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कविता

“गंवई-गंगा” के गीत गवइया

गिरे-परे-हपटे ल रददा देखइया,
जन-मन के मया-पीरा गवइया।
“मोर संग चलव” कहिके भईया
आँखीओझल होगए रद्दा रेंगइया।।
माटी के मोर बेटा दुलरुवा,
छत्तीसगढ़ी के तैंहा हितवा।
सोला आना छत्तीसगढ़िया,
मया-मयारू के तैं मितवा।।
तोर बिना सुसकत हे महतारी,
गांव-गली,नदिया- पुरवइया।।
छत्तीसगढ़ के अनमोल रतन,
माटी महतारी के करे जतन।
“सोनाखान के आगी” ढिले,
पूरा करे तैंहर सेवा के परन।।
“चंदैनी गोंदा”कुम्हालात काबर?
“गंवई – गंगा” के गीत गवइया।।
छत्तीसगढ़ के सभिमान बर,
धरती के गरब – गुमान बर।
कलम चला निक जिनगी जीए,
मनखेपन अउ सत-ईमान बर।।
गीत झरे तोर मीठ मंदरस कस ,
मोर”घुनही बंसरी” के बजइया।।

डॉ.पीसी लाल यादव
मो.9424213122

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