीं हर चीज.”
“हत रे जकही, काय कहत हस, मनसे पास होय कई शक्ति
भोजन पानी रखय अपन तिर, अन्न ला रखय लौह गोदाम.
मनसे मन हा खूब भूखभरंय, अइसे क्रूर कसम ला खाय
पर प्रकृति हा बहुत दयालू, सब पर छाहित एक समान.
रिता ओदर ला जीवन देथय, रोगीबर हे दवई – प्रबंध
पंगु ला मिलत मदद सहारा, प्रकृति हा ममता के खान.”
सनम हा तुरुत इंगित करथय, जेतन रिहिस चरोटा पेड़
कहिथय – “साग साग चिल्लावत, ओतन देख साग अउ साग.
टोर चरोटा भाजी ला झप, ओला सुघर पका के राख
काम बंद कर मंय घर आवत, तंह जेवन लेहंव भर पेट.”
झरिहारिन हा कहना मानत जाथय एक जगह चिकनौर
उहां गंसागस उगे चरोटा, जिंकर केंवरी पत्ता मौर.
झरिहारिन हा भाजी टोरत, ओली अंदर रखत सम्हाल
सोसन भर भाजी टूटिस तंह, चलत मकान तेज चल चाल.
कुरिया घुसर जांचथय स्थिति-पुत्र गली रोवत हे जाग
बालक गली ला दूध पियावत, एकर बाद सुधारत साग.
भाजी ला झर्रस झर्रस पिट, महिन करिस हंसिया मं काट
सफ्फा जल मं धोइस तब फिर, बेले अस रगड़िस रख खाट.
नरम बनाय चुरोइस गुदगुद, मिरी बघार सुंतई अक तेल
आखिर समय नून ला डारिस, साग बनाय के खेल समाप्त.
ओकर साथ भात हा चुरगे, सनम पहुँच गिस खस लरघाय
झरिहारिन हा जेवन परसत, ताकि मरद हा गप गप खाय.
कभू अन्न नइ देखिस तइसे, सनम सपेटत आँख नटेर
भाजी भात बड़े कंवरा धर, मुँह ले लेगत पेट अबेर.
जल्दी कारण अटक गे तंहने लिलथय पी के पानी ।
भोजन उरक-थार के पइंया परथय उठती खानी ।।
कहिथय सनम- “खाय ओंड़ा तक, कभू खाय नइ जइसन आज
कतेक चहेटेंव साग चरोटा, वर्णन करे मं आवत लाज.
जरमन बर्तन अउर चरोटा, अगर बेसरम पेड़ अभाव
कोन किसम जीवन हा निभतिस, पट पट ले मर जतिन गरीब.”
अपन मकान ले बाहिर आथय, गमछा मं पोंछत मुंह हाथ
झड़ी धान-चरिहा बोहि लावत, पाँच व्यक्ति हें ओकर साथ.
सनम किहिस- “थोरिक तंय रुक जा, धान कहाँ ले लावत बोल
ककरो तिर ले चलऊ लाय हस, नगद नोट मं लात खरीद?”
झड़ी बताइस- धान मंय लावत, एला धनसहाय हा दीस
गांव मं एक झन उही दयालू, करथय मदद कष्ट के बेर.
खेत के निंदई करा डारे हंव, देना हवय श्रमिक ला धान
पत्नी मोर जउन बिस्वासा, ओहर घलो बहुत बीमार.
आधा धान श्रमिक ला देहंव, बचत मं खटला के उपचार
एकर कर्जा ओ दिन छुटही, नवा फसल आहय जे टेम.
खटला पास पैंकड़ा सुंतिया, छूट दुहूं ऋण गहना बेच
मंय हा सत ईमान से बोलत, ऋण ला सीत असन डर्रात.”
झड़ी हा अपने रद्दा चल दिस, मुढ़ीपार के पुसऊ आ गीस
सनम किहिस- “आ बइठ मोर तिर, अपन गांव के फुरिया हाल?”
पुसऊ किहिस- “जे खबर इहां के, मुढ़ीपार तक के समाचार
परहा लगत- बियासी होवत, उहां घलोक काम इहि जोर.
हां, यदि मोर खबर ला पूछत, बाप के फर्ज पूर्ण कर देंव
मोर बड़े छोकरी धरमिन के, बर बिहाव ला निपटा देंव”
सनम हा अड़बड़ हर्षित होथय- ” रिहिस तोर मुड़ बड़ जक बोझ
पुत्री के बिहाव निपटिस तंह, फिकर खतम उतरिस सब बोझ.
समधी अउ दमांद का करथंय, कोन किसम हे आर्थिक हाल
धरमिन हा सब सुविधा पावत, या ओकर होवत छे हाल?”
पुसऊ कथय- “असरु समधी हा, छुईखदान मं हे विख्यात
दूधे खाथय- दूध अंचोथय, भरे बोजाय हे धन सम्पत्ति.
अधुवन कथा सुनस तंय काबर, जमों कथा ला सुन ले आज-
मोर दू टूरी धरमिन- लछनी, एला तंय जानत हस साफ.
धरमिन के बिहाव हा निपटिस, पर लछनी हा बिगर बिहाव
धरमिन के आदत गुण ला सुन, तारिफ लइक मधुर शालीन.
जइसे नाम चाल गुण उसनेच, ना मुंह चनचिन- ना मुंह बांड़
सेवा जतन करे मं अगुवा, कभु नइ बइठय मुहूँ ओथार.
धरमिन हा बिहाव के लाइक, खोजे बर गेंव कमऊ दमांद
जइसे उनुन छुनुन करवइया, निर्मल जल ला पीथय छान.
यद्यपि वर मन मिलंय हजारों, मगर हमर अस कंगला ।
बेटी दुख पाहय कहि के नइ देवंव उत्तर कोई ।।
धर के पसिया मंय हा फिफिया, दउड़ लगाय शहर अउ गांव
धनी दमांद के लालच मं पर, एको कनिक रुकिस नइ पांव.
धरिमन के बिहाव के धुन मं, अइसन काम होय कई बार-
उत्ती डहर भात ला खावंव, बुड़ती करों हाथ ला साफ.
एक जगह मं मिलिस आसरा, सुरु खुरु गेंव छुईखदान
उही मकान गेंव तंह मिल गिस- फंकट नामक एक जवान.
