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कविता

मरनी भात

मरे मा खवाये संगी मरनी भात
ये नो हे संगी सही बात
जियत ले खवाये नहीं जिंयईया ला
मरे के बाद खवाये बरा सोहारी अउ लाडू़ भात
छट्ठी मा खवा के लाडू़ भात
बताये अपन खुषी के बात
फेर मरनी मा खवा के लाडू़ भात
का बताना चाहत हस तिहि जान ?




ये नो हे संगी सही बात
मरे मा खवाये संगी मरनी भात
मरनी घर के मन पडे़ हे अपन दुख मा
ओ मन ला खुद के खाय के नई हे सुध हा
का खाहू ओकर धर के भात ला
मानवता के कुछ तो रखो लाज ला
सोग मरो थोकिन आउ बंद करो मरनी भात ला
ये नो हे संगी सही बात ह
मरनी मा खान हम मरनी भात ला

रवि विजय कंडरा
सिर्रीखुर्द, राजिम
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