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गोठ बात

उम्मीद म खरा उतरे बर आज के बुद्धिजीवीमन ल सामने आना चाही : खुमान लाल साव

खुमान लाल साव जी से कुबेर अउ पद्मलोचन के गोठ बात, श्रुत लेखन – कुबेर

आज (25 फरवरी 2019) मंझनिया पाछू भाई पद्मलोचन शर्मा ’मुँहफट’ के फोन आइस। जय-जोहार के बाद वो ह पूछिस – ’’कुबेर, अभी तंय ह कहाँ हस? खुमान सर से मिले बर जाना हे। बहुत दिन होगे, जाना नइ होवत हे, अब परीक्षा शुरू हो जाही तहाँ फेर दू महीना समय नइ मिल पाही।’’
खुमान सर के अस्वस्थ होय के अउ अस्वस्थता ले उबरे के बाद महू हर वोकर से मिल नइ पाय हंव। मंय ह केहेंव – ’’जरूर चलबोन जी, आप इहाँ, स्कूल म, कन्हारपुरी म आ जाव, इहें ले चलबोन।’’
ये तरह ले हम दूनों झन गोधूली बेला म ठेंकवा पहुँच गेन। आरो पा के खुमान सर ह अपन शयनकक्ष ले उठ के आइस। नांदगाँव के गांधी सभागृह म उँकर 89 वाँ जन्मदिन (5 सितंबर 2018 के दिन) के मौका म चंदैनी गोंदा के कलाकार, संगेसंग छत्तीसगढ़ के जम्मों लोक कलाकार, साहित्यकार मन डहर ले उँकर नागरिक अभिनंदन होय रिहिस। वो समय वोमन अपन अस्वस्थता ले उबर नइ पाय रिहिन अउ बहुत कमजोर दिखत रिहिन। आज वोमन ह वो दिन के तुलना म बहुत स्वस्थ दिखिन। फेर पहिली ले आजो वोमन ह शारीरिक रूप ले कुछ कमजोर दिखिन। पन उँकर आवाज म वइसनेच खनक, चेहरा म वइसनेज तेज, मिले के वइसनेच अंदाज अउ स्वभाव म वइसनेच आत्मीयता, अभी घला कायम हे। हमन उँकर चरण छुएन। खुमान सर ह कहिथे – ’’कहाँ ले आवत हव तुमन?’’
पद्मलोचन ह समझिस होही, सर ह हमन ल पहिचान नइ पावत हे, किहिस – ’’मंय ह पद्मलोचन हरंव’’।
खुमान सर ह बीच म बात ल काट के मंद-मंद मुसकात कहिथे – ’’जान डरेव, तंय ह पद्मलोचन हरस, फेर ये बता, कहाँ ले आवत हस?’’
मंय ह खुमान सर के ’कहाँ ले आवत हस’ के भाव ल बहुत अच्छा ढंग ले जानथंव।
’कहाँ ले आवत हस’ के मतलब अतिक दिन के बाद तोला आज फुरसत मिलिस? नांदगाँव ले ठेकवा आय म कतका समय लगथे? अतेक दिन लगथे? आत्मीयता प्रगट करे के ये ह खुमान सर के अपन अदा, अपन तरीका हरे। इही ह वोकर मया-दुलार हरे। वो ह आगू किहिस – ’’ले चलव, बइठबोन।’’
ये समय वो ह हमन ल अपन दरबार हाल म नइ लेगिस। ये ’दरबार हाल’ विशेषण ह मोर गढ़ल आय। काबर कि मोर हिसाब ले उँकर बैठक जमाय के तरीका ह अउ उँकर बैठक खोली ह, मोला कोनों राजा-महाराजा के, कोनों सामंत के दरबार हाल ले कम नइ लगय। आज हमन परछी म लगे सोफा म बइठेन अउ गोठबात शुरू होइस।
पद्मलोचन शर्मा ’मुँहफट’ माने जथा नाम तथा गुण। वोकर पटर-पटर ह शुरू होगे। सर के संग फोटू-वोटू घला खिचेन। मंय ह पद्मलोचन ले केहेंव, अब तंय ह अपन अटर-पटर ल बंद कर अउ कुछू काम के बात कर। मंय ह तुँहर गोठबात ल अपन मोबाइल म रिकार्ड करत हंव। अउ खुमान सर के संग हमर ये तरह ले गोठबात होइस। ये गोठबात ह खालिस अनौपचारिक गोठबात आय। पूर्व निर्धारित या पूर्व तैयारी के, पहिली ले तय कोनों साक्षातकार नो हे। चहा-पानी के बाद बातचीत अअइसन ढंग ले शुरू होइस –
पद्मलोचन – ’’सर! आपके जतका गीत हे वो जम्मोमन ह वो समय के छत्तीसगढ़ के नामी साहित्यकार मन के रचना हरे। आज के रचनाकारमन वइसन गीत नइ लिख पावत हें, लिखत घला होहीं त वो मन ह गीत के रूप म संगीतबद्ध हो के आगू नइ आ पावत हें। आज के साहित्यकार मन ले आपके का अपेक्षा हे?’’
