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कविता

मोर छत्तीसगढ़ कहां गंवागे

मोर छत्तीसगढ़ कहां गंवागे संगी
कोनो खोज के लाववं
भाखा बोली सबो बदलगे
मया कहां के मैंय पाववं

कहानी किस्सा सबो नंदागे
पीपर पेड़ कटागे
नई सकलाय कोनो चाउंरा म
कोयली घलोक उड़ागे
सुन्ना परगे लीम चाउंरा म
रात दिन खेलत जुंआ
दारु महुरा पीके संगी
करत हे हुंआ हुंआ
मोर अंतस के दुख पीरा ल
कोनो ल मैंय बतावं
मोर छत्तीसगढ़ कहां गंवागे संगी
कोनो खोज के लाववं

जंवारा भोजली महापरसाद के
रिसता ह नंदागे
सुवारथ के संगवारी बनगे
मन म कपट समागे
राम-राम बोले बर छोड़ दिस
हाय् हलो ह आगे
टाटा बाय् बाय् हाथ हलावत
लईका ईसकुल भागे
मोर मया के भाखा बोली
कोन ल मैंय सुनाववं
मोर छत्तीसगढ़ कहां गंवागे संगी
कोनो खोज के लाववं

छानी परवा सबो नंदावत
सब घर ह छत बनगे
बड़े बड़े अब महल अटारी
छत्तीसगढ़ म मोर तनगे
नईहे मतलब एक दुसर ले
सहरी पन आगे
नई चिंन्हें अब छत्तीसगढ़ के आदमी
दुसर सही लागे
लोक लाज अउ संस्कृति
कईसे मैंय बचाववं
मोर छत्तीसगढ़ कहां गंवागे संगी
कोनो खोज के लाववं

धोती कुरता कोनो नई पहिरे
पहिरे सुट सफारी
छल कपट बेईमानी बाढ़गे
मारत हे लबारी
पच पच थुकत गुटखा खाके
बाढ़त हे बिमारी
छोटे बड़े कोनो मनखे के
करत नईहे चिंन्हारी
का होई भगवान अब
कोनो ल मैंय गोहराववं
मोर छत्तीसगढ़ कहां गंवागे संगी
कोनो खोज के लाववं

जगा जगा लगे हावय
चाट अंडा के ठेला
दारु भट्ठी लगे हावय
दरुहा मनके मेला
पीके सब झन माते हावे
करत हे बरपेला
बिगड़त हावे छत्तीसगढ़ लईका
कईसे मैंहा समझाववं
मोर छत्तीसगढ़ कहां गंवागे संगी
कोनो खोज के लाववं!!

✍पंचमसिंह नेताम “पंच”
तेलीटोला टप्पा,डोंगरगढ़




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