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व्यंग्य

मिसकाल के महिमा

मोबाइल आए से लइका सियान सबो झन मुंहबाएं खडे रहिन हे। जब देखव, जेती देखव गोठियाते रहिथे। जब ले काल दर ह सस्ता होइस तब ले किसिम-किसिम के चरचा शुरु होगे हे। सारी के भांटो से, प्रेमका के प्रेमी से, आफिसर के करमचारी से, शादीशुदा के ब्रह्मचारी से, घरवाली के घरवाले से, अऊ घरवाले के बाहिरवाले से। गुप्त चरचा, मुखर चरचा, आदेश, संदेश, डांट-फटकार, गाली-गलौज, ब्लेक मेल, प्रेम प्रस्ताव, अउ चुगली सब्बो के एके साधन हे मोबाइल।
खखोरी में फाइल दबा के बात करत पहिली साहेब शुभा मन ल देखन। अब टेटकू, बैसाखू, गनपत, चम्पत सबो झन मोबाइल धरे दिखथे। मोबाइल ह मोबाइल नइ हो के चना मुर्रा हो गे हे। जेला देखबे तेखर जेब म धराय रहिथे। टूरी, टनकी, बनिहार, रिक्शावाला, सबो झन मोबाइल के दीवान होगे हे। जतका मोबाइल, ओतके कालर टयून, ओतके फोटू ओतके गाना। घड़ी, केल्कुलेटर, केमरा, कलेण्डर, टार्च, अलारम, कोन जनी अऊ काय-काय सुविधा हे। ओखर ब्लूटूथ ह अपने कस फिल्म घलो देखाथे। वो ब्लूटूथ ह अइसे दांत ये जेन ह एक बार गड़गे त मइनखे ह जनम भर बर जहरीला हो जथे। जहर के रंग घलो नीला होथे। ब्लूटूथ ह चारों कुती जहर बगरावत हे। लइका बिगड़गे सियान बिगड़गे, साधु बिगड़गे, शैतान बिगड़गे। इही ब्लू टूथ के ब्लूटूथ हे। सिम ह चॉकलेट से घलो सस्ता हो गे हे। बने चॉकलेट ह दस रुपिया से कम म नई मिलय पर सिम ह पांचे रुपिया में मिल जथे। सिम ल लगा के सिम-सिम खुलजा बोलथे तहां ले अलीबाबा ह चालीसों झन चोर संग गोठियाथे।
पहिली भैरा मइनखे मन कान में ठेठा गोंजे कस मशीन लगाय राहय। अब नान-नान टुरा मन कान में ठेठा लगाय मोबाइल म गाना सुनत रहिथे। जेन नइ जानय तेन सोचथे कि ये टुरा ह नानपन म ही कइसे भैरा हो गे हे।
जुन्ना कहावत हे मौत अउ गिराहिक के कोई समय नइ होवय कभू भी आ जथे। अब उहू बात ह फेल हो गे हे। अब एके बात ह परसिध हो गे हे कि मोबाइल काल के कोनो भरोसा नइ हे कहां रहिबे अउ आ जही कोनो नइ जानय। कोनो दू नम्बरी काम में बइठे हे त कोनो एक नम्बर के डिवटी अटेंड करत हे। लेकिन फोन बाजगे तब जनेऊ ल घलो उलेरे बर भुला जथे। एक नम्बर कमरा से निकले के बाद भी कान म जनेऊ ह गुमटाय रहिथे। कभू-कभू आदमी ह बेचैन (चैन लगाए बर भुलाथे) घलो हो जथे।
मोबाइल के आय से सबसे जादा कुछु बढ़े हे तब ओ हे टेंसन। कोनो गारी दीस त टेंसन, कोनो बलाइस अउ नइ गे तब टेंसन, खावत-खावत हितू पिरीतू के समाचार मिल गे तब टेंसन में खाना नइ खवावय, अभीच जाय बर परही। बिचारा मोबाइल धारक मन अतका टेंसन म आ जथे कि ठण्डा-ठण्डा कूल-कूल होय बर तेल के सरन में जाय ल लगथे। पर अमिताभ बच्चन ह तेल ल तेल घलो नइ काहन दें। कहिथे सर ये तेल नहीं नवरत्न हे- टेंसन जाय पेंसन लेने। पर टेंसन ह पेंसन लेबर कभूनइ जावय काबर कि ओ हा रिटायर ही नइ होवय। सदा अपन काम में डंटे रहिथे।
