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कविता

जाड़ हा जनावत हे

बिहनिया ले डोकरा बबा कुडकुडावत हे
चिरइ चिरगुन पंख फड़फडावत हे
बडे बिहनिया झन उठीहा संगी
अब के जाड़ हा जनावत हे
दाई हा पनपुरवा बनावत हे
ददा मंद मंद मुचमुचावत हे
एति तेति झन गिंजरिहा संगी
अब के जाड़ हा जनावत हे
डोकरा बबा बिडी सुलगावत हे
डोकरी सरसों तेल कडकावत हे
आगी के तिर ले झन उठिया हा संगी
अब के जाड़ हा जनावत हे
भइसी बइठे पगुरावत हे
राउत ला भइसी लतीयावत हे
जाड मा झन नोहावा संगी
अब के जाड़ जनावत हे
भउजी लइका ला खिसियावत हे
लइका माटी मा नोहावत हे
कातिक नोहाय झन जावा संगी
अब के जाड़ हा जनावत हे

कोमल यादव
मदनपुर, खरसिया
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