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कविता

मोर गाँव के बिहाव

नेवता हे आव चले आव
मोर गाँव के होवथे बिहाव।

घूम घूम के बादर ह गुदुम बजाथे
मेचका भिंदोल मिल दफड़ा बजाथे
रूख राई हरमुनिया कस सरसराथे
झिंगुरा मन मोहरी ल सुर म मिलाथे
टिटही मंगावथे टीमकी ल लाव।।1।।
असढ़िया हीरो होण्डा स्प्लेण्डर म चढ़थे
मटमटहा ढोड़िहा अबड़ डांस करथे
भरमाहा पीटपीटी बाई के पाछू घुमथे
घुरघुरहा मुढ़ेरी बिला ले गुनथे
चोरहा सरदंगिया डोमी खोजै दांव।।2।।
बाम्हन चिरई मन बने हे सुहासीन
अंगना परछी भर चोरबीर चोरबीर नाचीन
कौंआ चुलमाटी दंतेला बलाथे
झुरमुट ले बनकुकरी भड़ौनी गाथे
झूमै कुकरी कुकरा छोड़ौं का खांव।।3।।
रउतीन कीरा मन बैठक म गोठियाथे
परगोतिया मन हॅ अपनेच ल बलाथे
रंग रंग के कीरा सम्हर सम्हर आगे
ठउका बेर बत्तर के नाव बुझागे
जुटहा माछी मन ल मैं का बतांव।। 4।।
केकरा गाड़ी रोकै हाथ ल हलावै
चांटीमन चढ़े बर लाइन लगावै
अतलंगहा बड़े माछी चिमट के भागे
गुस्सेलहा बिच्छी हॅ देथे घुमाके
मंसा कहय सुन कहानी सुनांव।।5।।
परिया कुंवारी के तन ह हरियागे
रेटही बूढ़िया झोरी मन ह फुन्नागे
मेंड़ संग पानी ह खेलै बितांगी
टीप खेलै कोतरी अऊ डेमचुल सरांगी
पूछै मेछरिया मुसकेनी महुं आंव।।6।।
नांगर बैला मन अखाड़ा देखावै
हरदाही खेले बर चिखला बलावै
भैंसी भैंसा मन ह हरदी चुपरावथे
चमकुलिया बिजली ह फोटू उतारथे
खाना हे लाडू चलो ताली बजाव।।7।।
बारी बेला मन ह मंड़वा सजावथे
तितली फांफा मन ह लइका खेलावथे
पंड़की अऊ पंड़का पगरइत पगरइतीन
गांठे जोराये हे नइ छूटय गउकीन
सलहई मन परिया म भजिया बनांव।।8।।
जिमिकांदा ऐंठै मुद्गर निकाल के
कांदी कोला चुप झांकै उघार के
डर के मारे बेरा कती लुकागे
अब्बड़ तो तपे हे अब पसिनयागे
अंटियावय गेंगरूवा खाके पुलाव।।9।।

धर्मेन्द्र निर्मल
ग्राम व पोस्ट कुरूद भिलाई
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