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व्यंग्य

मन के बात

इतवार के दिन बिहाने बेरा गांव पहुंचे रहय साहेब हा। गांव भर म हाँका परगे रहय के लीम चौरा म सकलाना हे अऊ रेडिया ले परसारित मन के बात सुनना हे। चौरा म मनखे अगोरत मन के बात आके सिरागे, कनहो नी अइन। सांझकुन गांव के चौपाल म फेर पहुंचगे साहेब अऊ पूछे लागीस।
मुखिया किथे – काये मन के बात आये साहेब ! कइसे मनखे अव जी, हमर देस के मुखिया अतेक दिन ले अपन मन के बात सुनावत हे अऊ तूमन जानव घला निही – साहेब किहीस। गांव के मुखिया किथे – का जानबो साहेब काकरो मन के बात। हमन ला अपन पेट ले फुरसत निये। हमर पेट जे बात कहिथे, उही बात ला सुनथन। साहेब किथे – अरे, अपन मन के बात म, तुंहरे मन बर नावा नावा जोजना, नावा नावा घोसना ला बताथे, तूमन सुन लीहौ त, तुंहीच मन फायदा म रिहौ। मुखिया किथे – हमर मन बर नावा जोजना, नावा घोसना कनहो अभी अभी सुरू होइस का साहेब ? रिहीस मन के बात सुने के, त तोला का बतांवव साहेब, जेकर तीर, सिरीफ पेट हे तेहा, काकर अऊ कइसे मन के बात सुन सकत हे।




साहेब किथे – बात सुने बर पेट थोरहे लागथे जी, ओला तो कान ले सुनना हे। हमर तीर कान कहां हे साहेब – मुखिया किहीस। साहेब बड़ अचरज म परगे। मुखिया के कान ल अपन हाथ म छुवावत किथे – ये काये जी ! हमर सरीर म पेट के अलावा दूसर अंग बनेच निये साहेब – मुखिया किथे। अरे भइया इही तो कान आय जी, येकरे ले तो सरी बात ला सुनत हस तभे तो जवाब देवथस। मुखिया किथे – देख साहेब, हमन गांव के मजदूर गरीब किसान आवन, हमर सरीर म, सिरीफ एके ठिन अंग हवय अऊ ओ अंग के नाव पेट आय, जेला ते कान कहत हस तेकर, अलग ले कनहो असतित्व निये, येहा पेट के अंग आय। हमन तुंहर कस बड़े मनखे थोरहे आवन जी, जेकर सरीर म कतको कस अंग रहि ……।
पेट तो हमरो तीर हे जी……. – साहेब के बात पूरा नी हो पइस ….., मुखिया फेर सुरू होगे – सुन साहेब, येहा तोर देखाये के पेट आय साहेब, खाये के पेट ला तहूं लुकाके को जनी कती मेर राखथस ! तुंहर खाये के पेट, मन के चनगुल म रहिथे अऊ दूसर के सोसन करथे। हमर खाये के पेट हमर सरीर के पोसन करथे अऊ मन ला बांध के राखथे … सेफला पेट म हाथ फेरत किहीस। मुखिया बड़बड़ातेच रहय – तुंहर जात के मनखे मन, मन बर, मन भर खाथय, हमन खाथन सिरीफ पेट बर … उहू आधा थोरहा…..। हमन खाथन त सिरीफ, हमर पेट भरथे। तूमन खाथव ते को जनी कती अऊ काकर काकर पेट म हमा जाथे ……। हमर पेट जगजीता आय साहेब…… जे बिहिनिया खाथे संझा रीता हो जथे। तूमन कतको खाथव अऊ कहीं खाथव, उगलव निही, कइसे कती पच जथे, को जनी पेट आय के ……। हमर मन कस मनखे, जेकर तीर सिरीफ खाये के पेट होथे साहेब, वो पेट कनहो ला दिखय निही। हमर पेट ला आज तक कोन देखे हे …….!




मुखिया गोठियातेच रहय – हमर आंखी कान नाक अऊ सरीर के जम्मो अंग हमर पेट भीतरी म रहिथे साहेब, तेकर सेती हमर पेट खाथे, तब येकर मन के पोसन होथे। तुंहर कस हरेक अंग म, केऊ ठिन पेट निये हमर तीर। तुंहर तो सरीर के हरेक अंग म पेट हे, जेहा जब पाये तब, चारो मुड़ा, भुखाये ताकत रिथे। तुंहर कस जेकर पेट दिखथे तेमन ला, अपन पेट भरे बर, न पछीना ओगरत ले मिहनत के आवसकता हे, न ईमानदारी ले कमाये के। जेकर पेट दूसर के मिहनत अऊ ताकत ले भरथे, तेला, अपन पेट बर, न सोंचे के आवसकता हे न बिचारे के, अइसन मन तीर, मन के बात सुने के टेम तो होबेच करही साहेब ……..।
साहेब किथे – निचट भकला हस यार मुखिया तैंहा। अरे भई, तोरे पेट बर तो मन के बात करे जावत हे। तैं नी सुनबे त कइसे जानबे के, तोर पेट बर, सुख सुभित्ता बर, सरकार डहर ले काये काये जोजना चलत हे।
मुखिया किथे – सरकार के कती जोजना हमर बर नी होय तिहीं बता, बीते सत्तर बछर ले हमर बर तरिया खनावथे, कुआं बनथे, सड़क आवथे, इसकूल खुलथे। फेर तिहीं बता मोर गांव म कती करा हाबे ये सब ….. ! येमन ला को जनी का धरती लील देथे के अकास चुंहक देथे …. वइसे कतको चील कऊंवा कुकुर मन ला कतको घांव मोर गांव के चक्कर लगावत कतको बछर ले अमरावत हन, कहूं उही मन तो …..!




बड़बड़ातेच रहय मुखिया – कागज म बिकास देखत डोकरा बबा मरगे। ददा के पीढ़ही घला सिरागे, हमरो जाये के पारी आगे। मुहूं ले बिकास फेंकत मनखे के, मन के बात सुना, अऊ कतका बरगलाहू तूमन। मन के बात झिन करव। ओकर कनहो आवसकता निये। हमर बर अतके करव के, अपन पेट के अकार ला, हमर पेट कस नानुक बना लव। अपन मन के पेट ला मसान घाट म दफना दव। सरीर के दूसर अंग म जामे पेट ला मुसेट के गड़िया दव, तब तहूं मनला दूसर के बांटा के नानुक चीज, गरगस लागे बर धर लिही। तब काकरो चीज ला लुकाये बर, हथियाये बर, खाये अऊ पचाये बर, फकत लबारी अऊ मीठ मीठ गोठियाये के आवसकता नी परही। जे दिन तुंहर पेट, हमर पेट के बरोबरी म आ जही उही दिन, तुंहर मन – हमर मन एकमई हो जही, तब न कुछ केहे के जरूरत हे न सुने के। बिन केहे सुने एक दूसर के बात समझ जबो तब, बिगन परचार, मोर गांव अऊ मोर देस, बिकास के रसदा म, दुनिया म अगुवा जही।

हरिशंकर गजानंद देवांगन, छुरा
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