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कविता

मानवता गंवागे

मानुस जोनी के मानवता संगी अब कहा गवांगे रे
मीठ मदरस कस गुरुतुर बोली अब कहा नंदागे रे
ज्ञान के गठरी बांधे के दिन म लगे हे लिगरी चारी म
ताव देखावत हे सब मनखे अपन अपन हुशियारीम
अब्बड़ सुग्घर मानुस चोला धरम करम कमाए बर
बने बने सुख सुम्मत के गोठ हिरदे म समाये बर
कुसंग के रददा म जम्मों झन रेंगे सतमारग ल भुलागे रे
मानुस जोनी के मानवता संगी अब कहा गवागे रे
अधरम के ठीहा ल जम्मों झिन फलकावत हे
नानकुन बात म अब लाल आँखी देखावतहे
मीठ गोठ म घलो टेडगा गोठ गोठियावत हे
रातदिन हिंसा अउ मारकाट ला सोरियावतहे
भाईचारा ल छोड़ के अब कपट के बिजहा बोवागे रे
मानुस जोनी के मानवता संगी अब कहा गवागे रे

दीपक साहू “आभा”
मोहदी मगरलोड
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