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कविता

मोरो बिहा कर दे

गाँव में सरपंच घर ओकर बड़े लईका के बिहाव में तेल हरदी चढ़त रहीस हे, सगा सोदर सब आय घर अंगना गदबदावत रिहीस फेर ओकर छोटे बाबू श्यामू ह दिमाग के थोरकिन कमजोरहा रिहीस पच्चीस साल के होगे रिहीस तभो ले नानकुन लईका मन असन जिद करत रिहीस I ओहा बिहाव के मायने का होते उहूँ नीं जानत रिहीस, तभो ले अपन बड़े भैय्या ल देखके ओकरे असन मोरो बिहा करव कईके अपन दाई ल काहत रहय I सहीच में मंद बुद्धि के मनखे ले देखबे अउ ओकर गोठ ल सुनबे ते सोगसोगावन लागथे I

दाई ओ महूँ ल हरदी लगादे,
तेल चघा के मंऊरे पिहना के
महूँ ल दूलहा बना दे I
दाई ओ ऐदे मोरो बिहा करादे I

बाजा लगा दे मोटर ल सजा दे,
भैय्या असन कुरता पेंट पिहना दे I
ददा ल कहिदे बरतिया सन जायबर,
दीदी करा मोरो मंऊर सौंपा दे I

जाबो बरात लाबो दुलहनियां,
नाचबो गाबो सरी मंझनिया I
कोंदा ल नचाबो लेड़गा ल नचाबो,
लाड़ू ल मारके लाड़ू ल ढूलाबो I

बांध के गठरी सोंहारी ल लाबो,
बरा अऊ भजिया के रार मचाबो I
दाई ओ ऐदे मोरों बिहा करा दे
थोरकिन फूफा ल घोड़ी बनादे I

विजेन्द्र वर्मा अनजान
नगरगाँव (जिला –रायपुर)

One reply on “मोरो बिहा कर दे”

बहुत बढ़िया रचना बधाई हो

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