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कहानी

मया के रंग : लघु कथा

सुकलू ह होली तिहार के दिन परछी मं बइठे रहिस। ओकर टुरा किशन ह अपन दाई ल बतावत रहिस, काकी ह अड़बड़ अकन रोटी बनावत हे, जतका झन काकी घर आवत हे, ओतका झन ल रोटी बांटत हे, फेर मोला नइ दिस हे। अपन लइका किशन के गोठ ल सुनके सुकलू ह अपन लइकापन ल सुरता करे बर धर लिस। सुकलू ह आठ बछर के रहिस त होली तिहार के दिन ओकर दाई सुखिया ह गउटनीन घर बुता करे बर गिस हे त ओकर पाछू-पाछू सुकलू ह तको गिस।गउटनीन ह बिक्कट अकन रोटी बनाय रहिस, जेन-जेन गुलाल लगाय बर आवय, ओ मन ल रोटी-पीठा देवत जावय। गउटनीन ह कहिस, पहाटनीन तोर बुता ह सिरागे होही, त घर जा, आज तिहार हरे। सुखिया ह कहिस, हव गउटनीन, बुता होगे हे, मेहां जावत हंव। सुखिया अउ सुकलू अपन झोपड़ी मं अइस हे, तहां गउटनीन के बेटा रघु ह ओकर झोपड़ी मं आके कहिस, चलना सुकलू होली खेलबोन। सुकलू-मय नइ खेलंव।रघु-काबर। सुकलू-हमर दाई ह रोटी नइ बनाय हे। रघु-काबर नइ बनइस। सुकलू-गरीबहा मन कहां रोटी बनाय सकबोन। तय हर अपन दाई करन ले मोर बर रोटी मांग के लाबे, त होली खेलबोन।रघु-अभीच लावत हंव। रघु ह अपन घर ले रोटी धर के सुकलू के झोपड़ी मं अइस अउ कहिस, दाई ह काहत रहिस, पहाटनीन ल रोटी देबर भुलागे रहेंव, बने करे हस मांगे बर आय हस त।देख दाई ह बहुतेच अकन रोटी दे हे। दुनों झिन के मुंह ह फूल असन फूलगे अउ होली खेले बर धर लिस। सुकलू के मन मं ये गोठ नइ अइस कि कइसे रोटी मंगावंव अउ रघु तको नइ सोचिस कि काबर रोटी लाहूं।अइसने सोचत रहिस ओतके बेरा ओकर भाई के टुरा गोलू ह अइस अउ कहिस, चलना किशन होली खेले बर जाबो। किशन-मय नइ जावंव। गोलू-काबर नइ जावच। किशन-हमर दाई ह रोटी नइ बनाय हे। गोलू-काबर नइ बनाय हे। किशन-हमर बहिनी ह आठ महीना पहिली गंवागे, तेकर सेती। गोलू कहिस, होली खेले बर नइ जावच त मय जाथंव दूसर टुरा ल संगवारी बनाहूं तहां ले ओकरे करन होली खेले बर जाहूं, कहिके दउड़त-दउड़त खोर डहार निकलगे। किशन ह नइ कहे सकिच कि तोर दाई करन ले रोटी मांग के लाबे, तहां होली खेले बर जाबोन। गोलू तको नइ कहिस, चल हमर घर रोटी खा लेबे।
मोर मन ह गुनत रहिस कि दिन-बादर के संग मं मया के रंग ह घलो बदलगे हे।

कु.सदानंदनी वर्मा
रिंगनी (सिमगा)
जिला-बलौदाबाजार (छत्तीसगढ़)
मोबाइल-7898808253
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2 replies on “मया के रंग : लघु कथा”

बहुत बढ़िया कहिनी। बधाई हो

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