खोजत रेहेंव जउन वर ला मंय, ओहर खड़े हवय मुसकात
अइसे सोच बहुत मन गदगद, भूल गेंव मंय दुख के बात.
ओमन घर बनाय तिनखण्डा, अन धन आय इहें ला खोज
कारोबार देख के चौंकस, मन हा जमगे उंहचे सोज.
फंकट के पालक असरु तिर, मंय हा केहेंव हाथ ला जोड़-
“तोर साथ संबंध जोड़िहंव, अइसे सोच आय हंव दौड़.
जइसे धरमिन हवय बरत अस, दिखब मं फंकट सुंदर रुप
जोड़ तोड़ मं दुनों एक अस, ओमन फबिहंय जस दिन रात.”
असरु गर्व शब्द मं बोलिस- “मंय करिहंव फंकट के ब्याह
पर मन माफिक दाइज लेहंव, तभे काम होहय उत्साह.
फ्रिज कूलर टीवी अउ सोफा, नगदी रुपिया चांदी सोन
हंडा कोपरा पलंग सुपेती, मंय चाहत अतकिच सिरतोन.
यदि दाइज ला पुरो सकत हस, उत्तर देव जेब ला जाँच
यदि इंकार त लहुट जा फट ले, काबर सहस खर्च के आँच?”
सुनते साठ बंधा गे मोर मुंह, नइ दे पाएंव तुरुत जबान
सक ले बाहिर मांग ला देखत, अकबक होगे मोर परान.
पर कुछ बाद लेंव मंय निर्णय- असरु हवय मातबर ठोस
यदि धरमिन ला इहें देत हंव, फूले रहही फूल समान.
मया ला यदि कंगला घर देहंव, ओहर सकय पाट नइ पेट
अपन लगाय बेल ला मंय खुद, हंसिया बन के काटों कार.
धरमिन ला मंय इहें सौंपिहंव, भले खर्च मं मंय भट जांव
पुत्री के भावी बनाय बर, उचित उपाय करों तत्काल.
छाती अंड़ा केहेंव असरु ला- अब तुम देवव आज्ञा ।
जतका असन मांग तंय राखत- तेला करिहंव पूरा ।।
अ्सरु किहिस- “करो तुम जोरा, हम आवत हन पकड़ बरात
सयना सजन के पत ला रखबे, ओमन ला झन होय अघात.”
असरु के घर छोड़ देंव मंय, वापिस मुढ़ीपार आ गेंव
नसना टुटगे जिनिस सकेलत, सब बिखेद ला कतिक लमांव?
ठंउका दिन पहुँचिस समधी हा, मोरेच द्वार बरतिया लैस
ओकर स्वागत करेंव खूब मंय, भर उत्साह नोट ला बार.
बन के निहू बरतिया मन ला, कोंहकोंह जेवन इज्जत देव
तब ले ओमन होले बक दिन, पर अपशब्द ला चुप सुन लेंव.
अब तब भांवर घुमतिस तिसने, घोड़ा अस अंड़ गीस दमांद-
“मोर चढ़े बर फटफटी लानो, वरना मंय नइ करों बिहाव”
पहिली के फुँकाय घर कुरिया, कहाँ पूर्ण होतिस झप मांग
सबो दांत हा टूटगे रीहिस, वरना उही ला देतेंव टोर.
हारे दांव केहेंव मंय केंघरत- “देहूँ बिसा फटफटी एक
लेकिन तुम भांवर ला किंजरो, झन पारो शुभ काम मं बेंग”
बिदा करेंव अपन धरमिन ला, बन के खुद हंसिया बनिहार
अब मंय रहिथंव पर के कुरिया, सदा झांकथंव पर के द्वार.”
पुसऊ के कहना सनम हा सुनथे, एकर बाद देत हे दाद-
“दाई ददा के मन हा होथय, ओकर बिन्द खूब सुख पाय.
यदपि तोर कनिहा हा टुटगे, पर परिणाम मं मिलगे मीठ
धरमिन हा सुख सुविधा पावय, खूब अचक ओकर ससुराल.”
पुसउ तोष- पा उहां ले रेंगिस, तभे गरीबा हा आ गीस
सनम ले कहिथय- “मदद मंय चाहत, फांक उड़ा देबे झन बात.”
सनम हा मुचमुच मुसका बोलिस- “काबर मदद करंव मंय तोर
तोला जब टेड़गी चटकाइस, तंय हा कल्हर करेस हाय हाय.
धनसहाय ला मदद मंगे तंय, पर धनवा कर दिस इंकार
मंय ओकर तोलगी धर चलथंव, तोला कुछुच चीज नइ देंव”
“तइहा के ला बइहा लेगे, ओला तंय सम्मुख झन लान
धनसहाय पर हवय रंज कंस, यदि ओहर अवघट मिल जाय.
ओकर सती गती मंय करहूं, ओकर खटिया दुहूँ उसाल
सपना तक मं मदद करंव नइ, तब साक्षात सदा इंकार.”
“तंय हा बिल्कुल सच बतात हस, धनवा रखत उच्चता भाव
पर ला देख के मुंह मुरकेटत, अंदर रखत घृणा के भाव.
अइसन पेड़ आय धनवा हा, अपन शक्ति पर करत घमंड
ओहर कहिथय- मंय ऊंचा अंव, करथंव बात अकास के साथ.
आंधी पानी कतको आवय, मगर झकोरा ला सहि लेत
कतको बछर के मोर जिन्दगी, अपन मुड़ी ला कार झुकांव!
पर ओहर ए बात ला जानय- जड़ के मदद ले हावय ठाड़
यदि जड़ हा पाती ला तजिहय, पेड़ हा गिर के सत्यानाश.”
एकर बाद सनम हा पूछिस- “काबर आय मोर तिर दौड़
तोला काय जिनिस अभि चहिये, फोर भला तो ओकर नाम?”
“एक दंतारी अगर तोर तिर, मोर पास झप लान निकाल
कोदो फसल दंतारी चलही, ओकर लइक आय हे पाग.
मोर मांग के तुरुत पूर्ति कर, लेहंव तोर मरत तक नाम
दुश्मन तक के मदद ला करथस, तब मंय तोर अभिन्न मितान.”
सनम कथय -“तंय बांस फूल अस, कभू कभू आथस घर मोर
आय हवस तब बिलम टेम तक, अपन हृदय के गोठ निकाल.”
