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कविता

मुसुवा के पीरा

मुसुवा कहय अपन प्रिय स्वामी गनेश ले।
कब मिलही मुक्ति प्रभू कलजुग के कलेश ले।

बारा हाल होही अब गियारा दिन के तिहार मा।
बइठाही घुरुवा कचरा नाली के तीरतार मा।

बिकट बस्साही छपके रबो मुँह नाक ला।
माटी मिलाही प्रभू हमर दूनों के धाक ला।

आनी-बानी के गाना ला डी.जे मा बजाही।
जोरदरहा अवाज सुन-सुन हमर माथा पिराही।

जवनहा लइकामन रंगे रहीं भक्ति के रंग।
पंडाल भीतरी पीही खाहीं, करहीं उतलंग।

सेवा के नाँव मा मेवा ये मन पोठ खाहीं।
नइ बाँचही तहाँ ले मोर नाम बद्दी धराहीं।

गणेश पूजा के असल महत्तम ला इन भूलात हें।
दुनिया भर के फेशन धरम-करम मा मिलात हें।

हे लम्बोदर अपन सूँड़ ला अब तो लमा।
भक्तन ला सदबुद्धि आय जुगाड़ ये जमा।

गणेश पूजा के नाँव मा ठट्ठा झन करँय खेल।
देशभक्ति अउ जनहित के खच्चित करँय मेल।

जन-जन के कल्याण होय अइसन भल काम करँय।
अपन सुवारथ बर हम दूनों ला झन बदनाम करँय।

कहे बोले मा नइ मानही ता अलकरहा डाँड़ लेबे।
करम दंड़ बर भूकंप, अकाल, सुनामी अउ बाढ़ देबे।

कन्हैया साहू “अमित”
शिक्षक-भाटापारा(छ.ग)
संपर्क~9200252055