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कविता

मजदूर

जांगर टोर मेहनत करथे, माथ पसीना ओगराथे ।
मेहनत ले जे डरे नहीं, उही मजदूर कहाथे ।
बड़े बिहनिया सुत उठके, बासी धर के जाथे ।
दिन भर बुता काम करके, संझा बेरा घर आथे ।
बड़े बड़े वो महल अटारी, दूसर बर बनाथे ।
खुद के घर टूटे फूटे हे , झोपड़ी मा समय बिताथे ।
रात दिन जब एक करथे, तब रोजी वो पाथे ।
मेहनत ले जा डरे नहीं, उही मजदूर कहाथे ।
पानी बरसा घाम पियास, बारो महीना कमाथे ।
धरती दाई के सेवा करके, सुघ्घर हरियर बनाथे ।
पहाड़ पर्वत काट काट के, पथरा मा पानी ओगराथे ।
पानी पसीया पीके संगी, माटी के गुन गाथे ।
मेहनत ले जे डरे नहीं, उही मजदूर कहाथे ।

महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया (कवर्धा)
छत्तीसगढ़
8602407353