“जानत हस कृषि क्षेत्र मं हावय, समय पाग के बहुत महत्व
अगर किसान पाग ले चूकत, ओकर जमों फसल बर्बाद.”
एक दंतारी दीस सनम तंह गीस गरीबा भर्री ।
उहां माल ला जुंड़ा मं फांदिस – अब होवत हे बूता ।।
धन मन झींकत हवंय दंतारी, आगू बढ़त गरीबा खेद
कोदो फसल मं परत किनारी, ढलगत पेड़ – बचत मन ठाड़.
परत दंतारी तेकर कारण, फसल बाढ़ हा पाहय बाढ़
मानव हा व्यायाम करत तब, ओकर तन बनथय बलवान.
बैठ गरीबा गप नइ मारत, समय हा धन अस देवत मान
धरती के सेवा कंस होवत, ऊपर उठत सनसना धान.
गीस गरीबा खेत एक दिन, जांचे बर बिरता के हाल
धनवा लउठी धरे खड़े तन, नौकर मन हें ओकर साथ.
कातिक हगरु टहलू बउदा – खूब निघरघट उंकर सुभाव
गाय गरु ला खेत मं घुसवा, हरा फसल ला खुद चरवात.
पशु मन फसल ला बिक्कट खावत, राहिद उड़ा – करत बर्बाद
धनसहाय मन देखत तब ले, पशु ला नइ खेदत कर नाद.
ढिलिस गरीबा प्रश्न हलू अस – “चरत तेन मन काकर माल
मोर फसल के रांड़ बेचावत, कार रखंय नइ माल सम्हाल !”
धनवा किहिस किंजार के आंखी- “एमन आय जानवर मोर
चारा एको जगह मिलिस नइ, यद्यपि जांच लेंव हर ओर.
आखिर तोर खेत आए हंव, इहां हवय चारा के ढेर
धान के पाना कोमल गुरतुर, पशु मन खावत चाव के साथ.”
कथय गरीबा निहूपदी बन – “फसल ला राखत हंव दिन रात
मोर भविष्य हवय एकर पर, बिना अन्न के जग अंधियार.
अगर पुत्र पर कष्ट हा आवत, ददा घलो दंदरत हे खूब
अगर फसल हा राख होत तब, देख पाय नइ कभुच किसान.
अपन जानवर ला बाहिर कर, काबर के मंय घलो किसान
मोर फसल के राहिद हा उड़त, कइसे देखंव बन के मूक !”
धनसहाय हा व्यंग्य मं किहिस -“श्रद्धा रखथस पशु पर खूब
परब हलेरी अउ देवारी, पूजा करत नवा के माथ.
स्वयं खवाथस लोंदी खिचरी, आज खान दे धान के पान
महादान के पुण्य अमरबे, ऊपर ले सब तन यशगान.”
“तोर व्यंग्य ला मंय समझत हंव, व्यंग्य काय तेला अब जान –
अगर प्रश्न के उत्तर चाहिये, व्यंग्य थथमरा के असमर्थ.
लक्ष्य के दिल ला आहत करथय, घाव तक बनाथय बड़े जान
मगर घाव ला माड़ जाय कहि, ओकर तिर नइ दवई प्रबंध.
जउन अन्न ला मंनसे खातिन, ओला करत हवस बर्बाद
एहर आय भ्रूण हत्या सुन, तंय हा करत बड़े अपराध.”
बोल गरीबा खेत मं घुसरिस, धन खेदे बर करत उपाय
ओतका मं नौकर चाकर संग, सम्मुख कूद गिस धनसाय.
कहिथय – “अरे गरीबा तंय रुक, गरुवा मन ला झनिच निकाल
अगर बिफड़ ओरझटी ला करबे, निछिहंव तोर देह के खाल.
सोनसाय के पुत्र के संग तंय, कहां सकत हस बजनी बाज !
मन मं मोर जउन सब करिहंव, सुन्तापुर मं हमर हे राज.
उत्ती ला बुड़ती कहवाथन, करु लीम ला स्वादिल आम
हमर बीच झन पर भेंगराजी, वरना मुरई अस परिणाम.”
“मोर खेत अंदर जबरन घुस, आंख देखावत बन हुसनाक
धन ला कांजीहौस लेगिहंव, चल अब बता कतिक हे धाक !
भड़क गरीबा हा उम्मस बन, आगू डहर बढ़ा दिस गोड़
धनसहाय हा उबा के लउठी, बीच पिठवरा उपर जमैंस.
जिव करलाय गरीबा झटकिस, लउठी ला ताकत कर जोर
जहां मइन्ता भोगागीस तंह, धनवा ला कंस दीस पधोर.
“अरे ददा, चोला नइ बांचय, नौकर मन झपकुन तिर आव
अब परिणा कुछुच निकलय पर, गिरा देव गरीबा के लाश.”
धनवाहा नौकर मन ला अब कर दिस आज्ञा जारी ।
उम्हियावत कुचरे बर जड़से – कुकुर लुहात शिकारी ।।
नौकर मन भिड़गिन कुचरे बर, मान अपन मालिक – आदेश
लउठी भंजा कचारत रचरच, पर छेंकात ऊपर सब टेस.
अखरा जानत हवय गरीबा, लउठी थाम ऊपर रख देत
पा अवसान खवा के झुझका, उहू दुहत्था झड़किच देत.
एक डहर बस एक आदमी, दूसर डहर अधिक इंसान
कहां गरीबा हा लड़ सकिहय, आखिर खैस बिकट के मार.
कथय गरीबा हा धनवा ला – “अगर भूल से होवत दोष
तब अपराध हा क्षमा होवत, मनसे पर नइ होवय वार.
मगर जान के गल्ती करथय, रच षड़यंत्र करत नुकसान
तब ओहर के दण्ड के भागी, बढ़त कई गुना ओकर दोष.
बना योजना गलत करे हस, फल ला चीख उही अनुसार
अपन शक्ति भर सम्हल जा तंय हा, मंय हा करत भयंकर वार.”
मरत आदमी काय करय नइ, चभक जमा दिस लउठी एक
धनवा के मुड़ परिस भयंकर, रकत फोहारा देइस फेंक.
हाथ मं टमड़ धनवा देखिस, भगे लगिस घर ओकर गोड
तोलगी धर नौकर मन लहुटत, मालिक संग मं झगरा छोड़.
