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कविता

मोर महतारी

मोर महतारी बढ़ दुलारी,
मया हे ओखर मोर बर भारी।
अंचरा म रखे के मोला,
झुलाथे मया के फुलवारी।
महेकत रइथे मोर दाई के,
घर अंगना अउ दुवारी।।।
जग जानथे महतारी ह,
होथे सब्बो ल प्यारी।
कोरा म धर के लइका ल,
जिनगी करथे उज्यारी।
मोर महतारी बढ़ दुलारी,
मया भरे हे ओखर म भारी।

अनिल कुमार पाली
तारबाहर बिलासपुर छत्तीसगढ़।
प्रशिक्षण अधिकारी आई.टी.आई मगरलोड धमतरी।
मो.न.-7987766416
ईमेल:- anilpali635@gmail.com
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