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गोठ बात

किसान के पीरा

बढ़िया पानी पाके किसान मन अपन काम काज के सिरी गनेस कर दे हें। समेसर घलव खुसी-खुसी बिहनिया ले खेत आ गे हवय, रोपा चलत हे। समेसर कमिया मन ल देखत खेत म खड़े रहिस के अचानक ओकर धियान ओकरे तीर म मार फन फइलाये, बिजरावत बइठे नाग देवता उप्पर चल दिस। समेसर सांप सूंघे कस खड़े होगे। नागदेवता से ओकर नजर मिलिस त ओ ह अउ फुस्सsssss करके ओला डरवा दिस। समेसर के आँखि म एक ठन समाचार झूले लगिस जेन ल ओ दुये चार दिन पहिली पढ़े रहय “हरियाणवी साँप ने छत्तीसगढ़ी को काटा, नही मिलेगा मुआवजा।”
अब समेसर आँखि बटेर-बटेर के नागदेवता ल देखथे त कभू ओकर फुस्सssss फुस्सss म कान लगावत हे। फेर अथक परयास के बाद घलव ओकर रूप अउ बोली ले नई चिन्‍ह सकिस के ये नाग हरियाणवी, ओड़िया, मराठी, तेलंगनिया, आंध्र-परदेसिया, मध्य -परदेसिया, उत्तर-परदेसिया, झारखंडिया हे के छत्तीसगढ़ीया अब समेसर हाथ जोड़े मने मन म गोठियात हे।”
हे नागदेवता, ये फुस्सssss फुस्सsss ल छोड़ के अउ कुछु काही गोठियातेव-बतातेव त तुंहर चिन्हारी पातेन।” अब फुफकार अउ जोर के लागिस मानो कहत हे “रे मूरख ये सब भासा-बोली, जात-पात, क्षेत्र के सीमा में हमन नई बंधाये हन ये सब तुहि मन बर हे।”
अब समेसर मारे डेर्राये “जै हनुमान गियान गुन सागर, जै कपीस तिहुँ लोक उजागर” गाए लगिस। तभे ओखर धियान जाथे के हनुमान चालीसा के पाठ से भूत-परेत से तो रच्छा होथे फेर नाग देवता से रच्छा के बात तो हनुमान चालीसा, हनुमानास्टक अउ बजरंग बाण कोनो म नई बताये गए हे। गलत जगा में अरजी दे के कोनो मतलब नई हे तेन ल समेसर बने जानत हे। कार्यालय मन म भटकत ये बात ल वो जान डरे हे। एखरे सेती अब वो ह “जै गिरिजापति दीन दयाला सदा करत संतन प्रतिपाला, भाल चन्दरमा सोहत नीके कानन कुंडल नागफनी के..” हां एमा नागदेवता के नाव आये हे। अब बांच जहु, एला सुन के पक्का मोला छोड़ दिही “अंग गौर सिर गंग बहाए, मुण्डमाल तन छार लगाए, मुण्ड माल तन छार लगाए……” का हे एखरे आगू … भईगे होगे तोर सत्यानास रे समेसर।
मत मान घरवाली के बात कतका कहिथे बपुरी दु ठन अगरबत्ती म काही नई होय। थोकिन पाठ-वाठ कर ले कर, फेर अपन काम ल पूजा जानेस अउ कुछु नई करे, अब भुगत। समेसर अब विनती करत हे “हे नागदेवता ए दरी नागपंचमी म बने तोर पूजा पाठ करहूँ, दूध के संगे-संग मुसवा कुकरी के भोग लगाहुँ।” हाथ जोरे, काँपत, बर्रावत, पछिनियाये समेसर के हालत देख के नागदेवता ल दया आगे। हो सकत हे ओ हर आन परदेस के होही सोचिस होही, के डस दुहुँ त ये तो मरबे करही एखर परिवार बिन मारे मर जही। मुआवजा तक नई मिलही, अईसने तो अधमरा कस हवय कोनो दया देखाए के झन, मही अपन दया देखा दौं। अउ चुपचाप वो ह अपन रद्दा म रेंग दीस।
दीपाली ठाकुर
रोहिणीपुरम, रायपुर

One reply on “किसान के पीरा”

बहुत सुघ्घर कहनी ।
सुन्दर प्रस्तुती ।

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