खाय गरीबा हा कंस झड़कइ, निकलत मुंह ले करुण कराह
ओहर अब पशु मन ला खेदत, सब गरुवा ला दीस निकाल.
दंउचे हवय गरीबा कुब्बल, दरद कुटकुटी चंगचिंग देह
रेचेक रेचेक कर वापिस होवत, मगर चलई तक मुश्किल काम.
धनवा के धन “हीरा” उहिकर, धरिस गरीबा ओकर पीठ
ओकर साध चलत हे धीरे, आखिर गांव गली मं अैस.
कुलुप अंधेरा आंख मं छाइस, गिरिस भूमि मं दन्न बेहोश
दुखियाबती आत उहि बल ले, दृष्य देख के समझिस बात.
धन के पीठ ला सार के कथय -“मनसे के खोलत मंय पोल
ऊपर ले हम स्वागत करथन, पर अंदर ले करथन घात.
हम मनसे मन बुद्धि श्रेष्ठ अन, एकर साथ सहृदय आन
पर बिन स्वारथ मदद नइ करन, मदद के बदला चाहत लाभ.
अगर भूल से देत पलोंदी, तब हम चहत – होय तारीफ
पर – सहायता के बदला मं, हमला होय अर्थ के लाभ.
तुम पशु ला बिन बुद्धि कहन हन, पर वास्तव मं उल्टा बात
तुम्मन सेवा दया करत हव, ओकर एवज मंगव नइ लाभ.
वास्तव मं मनसे मन स्वार्थी, तुम पशु मन उपकारी आव
हमर विचार काम हा नीचा, तुम पशु मन कर्त्तव्य मं श्रेष्ठ.”
धरिस गरीबा ला दुखिया हा, ताकत भर कबियात उवाट
लैस गरीबा ला खुद के घर, ढलगा दीस बिछा टप खाट.
आगी बार गरम पानी कर, बुड़ो निकालत साफ कपास
घाव के बहत लहू ला धोइस, लेत गरीबा नइ कल्दास.
पूरा तन भर डोमटा सूजन, चर चर उपके करिया लोर
घी गोंदली मं दुखिया सेंकत, ताकि दरद झन मारय जोर.
टप टप ताते तात मड़ावत, पात गरीबा हलू अराम
थोरिक बाद नटेरत सब बल, खंइचत सांस पेट ले लाम.
दुखिया कथय -“लगत कतका पन, का दुख होवत देव जुवाप
कोन आदमी तोला दोंगरिस, काय करे तंय काम खराब ?”
दुखिया बती जुवाप ला मांगिस, लगिस गरीबा कथा बतान
थोरिक बाद सेंकई ला रुकवा, जाय चहत हे अपन मकान.
दुखिया कथय -“बिलम अउ थोरिक, मंय हा करत हकन के सेंक
खरथरिहा, तंय टंच असन बन, तोला नइ छेंकव कर टेक.”
दुखिया के सुभाव ला परखिस, तहां गरीबा होत प्रसन्न
करत प्रशंसा मन के अंदर, पर मुंह खुलगे अपने आप –
“तोर नाम दुखिया हे तइसे, देखस नइ पर के तकलीफ
यदि ककरो पर बिपत हा आथय, देथस मदद बिपत कट जाय.”
दुखिया कथय -“गलत बोलत हस, मोला व्यर्थ चढ़ात अकास
अभिच प्रशंसा करत तउन ला, बाद मं करते इहि विश्वास.”
सुर के साथ दुनों बोलत तब, पहुंचिस भीड़ करत चिरबोर
ओमन क्रोधित दिखत भयंकर, अंदर मं निंगगिन दोर दोर.
चोवा कथय – “कहां घुसरे हस हमर गरीबा दादा ।
कतेक निघरघट बली लड़ंका तोर हेरबो खादा ।।
भगवानी बोलिस -“देखव तो – लड़ई करिस धनवा के साथ
पर घर घुस पत लुटे चहत अब, झींकत हे दुखिया के हाथ.
नथुवा कथय -“इहां झन बोलव, तर्क वितर्क रखव तुम छेंक
एहर खुद ला दुखी बताहय, खसक जहय फट धोखा मार.
एला ग्राम सभा मं लेगव, उंहचे घालुक दिही जुवाप
मरत दोहन वाजिब उछरांबो, उफलय बदकरमी के पाप.”
आंख नटेर गरीबा देखत -“एमन काय लगावत दोष
मोला कुछुच उमंझ नइ आवत, काबर करत व्यर्थ के रोष ?”
थोरिक कहना चहत गरीबा, मगर भीड़ पर चढ़े हे जोश
जब दिमाग मं गर्मी रहिथय, समझत कहां न्याय अन्याय !
करिस गरीबा हा विरोध कंस, तभो चिंगिर चांगर धर लीन
मरे मरी अस घिरलावत हे, बइठक बीच लान पटकीन.
जउन व्यक्ति हा कभू आय नइ, ओला कतको देव अवाज
पर ओमन लफड़ा सुन दउड़िन, खावत अन्न के करदिन त्याग.
करत बइसका सइमों सइमों, बोलिस भुखू लगा कंस जोर –
“भाई बहिनी, होव कलेचुप, काम बीच पारो झन आड़.
अगर जेन ला कुछ गोठियाना, बिन भय फोरय अपन बिखेद
हरचंद असन नियाव हा टुटही, मां मउसी सहि भेद नइ होय.”
सोनू बोलिस अमर के अवसर -“छोटे बड़े देव सब कान
अतियाचारी बढ़त दिनों दिन, लाहो लेत कलऊ बइमान.
जांचव तुम गरीबा के करनी – जउन दिखब मं साऊ नेक
ओहर मोर टुरा ला कुचरिस, व्यर्थ – बिना कारण कर टेक.”
धनसहाय हा केंघर के बोलिस -“मोर ददा हा बोलत ठीक
लड़िस गरीबा व्यर्थ मोर संग, जबकिन मंय हा बिल्कुल शांत.
ओहर मोला दोंह दोंह कुचरिस, मुड़ ले बोहत छल छल खून
तुम्मन अपन आंख ले देखव, अउ गवाह ले सच ला पूछ.”
सोनू हा धनवा ला बोलिस -“बंद राख तंय अपन जबान
तंय निर्दोष बताबे खुद ला, मगर तर्क हा अस्वीकार.
