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गोठ बात

दिनेश चौहान के गोहार : महतारी भाखा कुरबानी मांगत हे

हमन छत्तीसगढ़़ के रहइया हरन। छत्तीसगढ़िया कहाथन। वइसे हमर प्रदेस म कई ठी बोली बोले जाथे। छत्तीसगढ़ी, हलबी, भतरी, कुडुख, सरगुजिहा, सदरी, गोंड़ी आदि आदि। फेर छत्तीसगढ़ी बोलने वाला जादा हवंय। जब छत्तीसगढ़़ के भासा के बात आथे तौ छत्तीसगढ़ी के नांव ही आगू आथे। इही पाय के छत्तीसगढ़ी ल छत्तीसगढ़़ के राजभासा बनाय गे हे। अब ए तीर एक ठी सवाल उठथे, ये बात ल जानथे कतका झन?
मोर आप मन से इही सवाल हे के आज ले पहिली ये बात ल कतका झन जानत रेहेव?
सरकार छत्तीसगढ़ी ल इहाँ के राजभासा घोषित कर चुके हे।
सरकार ह छत्तीसगढ़ी राजभासा आयोग घलो बना चुके हे।
सरकार छत्तीसगढ़ी के 20℅ पाठ ल हिन्दी संग मिला के पढ़ाय के बेवस्था घलो करे हे।
सरकार के ये काम से जेन मन संतुष्ट हवंय तेकर मन से मोला कुछ नइ कहना हे। फेर मोला सरकार से सिकायत हे।
आज इसकुली लइका मन ल इसकुल म पढाय जाने वाला भासा के बारे म पूछबे तौ जवाब मिलथे 1हिन्दी भासा, 2अंगरेजी भासा अउ 3 संस्कृत भासा। छत्तीसगढ़ी भासा के नांव काबर नइ आय?



अउ जब छत्तीसगढ़ी भासा के नांव न इ आय तब वो ह काय के राजभासा हरे?
का राजभासा अइसने होथे जेकर इसकुल म एक भासा के रूप म तको कोई पहिचान नइ हे? अउ सरकार अपन पीठ ठोंकत हे-‘हमने छत्तीसगढ़ी को राजभाषा बनाया’। का एमा खुस होय के बात दिखथे?
आगू बढ़न! छत्तीसगढ़ी के बात सुरू करेस तहान छत्तीसगढ़ी उपर बिदवान मन के बड़े-बड़े सुझाव, उपाय अउ छत्तीसगढ़ी भासा के बढ़चढ़ के गुनगान के सिलसिला सुरू हो जथे।
छत्तीसगढ़ी म सरकारी कामकाज सुरू होना चाही।
छत्तीसगढ़ी ल संविधान के आठवां अनुसूची म सामिल करे जाय।
प्रायमरी सिक्छा के माध्यम छत्तीसगढ़ी करे जाय।
ये सब बहुत बड़े-बड़े बात आय। अइसन कुछ नइ होने वाला हे।
मैं बहुत छोटे से बात करथंव। जउन 20℅ पाठ ल हिन्दी संग मिला के पढ़ाय जावत हे वोला अलग करके स्वतंत्र अनिवार्य बिसय बना दे जाय। मोर दावा हे एमा हर्रा लगय न फिटकिरी अउ रंग चोखा। कइसे? मैं बतावत हौं-
अभी सरकार दुवारा मिडिल से लेके हाई हायर सेकेंडरी तक बर जारी टाइम टेबल के मुताबिक सात पिरेड बनाय गे हे। छै पिरेड म छै बिसय के पढ़ाई होथे। सातवां पिरेड देखायच बर भर बने रइथे। यदि छत्तीसगढ़ी ल एक अलग अनिवार्य बिसय बना दे जाय तौ ये सातवां पिरेड बनाय के औचित्य घलो दिखे लग जही।
मैं जानत हौं मोर ये बात म मास्टर मन मोर पीछू म डंडा धर के कुदाही। काबर के एखर से काम के बोझ तो निसचित रूप में थोड़ा सा बढ़ जही।
फेर मैं महतारी भाखा खातिर अइसन मार-गारी ल सहे बर तइयार हौं। मोर सिक्छक साथी मन से बिनती हवय उन घलो महतारी भाखा के मान सम्मान खातिर अतका कुरबानी देय बर आगू आवंय। धन्यवाद!

जै जोहार! जै छत्तीसगढ़़!!
जै छत्तीसगढ़ी!!

दिनेश चौहान
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