खुमान सर – ’’खास बात तो ये हे, जितना भी कंपोजिंग होवत जात हे, जेकर ठिकाना नइ हे, वोमा सुधार लाना चाहिए। अउ सुधार ला करके, छत्तीसगढ़ ल
सुधरे हुए चीज ल प्रस्तुत करना चाही। वोकर से हमर संस्कृति ल लाभ हो सकथे। अइसन मंय ह सोचथंव।’’
पद्मलोचन – ’’अब तो गीत के धुन के ट्रेक ह पहिली बन जाथे। बाद म वोकर अनुसार गीत लिखे जाथे। आपके समय म आप का करव?’’
खुमान सर – ’’ये ट्रेक वगैरह ह का चीज होथे, वो जमाना म जानबे नइ करंव, आज ले। अउ कोनों ट्रेक के बात करे त अकबका जांय सुनइया ह। वास्तव में ये जो ट्रेकवाला बात हे, अभी-अभी बहु…त जादा हो गे हे। अउ वोमा दम हे के नइ हे, येकर बारे में कुछू बोल नइ सकंव। काबर, कुछू बोलहूँ, त दुनिया ह मोरे करा झर्रा के जाही। तेकर ले अच्छा हे, जउन भी करत हें, तउन ल बने समझ-बूझ के करंय। काबर कि संगीत के काम ह विचित्र हे। कोनों दिक्कत झन होय।’’
पद्मलोचन – ’’पहिली जउन गीत-संगीत होवय अउ आज जउन होवत हे, वोमा निश्चित रूप ले बहुत अंतर हे। फेर येमा आप ल कुछू पाजिटिव नजर आथे?’’
खुमान सर – ’’ये मन तो सब होत हे। उम्मीद में खरा उतरे बर आज के बुद्धिजीवीमन ल सामने आना चाहिए अउ वोमन ल कुछू करना चाहिए।’’
पद्मलोचन – ’’आपमन अपन गीत के रिकार्डिंग कइसे करव? लाइव (माने सब झन बइठ के कोनों गीत के धुन बनावव) कि धुन पहिली बना लव अउ बाद म रिकार्डिंग करव?’’
खुमान सर – ’’दुनों प्रकार ले होवय। लाइव घला होय अउ अभी जइसन होवत हे तइसनों घला होय। फेर लाइव ह जादा पावरफूल रहय। अइसे मोर अंदाज हे।’’
पद्मलोचन – छत्तीसगढ़ी गीत संगीत म पहिली पारंपरिक वाद्य यंत्रमन के प्रयोग होवय अउ अब नवा-नवा वाद्य यंत्रमन के प्रयोग होवत हे ……..’’
खुमान सर – ’’नुकसान हे। ये जो हे, नवा प्रकार के वाद्य यंत्र, जेकर हमर संस्कृति ले कोई लेना-देना नइ हे, अच्छा लागही करके वोला जोड़ देय गे हे, अइसे मोला लागथे।’’
पद्मलोचन – ’’आप छत्तीसगढ़ म हारमोनियम के पर्याय बन चुके हव। हारमोनियम ल पकड़े के पीछू का कारण हे?’’
खुमान सर – ’’वोला मंय नइ जानव। ….’’
पद्मलोचन – ’’रूचि के आधार म होय हे?’’
खुमान सर – ’’रूचि के आधार में वो ह होय हे।’’
पद्मलोचन – ’’हारमोनियम के अलावा घला आप कुछू बजाथव?’’
खुमान सर – ’’पहिली चिकारा बजावत रेहेंव, मदराजी ल देख के। मदराजी ह चिकारा बजावत रिहिस। विही ल देख के महूँ ह चिकारा बजाय के शुरू करेंव। लेकिन जो चिकारा में दम हे, वो हारमोनियम में नइ हे। (मोर डहर देख के) कइसे कुबेर जी।’’
कुबेर – ’’हमला वोकर बारे म जानकारी नइ हे। पहिली हम फिल्मी गीत सुनन। वोमा चिकारा तो बजेच। वायलिन। वोकर बिना तो गीत नइ बने?’’
पद्मलोचन – ’’आजकल के लोक संगीत म …।’’
खुमान सर – ’’नइ बजांय।’’
पद्मलोचन – ’’कोन व्यक्ति ले आप ल प्रेरणा मिलिस?’’
खुमान सर – ’’सबले पहिली नाव मदराजी के हे। वोकर ले प्रेरणा मिलिस। काबर कि हम वोकरे परिवार के आदमी आवन। वो ह जो कुछ भी देय के कोशिश करिस हमन ल, वोला वो ह खुदे नइ जानय। त हमला वो ह का दिस?’’
पद्मलोचन – ’’मदराजी ह?’’
खुमान सर – ’’हाँ।’’
पद्मलोचन – ’’रवेली मदराजी महोत्सव, जउन ह छत्तीसगढ़ म अपन पहिचान बना चुके हे, येकर प्रेरणा आप ल कइसे मिलिस?’’