साक्षी मन के बात हा चलिहय, प्रस्तुत करिहंय सतम प्रमाण
उंकर तर्क हा मान्य हो सकथे, ओमन ला अब बोलन देव.”
सोनू हा ग्रामीण ला बोलिस -“सुनव गरीबा के सच हाल
धनवा हा बचपन के मितवा, तेला कुचरिस क्रूर समान.
तंहने अंकालू के घर घुस, पत लूटे बर करिस प्रयास
यदि मंय बुढ़ुवा कहत लबारी, पूछव साक्षी ला सच हाल.”
झड़ी हा बउदा ला पूछिस – “झगड़िन धनसाय गरीबा ।
तंय खमिहा अस उहां रेहेस अब फुरिया सत्य कहानी ।।
बउदा किहिस – “निसंख आंव मंय, कोन सकत हे दपकी मार !
मंय ककरो तिर घूंस खाय नइ, जेमां मंय हा बोलंव झूठ.
घटना जगह जउन देखे हंव, ओला मंय बतात हंव साफ
धनसहाय हा गरूवा मनखे, ओकर एकोकन नइ दोष.
यदि ओहर हमला नोखियातिस, खातिस मार गरीबा खूब
हम्मन शांति धैर्य पर निर्भर, मगर गरीबा मं अति क्रोध.”
झड़ी हा भगवानी ला पूछिस -“तंय अंकालू के घर गेस
उहां गरीबा रिहिस उपस्थित, देखे हवस उहां के हाल.
करिस गरीबा हा का करनी, ओहर दुश्चरित्र के नेक
ग्राम सभा मं सच सच फुरिया – निर्भय बन के बिगर दबाव ?”
भगवानी बइठक ला बोलिस -“मंय जब दुखिया के घर गेंव
उहां रिहिन चोवा नथुवा मन, उंकर साथ कतको ग्रामीण.
दुखिया के इज्जत लूटे बर, उहां गरीबा करत प्रयास
एकोकन अनर्थ झन होवय, लाय गरीबा ला हम झींक.”
केजा हा घलो सभा मं हाजिर, किहिस गरीबा ला भर क्रोध –
“साक्षी मन के बात सुने हन, अब तंय अपन पक्ष ला बोल.
मगर ध्यान रख सत्य बताबे, क्षमा दान करबो मन सोग
यदि एकोकन करत छमंछल, हरदम बर बनबे विकलांग.”
अपन बात ला रखत गरीबा -“घटना जउन सुनव विस्तार
गंगा बीच झूठ नइ बोलंव, भले गांव ले खुंटीउजार.
पहट निंगाय खेत मं धनवा, स्वयं खड़े रहि बिकट चरात
गरुवा ला भगाय बर बोलेंेव, तंहने जबरन लड़ई उठैस.
नौकर संग मिल मोला दोंगरिस, अपन बचाय मंहू कुचरेंव
झगरा बाद जहां मंय लहुटत, मुरछा खा भर्रस गिर गेंव.
दुखिया बती सोग मर कबिया, लेगिस घर बचाय बर जान
मोला सेंकत तेन बीच मं, भीड़ घुसर गिस भितर मकान.
हाथा बैंहा कहां धरे हंव, जेमां लगत गलत इल्जाम
अगर झूठ गोठियात बचे बर, दुखिया धरय बिगर भय नाम.”
दुखिया खूब सोच के बोलिस -“कहत गरीबा हा सच बात
हम महिला मन दोष मढ़त हन, नर के होत चरित्तर नीच.
महिला के इज्जत ला लूटत, होत उंकर पर अत्याचार
महिला सहानुभूति ला पावत, परत पुरूष पर हर एक दोष.
मगर पुरूष मं कहां हे ताकत, महिला ला छू सकत बलात !
महिला हा स्वीकृति देवत तब, पुरूष के साहस हा बढ़ जात.
याने मंय कहना चाहत हंव – हवय गरीबा हा निर्दोष
गलत प्रयास भूल नइ जोंगिस, किरिया खा के सच कहि देंव.”
केजा ला आपत्ति हो जाथय, ओहर कथय व्यंग्य के साथ –
“दुखिया तोला वाह वाह हे, खूब कमाल करे हस आज.
अगर गरीबा दोसिल होतिस, बपुरा हा होतिस बदनाम
तंय हा दुश्चरित्र कहवाते, तोर ददा के इज्जत नाश.
आज गरीबा ला बचाय हस, ओला तंय कर देस बेदाग
एकर संग मं तहूं सुरक्षित, तंय हा चरित्रवान बन गेस !”
अब सोनू मण्डल सन्नावत -“मंय गोठियात तेन सच बात
देख – गरीबा अउ दुखिया मन, मुड़ देके पेलत सब गोठ.
सुन्ता प्रेम हवय इनकर मं, आज जान हम उदुप अवाक
अंकालू के इज्जत जाही, कटा के रहही ओकर नाक.”
अंकालू के मइन्ता भड़किस, कथय गरीबा ला कर क्रोध –
“तंय हा परे डरे बेर्रा अस, काटत हस हम सब के नाक !
ऊपर ले सिधवा अस दिखथस, पर किराय भितरंउधी चाल
जतका तोर खराय जवानी, बीच बइसका दुहूं निकाल.”
अंकालू के क्रोध ला देखिस, तंहने भुखू करत हे शांत –
“तंय आगी मं अभी कूद झन, रख दिमाग ला बिल्कुल शांत.
आय पंच मन न्याय करे बर, ओकर दुर्गति होहय आज
पता गरीबा के लग जाहय, कतेक असन बकचण्डी छाय !”
सोनू बोलिस – “सुन अंकालू, तोर टुरी – मोर टुरी समान
ओकर चाल ले महूं दुखी हंव, काकर तिर मं करों बखान !
यद्यपि मंय प्रतिशोध ले सकथों, मार गरीबा ला बिछा जमीन
पर अइसन मं न्याय मिटाहय, सुघर राह के खुंटीउजार.”
सब मनसे ला आरो देइस -“अपन विचार कहव तुम साफ
बुता बनात गरीबा के – या, कहि निर्दोष – करत हव माफ ?”
सब ग्रामीण सुंटी बंध बोलिन – “देव गरीबा ला कंस दण्ड
ओहर कर्म के फल ला चीखय, क्षमा पाय झन ओकर पाप.”
किहिस झड़ी हा – “अरे गरीबा, मोर न्याय सुन खोल के कान
धनवा साथ लड़े हस फोकट, आज जमाय कुजानिक काम.
