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कविता

जौँहर करथस ओ

जौँहर करथस ओ तहू ह संझा-बिहनिया ।
अपन कनिहा ल मटका के।

घेरी बेरी तोर कजरेरी नैना ल
मोर नैन संग मिला के।

दिखथस तै ह टना-टन।
अउ मोरे तीर ले किंजरथस।

लगा के लाली लिपिस्टिक ।
होंठ म, धेरी-बेरी संवरथस।

पाये हस कुदाये बर इसकुटी ल।
अब्बड़ ओमा तै किंजरथस।

देख के मोर फटफटी ल,
आघु ले मोरेच मेर झपाथस।

जौँहर करथस तहू ह ओ,
जब अपन कनिहा ल मटकाथस।

अनिल कुमार पाली
तारबाहर बिलासपुर
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