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कविता

जाड़ अब्बड़ बाढ़त हे

बिहनिया ले उठ के दाई , चूल्हा ल जलावत हे ।
आगी ल बारत हे अऊ , चाहा ला बनावत हे ।
जाड़ अब्बड़ बाढ़त हे
हँसिया ला धर के दाई , खेत डाहर जावत हे ।
घाम म बइठे बबा , नाती ला खेलावत हे ।।
जाड़ अब्बड़ बाढ़त हे
सेटर शाल ओढे हावय , घाम सबो तापत हे ।
किट किट दाँत करे , लइका मन काँपत हे ।।
जाड़ अब्बड़ बाढ़त हे
बिहना के उठइया मनखे , जाड़ मा नइ उठत हे ।
चद्दर ला ओढ के लइका, फुसुर फुसुर सुतत हे ।
जाड़ अब्बड़ बाढ़त हे
गरम गरम चीला ला , दाई ह बनावत हे ।
नान नान लइका मन , माँग माँग के खावत हे ।।
जाड़ अब्बड़ बाढ़त हे ।

प्रिया देवांगन ” प्रियू”
पंडरिया
जिला – कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
Priyadewangan1997@gmail.com

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