खुमान सर – ’’वइसे काई बात नइ रिहिस हे। छत्तीसगढ़ी नाचा, छत्तीसगढ़ में होवत रिहिस हे, चाहे वो ह मड़ई के नाव से (मड़ई के अवसर म) होय, चाहे शादी के नाव से होय, किसी भी नाव से होय, वो ह होवत रिहिस हे। वोला वृहत्त रूप देय के काम हमन करे हवन। वोमें कन्हारपुरी के कुछ गुनी मन घला शामिल हवंय। आजकल के मन नहीं, वोमन सब गुजर गें।’’
कुबेर – ’’वो निर्मलकर रिहिस हे न, का नाव रिहिस हे …. ?’’
खुमान सर – ’’रामलाल।’’
कुबेर – ’’हाँ, रामलाल।’’
खुमान सर – ’’भक्त रिहिस वो ह छत्तीसगढ़ी संस्कृति के, अउ मदराजी दाऊ के। अउ कन्हारपुरीवाले … भक्त हरे वो ह।’’
पद्मलोचन – ’’नवा पीढ़ी के कलाकार मन ल आप का संदेश देना चाहत हव?’’
खुमान सर – ’’हमर सांस्कृतिक चीज के अध्ययन करंय। वोला जानंय। अउ अच्छा-अच्छा चीज ल हमन ल पेश करंय। ताकि छत्तीसगढ़ी संस्कृति ह फले-फूले।’’
पद्मलोचन – ’’आप ल अपन कोन गीत ह जादा पसंद हे?’’
खुमान सर – ’’वइसे कोई बात नइ हे कि फलाना गीत ह मोला जादा पसंद हे। वइसे कोई बात नइ हे। काबर कि हमर पैदा करे सबे चीज ल हमला मया करना लाजिमी हे। ये दे ह मोला जादा अच्छा लागथे कहना उचित नइ हे।’’
कुबेर – ’’एक बार आप केहे रेहेव जी, ’फुल गे, फुल गे, चंदैनी गोंदा’, मोला जादा पसंद हे।’’
पद्मलोचन – ’’टाइटिल गीत?’’
खुमान सर – ’’हूँ …. का केहेव आप?’’
कुबेर – ’’एक बार आप केहे रेहेव, ’फुल गे, फुल गे, चंदैनी गोंदा’, गीत ह मोला जादा पसंद हे।’’
खुमान सर – ’’हमर छत्तीसगढ़ी में जतका भी गीत-संगीत हे, वो सब गोंदा फूल सरिख चमकनेवाला हे।’’ (अर्थात् मोर बर सबे छत्तीसगढ़ी गीत मन ह ’फुल गे, फुल गे, चंदैनी गोंदा’, समान हे।)
कुबेर – ’’रिगबिग ले।’’
खुमान सर – ’’रिगबिग ले। अउ वोकर कारण प्रभाव ह, हार्दिक प्रभाव ह, वोकर कोती झुके हावय। आज भी कोई चंदैनी गोंदा ल टोर के कोनों फेंक देही, तो बहुत तकलीफ होथे मोला।’’
पद्मलोचन – ’’बचपन म चंदैनी गोंदा के मंच म मंय ह सुने रेहेंव, एक झन आदमी ह आप ल चंदैनी गोंदा म भड़कीला गीत बजाय बर पूछे रिहिस। आप एकदम मना कर देय रेहेव। चंदैनी गोंदा के स्क्रिप्ट म कोनों बदलाव नइ लाय के कोई कारण हे?’’
खुमान सर – ’’वो ह शुरू ले ही हृदय में बसे हावय। वो ह वहाँ से निकलना, या वोला निकालना, बड़ मुश्किल हे।’’
कुबेर– ’’दाऊ रामचंद्र देशमुख के समय म चंदैनी गोंदा के मंच म छत्तीसगढ़ के जनता के शोषण अउ जनता ल जागरूक करे के नाटक होवय। अब तो खाली गीत-संगीत होथे।’’
खुमान सर – ’’राम चंद्र देशमुख ह संगीत के बारे में बहुत कम जानत रिहिस। सलाह देय में बहुत पावरफूल रिहिस हे वो ह। वोकर बताय अनुसार हमन बहुत अकन काम ल प्रेरित होके करे हवन। वोकर बारे में कुछ कहना मुश्किल हे। बहुत पावरफूल आदमी रिहिस हे वो ह।’’
कुबेर – ’’आपमन ले गोठबात करके आनंद आ गे। हमला समय देव, हमर सवाल मन के जवाब देव तेकर बर धन्यवाद। बहुत-बहुत आभारी। अब जाय के इजाजत देवव’’
खुमान सर ह किहिस, ’’बइठो। चहा पी के जाहू।’’ अउ वो बहू मन ल, चहा अउ भजिया बनाय के आदेश जारी कर दिस। हमन क्षमा मागेन अउ बहूमन ल मनाकर देयेन।
खुमान सर ह कहिथे, ’’तब जाहू? ठीक हे। अइसने आवत रेहे करव। हमू ल बने लागथे।’’
ये तरह ले भेट पैलगी करके ’खुश रहव’, के आशीर्वाद पायेन अउ बिदा होयेन।

श्रुत लेखन – कुबेर