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कविता

खिलखिलाती राग वासंती

खिलखिलाक़े लहके
खिलखिलाक़े चहके
खिलखिलाक़े महके
खिलखिलाक़े बहके
खिलखिलाती राग वासंती आगे
खिलखिलाती सरसों
महकती टेसू
मदमस्त भँवरे
सुरीली कोयली
फागुन के महीना
अंगना म पहुना
बर पीपर म मैना बैठे हे
गोरी के गाल
हाथ म रंग गुलाल
पनघट म पनिहारिन
सज – संवर के बेलबेलावत हे
पानी भरे के बहाना म
सखी – संगवारी संग पिया के सुध म सोरियावत हे
मने मन अपन जिनगी के पीरा ल बिसरावत हे
खिलखिलाक़े राग वासंती आगे
पिंजरा ले मैना
आँखी ले काजर
हाथ ले कंगन
मुँह ले मीठ बोली
गावत हे सुघ्घर गीत
आगे संगवारी फागुन के महीना
अमराई म कोयल कुहकत हे रे
फागुन के महीना
मीठ बोली मैना बोलत हावे रे
आगे संगवारी मोरे घर अंगना
सब दुख पीरा
मया म भुलागे रे
आगे नव वासंती
मन रंग वासंती होगे रे
खिलखिलाक़े राग वासंती आगे रे ……

लक्ष्मी नारायण लहरे ” साहिल “
डॉ अम्बेडकर चौक कोसीर
सारंगढ़ जिला रायगढ़ छत्तीसगढ़