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कविता

नंदागे

नंदागे
आते सुघ्घर गांव नंदागे
बर पिपर के छाव नंदागे
माया पिरित ला सब भूला के
सुनता के मोर गांव नंदागे
भउरा बाटी गुल्ली डंडा
घर घुधिया के खेल नंदागे
किसानी के दवरी नंदागे
अउ नंदागे कलारी
जान लेवा मोटर-गाडी
नंदागे बइला गाडी
आमा के अथान नंदागे
नंदागे अमली के लाटा
अंजोर करइया चिमनी नदागे
अउ नंदागे कंडिल
पाव के पन्ही नंदागे
आगे हाबे सेंडिल
देहे के अंग रक्खा नदागे
अउ नंदागे धोती
बरी के बनइया नंदागे
होगे येति ओति
किसान के खुमरी नंदागे
अउ नंदागे पगडी
घर के चुल्हा हडिया नदागे
अउ नंदागे लकडी
देख के मोला रोवसी लागे
ये का होवत हे संगी?

रवि विजय कंडरा
सिर्रीखुर्द,राजिम
मो.नं.-7440646486
ई-मेल-ravivijaykandra@gmail.com

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