यदि हम तोला क्षमा करत हन, तोर नीति सुधरन नइ पाय
तेकर कारण दण्ड देत हन, ताकि खूब डर झिंकस लगाम.
दुखिया साथ अगर गोठियाबे, टोर देब हम मुंह ला तोर
मुंह करिया कर हमर गांव ले, भग कहुंचों सुन्तापुर छोड़.”
बन्जू हा खुश हो के बोलिस -“बिगर संरोटा झड़े नियाव
मुरूख गरीबा अस मनसे ला, गांव ला छोड़वा के टसकाव.”
नवागांव ले सुध्दू लहुटिस, मार पाय नइ थोरको सांस
खबर ला सुन बइठक तिर दउड़िस, मनसे मन से मंगत जुवाप.
कहिथय – “मंय हा कुछ नइ जानंव – तुम सत्तम समझाओ ।
करिस गरीबा काय कुजानिक – मोर पास फुरियाओ ।।
सब बिखेद ला चोवा फोरिस, सध्दू सुनिस कान ला टेंड़
कहिथय -“काबर सोग मरत हव, एला भेज देव अभि जेल.
कार जबरवाली ककरो संग, लड़िस गरीबा बन हुसनाक
एकर पक्ष लेंव नइ मंय कभु, नाक काट रख दिस चरबांक.”
कथय गरीबा – “ददा, मोर सुन, मंय हा हंव बिल्कुल निर्दोष
मछरी अस फंस गेंव जाल मं, होत नमूसी – पत पर घात.”
सोनसाय हा जोर से घुड़किस -“कहत गरीबा बिल्कुल झूठ
मात्र इही एक झन सतवन्ता, लबरा हन हम बुढ़ुवा ठूंठ!
सुन सुध्दूु, तोर टुरा ला खेदत, एला हम छोड़ात हन गांव
मोर एक झन के आज्ञा नइ, सब मिल टोरिन एक न्याय.”
सुध्दूु बायबियाकुल होवत, हवय गरीबा पर अति प्रेम
सुख दुख सहि बचपन ले पालिस, पुत्र छुटत हे मरे के टेम.
सुध्दूु किहिस -“अगर लइका हा, गंदला कर देवत हे जांग
तब सियान हा कभु काटय नइ – अपन मया के कोमल जांग.
अगर गरीबा गल्ती कर लिस, ओकर बल्दा जुरमिल लेव
जमों ओसला टूट जाय कहि, डांड़ लेव जतका मन दाम.
मोर टुरा ला दुश्मन समझत, इहां ले खेद देत हव तूल
दूसर ठंव तक इसने लड़िहय, करिहय सदा भूल पर भूल.
मुड़ी उचा के झन चल पावय, तइसे नसना टोरो खूब
सरलग जोंतई निंदई ले होथय, बन बनखर के बिन्द्राबिनास.”
सुध्दू के करलई केंघरई हा, मनखे के आत्मा पिघलैस
करत नियाव पंच मन जुरमिल, बाद झड़ी हा फोर बतैस –
“देवत क्षमा गरीबा ला हम, गांव छोड़ावत नइ मर सोग
लेकिन एकर बल्दा मं तंय, दण्ड लान जुर्माना भोग.
बइठक उसलय ओकर पहिली, लान नोट गिन सात हजार
यदि असमर्थ – अनाज ला भर दे, फोकट झन कर समय ला ख्वार.”
सुद्धू कथय -“हाल अभि खस्ता, टिकली तक नइ विष ला खाय
अविश्वास तब जांच लेव घर, मंय खोलत हंव खुद के पोल.”
बन्जू कथय -“बचे बर चाहत, हेर उपाय स्वयं तंय सोच
जइसे नाविक हा जहाज ला, बीच सिंधु ले लात निकाल.”
सुद्धू कथय -” फसल नव आहय, तब मंय ऋण ला देहंव छूट
कागज लिख दसकत मंय देवत, मगर हमर पत ला रख देव.”
सात हजार ऋण के कागज म,ं टिकिट रसीद घलो चटकैस
ओमां सुद्धू हस्ताक्षर दिस, काबर के नइ दुसर उपाय.
बद्दी पावत हवय गरीबा, जबरन भरिस दण्ड के दाम
एकर बाद बइसका उसलिस, मनखे मन गिन अपन मकान.
बेटा बाप अपन घर मं गिन, तंह सुद्धू हा रखिस सवाल –
“तंय खुद ला निर्दोष बतावत, दूसर पर डारत सब दोष.
सोनू अउ धनवा दूनों मिल, तोर विरूध्द रचिन षड़यंत्र
लेकिन अइसन काबर होवत, ओमन ला का होवत लाभ ?”
कथय गरीबा – “मोर बात सुन, कभू कभू दिखथय ए बात –
टक टक लाभ दिखय नइ सम्मुख, पर परिणाम मिलत हे बाद.
सोनू हा अभि लाभ पाय नइ, मगर प्रतिष्ठा हा बढ़ गीस
यद्यपि गलत काम हे ओकर, लेकिन चाल सफल होगीस.
सत्य राह पर हम रेंगे हन, तब ले होय व्यर्थ बदनाम
हम हा घाटा खूब खाय हन, तब ले झुके विवश हो गेन.”
“एक लुटुवा मंय भूत बरोबर, पर कुछ बाद उइस तकदीर –
तोला उठा लाय मंय जइसे – नीरु हा गुनवान कबीर.
तोला कभुच छोड़ नइ सकिहंव, आखिर समय के लउठी आस
तंय संहराय के रद्दा पर चल, भले दुसर मन करंय हताश.
यद्यपि वर्तमान दुख देवत, पर भविष्य बर दिखत प्रकाश
मन्न प्रसन्न हृदय रख हरियर, बिपत तभो झन रहव उदास.”
सुद्धू अपन पुत्र ला देवत हवय उजागर रस्ता ।
ताकि गरीबा के हो जावय हल्का दुख के बस्ता ।।
कथय गरीबा हा सुद्धू ला -“एक प्रश्न के उत्तर लान
तंय जानत निर्दोष हवंव मंय, होय मोर पर अत्याचार.
तंय हा मोला बोले रहितेस – शोषण करिन करिन अन्याय
उंकर साथ तंय हा टक्कर कर, क्रांति लाय बर कर संघर्ष.
