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कविता

बंदत्त हंव तोर चरन ल

गांव के मोर कुशलाई दाई
बिनती करत हंव मैं दाई
सुन ले लेते मोरो गुहार ओ
दुखिया मन के दुख ल हर लेथे
बिपति म तै खड़ा रहिथे
अंगना म तै बैठे रहिथे
जिनगी सफल हो जाथिस
सुघ्घर रहथिस मोरो परिवार ओ
तोरे चरन के गुन गांवों ओ
ये मोर मैय्या सुन लेथे मोरो अरजी
सुना हे मोरो अंगना
भर देथे किलकारी ओ
जनम के हं मैं ह दुखिया
नइये मोरो कोनो सुनैया
मया के दे आसीस तै मोर मैय्या
नव रात म तोर गुन ल गांहंव ओ
दे दे तै मोला आसीस
बंदत्त हंव तोर चरन ल
बिनती करत हंव मैं दाई
सुन लेते मोरो गुहार ओ
मांदर -झांझ बाजत हे
सजे हे तोर दुवार ओ
अंचरा म दुखिया मन
लेके आये हे फूल पान ओ
दे दे आसीस मैय्या
अब झन कर तै बिचार ओ
सुमत के दे तै आसिरवाद ओ
तोरे चरन के पैयां लागांव ओ
सुने ले लेते मोरो गुहार ओ
गांव के मोर कुशलाई दाई
बिनती करत हंव मैं दाई
कोसीर के कुशलाई दाई
देदे आसीस माई
जग म होही तोर बड़ाई
सब के हस तै माई
सुन ले लेते मोरो गुहार ओ ….

लक्ष्मी नारायण लहरे “साहिल”
युवा साहित्यकार पत्रकार
कोसीर सारंगढ़