मोबाइल के आय ले सिम, टॉपअप, वेल्यू वाउचर, ब्लूटूथ, मेमोरी कार्ड, टेरिफ बैलेंस, रिचार्ज, एसएमएस, मिसकाल ये सब ला सबो देश अपन-अपन आविस्कार बतावत हे। अमेरिका कइथे मोबाइल ह हमर खोज ए। चाइना कइथे सिम कार्ड ह हमर खोज ए। जापान कहिथे एसएमएस ह हमर खोज ए। कोरिया कहिस ब्लूटूथ ह हमर खोज ए। भारत काबर पीछू रहितिस, उहू कहिस मिसकाल ह हमर खोज ए। भारत के बयान ल सुनके परोसी देस के मंत्री के बयान आगे कि मोबाइल म पहिनाय के चड्डी (कवर) हमर खोज ए। समाचार लिखत ले झगरा चालू रहिस हे।
मिसकाल के महिमा ह भगवान के महिमा से बढ़ के हे। देस के जनता के सर्वे कराय जाही तब कतको मन संकर के भक्त बनही, कतको दुर्गा, कतको हनमान के नगर मिसकाल के भक्त तो देश के जम्मो जनता हे। मिसकाल ह जम्मो देवता ल पछाड़ के पहिली पायदान म आ गे हे।
शुरू-शुरू में जब मोबाइल आइस तब मिसकाल काहय तब मैं ये समझौ कि कोनो कुंवारी टूरी ह बलावत होही पर बाद में पता चलिस अइसन नोहय। जब सारी ह भांटों से एकांतवासी चरचा करे बर राहय तब सारी ह भांटो ल मिसकाल करय। पइसा भांटो के उड़ावय पर गोठियाय के मजा सारी ह लेवय। सारी-भांटों के प्रेमलीला के साइड इफेक्ट कंजूस मइनखे मन ऊपर होइस। कंजूस मन घलो मिस काल के फायदा उठाइन। अभी ये मिसकाल के वायरस ह गांव शहर के गली-गली में फइल गे हे। ये ह स्वाइन फ्लू से जादा खतरनाक हो गे हे। मिसकाल करइया मन उल्टा बद्दी देथे। कइसे जी मिसकाल करे हंव तभो ले फोन नइ लगाय हस? जइसे गरज मिसकाल करइया के नहीं, फोन उठइया के हे। तोला गोठियाय के संउख लगही तभो ले मोर पइसा जाही। जइसे मोर घर में पइसा के पेड़ लगे हे। हलाहूं बीनहूं अउ बांटते-बांटहूं।
मोला मिस काल करइया मन ल देख के होले तिहार के याद आ जथे। होले तिहार म जिवचब्बा मइनखे मन बिना रंग-गुलाल धरे होले खेले बर निकल जथे। मटमट ले आपू में आ के खड़े हो जथे। जब आघू म खडे हो जाथे तब ओमन ल गुलाल लगाएल पड़थे। अउ ओमन के बारी आथे तब हमरे गुलाल ल खखोल के मुठाभर निकालथे अउ हमरे चूंदी-मुड़ी म लगा देथे। चल तिलक लगा के काम चला लौं अइसने नइ काहय। फोकट म पाय, मरत ले खाय।
मिसकाल करइया महान आतमा मन ल मैं पैलगी करत हौं। काबर कि ओमन हमला उदार बने रहे बर प्रेरित करथे। ओमन हमला मिसकाल करथे हमन उनला काल करके ऊंखर जीव जुड़ावत ले गोठियाथन। पर ये परोपकार में के पाइंट के पुन मिलही तेला चित्रगुप्त ह जानही हम नइ जान सकन काबर कि चित्रगुप्त ह अपन नाम के कोनो वेबसाइट नइ बनाय हे जेला खोल के हम जान सकन कि हमर एकाउंट म कतका पुन जमा होय हे।
जय हो जय हो मिसकाल करइया
अपन बचइया, हमर उड़इया
तोर बर तो हे सिरिफ मिसकाल
हमर बर हे जी के जंजाल
मिसकाल के आरती जो कोई जन गावै
सुग्घर मइनखे के पदवी सस्ता में पावै।

डॉ. राजेन्द्र पाटकर ‘स्नेहिल’