पर तंय कायर असन झुके हस, तंय हा टोरत भरभस मोर
तोर नीति हा सही के गलती, बिन छल कपट भेद ला खाले ?”
सुद्धू हा गंभीर बन कहिथय – “वर्तमान मं दिखत अनीति
पर भविष्य मं लाभ सुखी हे, छुपे रहस्य ला खोलत साफ.
कहां तोर तिर पद धन जन मन, कहां एक झन समरथ पूर्ण
अगर तंय अभिचे हमला करबे, तब परिणाम मं मिलिहय हार.
शोषण अत्याचार ला तंय सहि, जुटा जन समर्थन श्रम जोंग
जब हो जास पूर्ण सक्षम तंह, शोषक मन संग टक्कर लेव.
जब दुशमन के नसना मरिहय, हक ला पाहय हर इंसान
“सुम्मत राज” लाय बर सोचत, एकदम पूर्ण तोर उद्देश्य.”
सुध्दू हा जब भेद खाले दिस, पैस गरीबा सही जवाब
आगू डहर सफलता पाये , खोजत हवय उचित अस राह.
संगी, सुख दुख आथय जाथय, कतिक करन हम ओकर याद
गोठ पुराना सोचत बइठत, भावी जीवन हा बर्बाद.
जहां गरीबा टंच हो जाथय, तंहने अपन बजावत काम
खेत के मेेड़ साफ चतरावत, भिड़े तान नइ लेत अराम.
दसरु जउन करेला वासी, ओकर तिर आ ढिलत जबान –
“तोर समान कोन अउ दूसर, खरथरिहा महिनती किसान.
मुसकेनी बन दूब गोड़ेली, सांवा बदौर ला कर देस नाश
धान पेड़ मन रिहिन हें छट्टा, करे गसागस ओला चाल.
बेमची कुथवा अउ चिरचीरा, हेर मेड़ ला साफ बनात
सिरिफ काम झन देख लकर्रा, बइठ मोर तिर कर ले बात.”
चिखला हाथ गरीबा धोइस, आथय मुसकत दसरु – पास
कहिथय -“कहां कमावत हंव मंय, तंय फोकट झन चढ़ा अकास.
घास उठन नइ देत चरोटा, इहिच वजह चतरावत पेड़
यदि चारा बढ़ जाहय सनसन, धन मन खाहंय खूब खखेड़.
उदुप आय तंय तिसने पहुंचिस, सेना के एक अड़िल जवान
ओहर मुढ़ीपार के वासी, भारत नाम रिहिस हे जान.
ओहर मोला खभर बताइस – देश के ऊपर संकट आय
शत्रु राष्ट्र हा हक बताय बर, अपन फौज ला लान दंताय.
जेन हमर बर पाट के भाई , ओहर जबरन लड़ई उठात
ओकर ले अब लोहा लेहंव, टूट जाय रट भरभस गर्व.”
भारत ले मंय करेंव केलवली – युद्ध करे बर मोर विचार
जेवनी भुजा टपाटप फड़कत, करिहंव अरि के खुंटीउजार.”
“मितवा, तोर बोलना ठंउका, देश के नाम मं चढ़थे जोश
ओकर पुत्र मया डिग्री हम अन, जीवन रखिस सुरक्षित पोंस.
यदि सीमा मं सब डंट जाबो, करिहय कोन खेत मं काम
बिन अनाज सब झन पटियाबो, दुश्मन घुसर खींचिहय चाम.
संगी, मान मोर कहना तंय, इंहचे करतब ला कर पूर्ण
हमर देश के शक्ति भयंकर, दुश्मन के निश्चय मद चूर्ण.”
भारत अपन साथ नइ लेगिस, यद्यपि मंय नंगत कलपेंव
ओकर कहना मान कलेचुप, मन मसोस इंहचे रूक गेंव.
चलत बखत भारत के मुंह ले, हकरस “जय किसान” निकलीस
उसने मोर जबान ले घल्लोे, भकरस “जय जवान” बिछलिस.
ओकर गुरतुर बोली के सुरता रहिहय जिनगानी ।
जउन बताय बात मंय तेहर – नोहय कथा कहानी ।।
दसरु कथय -“देश उन्नति बर, जीवन देत किसान जवान
लेकिन मुट्ठी भर घालुक मन, देखत अपन स्वार्थ अउ शान.”
कथय गरीबा -“सत्य कहत हस, देख हमर खुद गांव के हाल
सोनसाय हा अपन बढ़े बर, पर ला करिस दीन कंगाल.”
दसरु टोंकिस -“बता साफ तंय – काबर डांड़िन जुरूम का खोल
का अनियाव करे हस तंय हा, चहत हेरना रस पिचकोल ?”
देत गरीबा समाचार सच – “जउन बुर्जआ धन धनवान
ओमन न्याय ला घुमवा देथंय, तब तो चलत उंकर यश गान.
ककरो घात करेंव नइ मयं हा, तब ले करिन सुंटी बंध डांड़
जेमन शोषित हवंय तहू मन, टोरत हें रगड़ा ला मोर.
सोनू नाथे हे सब झन ला, उवत बुड़त बाढ़ी ऋण नाप
तेकर कारण डरत सबो झन, सोनू के नइ करत खिलाफ.”
तभे गरीबा नजर घुमाथय, कातिक हा दिख जथय फटाक
कथय गरीबा हा दसरु ला -“कातिक हा ओरखत सब बात.
यदि सोनू तिर चुगली खाहय, मोर विरूध्द मं भरही कान
सोनू हा दुश्मनी भंजाहय, मोर मुड़ी पर दुख के गाज.”
दसरु हंसिस -“वाह संगवारी, समझ आय नइ तोर दिमाग
सोनू के नौकर ला डरथस, कातिक कब से ए हुसनाक !
ओला लगा तीन थपरा गिन, का कर सकिहय ओहर तोर
ओला तंय फोकट डर्रावत, का उखानिहय कातिक चोर !”
“कोन ला दोंगरंव – कोन ला कुचरंव, सब मनसे मन हितू मितान
हमर बीच मं भिनाफूट तब, लड़ के होवत अपन – बिरान.
कुथा कुथा हम राह चलत हन, एक बुद्धि नइ शोषित – बीच
जहां सर्वहारा मन एकजई, भर्रस गिरही शोषक – शक्ति”
बहुत बेर तक इसने गोठिया, दसरु गीस करेला गांव
कमा गरीबा वापस होवत, अब आवत घर जाय के याद.
