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कविता

झगरा रोज मताथे

ननद नोनी तोर भईया हा रोज पी के आथे।

ओखी करके बात बात मा झगरा रोज मताथे।

ननद नोनी तोर..

पीरा ला मोर मन के नोनी,कोन ला मंय हा बतावंव।
नइ माने मोर बात ला बहिनी,कइसे मंय समझावंव।
दू दिन बर आना नोनी अपन भईया ला समझा दे।

नंनद नोनी तोर..

नइ बताय हंव मइके में,मोर पति के हिंता होही।
ददा हा तरूवा पीटही,दाई बमफार के रोही।
झन पी दारू ला कहि परथंव,कुट कुट ले मोला ठठाथे।

नंनद नोनी तोर…

काम बुता मा नइ ठिकाना,ठेलहा घुमत रहिथे।
दारू पिये बर पइसा देना कहिके मुंही ला कहिथे।
बनी भूती करके लानथंव जम्मो ला नंगाथे।

नंनद नोनी तोर..

किलिर कालर लइका मन करथे,काला मंयहा खवाहूं।
मार मा अधमरिया होगेंव,कइसे मंय हा कमाहूं।
टुरी टुरी पइदा करे हस,कहिके मोला घिल्लाथे।

नंनद नोनी तोर…

जी हा करथे जाहर महुरा खाके मंय मर जातेंव।
घर दुवार छोड़ के कोनो डा़हर निकर जातेंव।
लइका मन के मंया धर खाथे जिवरा ला मोर बचाथे।

नंनद नोनी तोर भईया हा रोज पीके आथे।
ओखी करके बात बात में झगरा रोज मताथे।
नंनद नोनी तोर..

केंवरा यदु मीरा



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