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गीत

मनखे-मनखे एक समान

सुनो-सुनो ग मितान, हिरदे म धरो धियान।
बाबा के कहना “मनखे-मनखे एक समान”।।
एके बिधाता के गढ़े, चारों बरन हे,
ओखरे च हाथ म, जीवन-मरन हे।
काबर करथस गुमान, सब ल अपने जान।
बाबा के कहना “मनखे-मनखे एक समान”।।
सत के जोत, घासीदास ह जगाय हे,
दुनिया ल सत के ओ रद्दा देखाय हे।
झन कर तैं हिनमान, ये जोनी हीरा जान।
बाबा के कहना “मनखे-मनखे एक समान।।
जीव जगत बर सत सऊहें धारन हे,
मया मोह अहम, दुख पीरा के कारन हे।
झन डोला तैं ईमान, अंतस उपजा गियान।
बाबा के कहना “मनखे-मनखे एक समान।।
सांसा-सांसा संगी, सतनाम सुमर ले,
सत्संग करके तैं, चारोंधाम घूमर ले।
कहिथे पोथी-पुरान, कर सत के गुनगान।
बाबा के कहना “मनखे-मनखे एक समान”।।

डॉ पीसी लाल यादव
गंडई-पंडरिया
जिला- राजनांदगाँव