गुनमुनात चले आत गरीबा, धनवा मिलिस भूमि पटियाय
ओहर बिखहर साँप ला देखिस, ओकर जीव सुकुड़दुम सांय.
बिखहर सांप सरसरा भगगे, करत गरीबा मन मं सोच –
धनसहाय ला बेल हा छू दिस, लेकिन बचे हे एकर जान.
यदि मंय धनवा ला छोड़त हंव, जहर हा भिनही जमों शरीर
तंहने धनवा बचन पाय नइ, समा जहय मिरतू के गाल.
जमों कलंक मोर मुड़ आहय तब जोंगंव ए बूता ।
धनवा ला मंय साथ मं लेगंव बांच जाय जिनगानी ।।
धनवा ला उठाय लेगे बर, जहां गरीबा करिस उदीम
फट प्रतिरूप खड़ा हो जाथय, ओकर काम के करत विरोध –
“अरे अरे, तंय काय करत हस, धनसहाय हा दुश्मन तोर
तोर विरूध्द मं षड़यंत्र रच दिर्स , मेटिस तोर मान सम्मान.
तोला जब बिच्छी हा चाबिस, तोर मदद ले भागिस दूर
आज पाय हस उत्तम अवसर, शत्रु – साथ तंय ले प्रतिशोध.
धनसहाय ला छोड़ मरे बर, ओकर मदद करो झन भूल
पर बर जेन हा गड्ढा कोड़त, करूलीम अस फल ला पाय.”
दीस गरीबा हा झिड़की कई -“शत्रु के परिभाषा ला जान
होय समर्थ – करय टक्कर भिड़, छाती अंड़ा खड़ा हो जाय.
पर धनवा हा अभी शत्रु नइ, ओहर परे हवय असहाय
ओला मरत देख यदि जाहंव, तब मंय हा कायर डरपोक
धनसहाय के मदद मंय करवं, ओहर होय स्वस्थ अतिशीघ्र
तब मंय जोम के टक्कर लेवंव, इही बहादुर नर के काम.”
“धनवा कभू मदद नई मांगिस, तोर ले घृणा करिस सदैव
तब तयं काबर आगू जावत, अपन पांव ला पाछू लेग.”
” ओहर धनवा के घमंड बस, जेहर टूट गिस जस सूत
मंय हा आज प्रमाण रखे हंव- ओला मोर जरूरत खूब.
मंय हा ओकर करत सहायता, तब परिणाम ला तंहूँ जान
धनसहाय हा खेल हार गिस, मोर गला मं जीत के हार.”
धरिस गरीबा हा धनवा ला, ओकर घर के तिर मं लैस
समाचार हा गांव मं फइलिस, लग गिस उहां कसाकस भीड़.
सोनू अपन पुत्र ला देखिस, तंह पूछत हे आंख नटेर-
“धनवा रिहिस हे टाटक टौहा, हंसत फूल अस ओकर देह.
सगर कहां ले राहु सपड़गे, उदुप झपागे कोन अजार
लाश असन हिल डुल नइ पावत, एको झन जुवाप सच देव ?”
भीड़ मं रिहिस परस हा घलो, हांक बजा बोलिस फटकार-
“धनसहाय के दुर्गति होइस, ओमा हवय गरीबा के हाथ.
रखत गरीबा कपट ह्रदय मं, तब मारे बर करिस उपाय
मगर चलाकी साथ मं चलिस, धनवा ला खुद धर के लैस.
अब ओकर पर दोष आय नइ, बचिस गरीबा दगदग साफ
सांप हा डस के प्राण ला हरथय, लेकिन चमकत ओकर देह.”
परस हा कई ठक दोष लगाइस, तंह कातिक हा हुंकि भरीस-
“कहत तउन पतियाय लइक हे, एमा हवय गराबा के हाथ.
थोरिक पूर्व गरीबा दसरू, बोलत रिहिन एक ठक ठौर
अपन दुश्मनी ला भंजाय बर, रच षड़यंत्र हेर लिन दांव”
सोनू सनकिस – “यदि धनवा के जीवन हा कुछ घाटा ।
“तंय हा खूब बंड – बेंवट हस, किंजरत मुड़ मं ना के राख .
अपन काम के त्याग करे हस, छयलानी मारत दिन रात
मोर नाक ला फिर कटवाबे, अइसे भुरभुस जावत आज.
काय काम मं अरझे बाहिर, जेमां होगिस अड़बड़ बेर
के ठक डोंगरी फोर ओदारेस, मारे हस कतका ठक शेर ?”
पहिलिच घाव बने तेमां अब, मिरचा भुरक के चुपरत बाप
मगर गरीबा शांत बुद्धि रख, देइस बिल्कुल स्वच्छ जवाब –
“मंय हा ककरो मदद करे हंव, या पर के कर देंव उपकार
अइसन बात बताय चहत नइ, बस अतका अस चहत बताय –
तंत्र मंत्र अउ अंध भरोसा, गलत काम के खुल गिस पोल
ओहर आज लड़ई मं हारिस, विजय पैस वैज्ञानिक दृष्टि.
मंय हा अब विश्वास करत हंव, गांव हा चलिहय राह नवीन
सब ग्रामीण रूढ़ि ला तजिहंय, रखिहंय दृष्टिकोण ला साफ.”
समाचार सुन सुध्दू बोलिस -“जान पाय नइ वाजिब भेद
पर अब ठंउका खभर ज्ञात कर, गलत जोहारेंव तेकर खेद.”
कथय गरीबा – “उमंझ आय नइ – अपन काम ला रखथंव ठीक
पर हित करथंव तब ले काबर, सब हो जाथंय मोर खिलाफ.”
सुद्धूु सुनिस पुत्र के कलपई, देत सांत्वना भर उत्साह –
“समय ले बढ़ अउ कोन परीक्षक, उहि अनुसार करो निर्वाह.
जइसे बार बार गिर मकड़ी, आखिर मं जीतत हे होड़
कतको विपदा आय तोर तिर, मगर भाग झन करतब छोड़.
प्रतिक्रियावादी ले झन डर्रा, अंड़िया के ले लोहा ।
वर्तमान टेंटें बोलत पर उनकर भविष्य सोहा ।।
धनहा पांत समाप्त