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गज़ल

का जनी कब तक रही पानी सगा

का जनी कब तक रही पानी सगा
कब तलक हे साँस जिनगानी सगा

आज हाहाकार हे जल बूँद बर
ये हरय कल के भविसवाणी सगा

बन सकय दू चार रुखराई लगा
रोज मिलही छाँव सुखदाई हवा

आज का पर्यावरण के माँग हे
हव खुदे ज्ञानी गुणी ध्यानी सगा

सोखता गड्ढा बना जल सोत कर
मेड़ धर परती धरा ला बोंत कर

तोर सुख सपना सबे हरिया जही
हो जही बंजर धरा धानी सगा

तोर से कुछ होय कर कोशिश तहूँ
कुछ नही ता नेक कर ले विश तहूँ

प्रार्थना सुनही ग बादर देव हा
कोन हे ओखर सहीं दानी सगा

सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़