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गोठ बात

कलजुगी नारद




जुन्ना समे म काकरो बनत काम ल बिगाडे बर, ककरो बिगडे रद्दा ल बनाय बर, एक-दूसर ल झगरा-लडुई कराय बर नारद मुनि के परमुख बुता राहय। सतजुग, त्रेता, दुवापर जम्मो जुग म वोहा कोनो न कोनो जघा, बेरा-बखत म खचित उहां पहुंच जाय। अपन बुता ल नेते तभेच दूसर काम म मन लगाय। नारद मुनि ह न ककरो ले इरसा रखाय न कोकरो बिगाड करे के सोचय। वोहा जब देखय के ककरो उप्पर अलकर समे हे वो बात ह बता देवय अउ समसिया ल सुलझाय पर अचूक उदिम घलो समझा देवय। भले वोला जम्मोझन चुगलहा के नांव ले जानय, फेर वोहा घेरी-बेरी काकरो न काकरो भलईच के काम करय अड कराय के सेती एक्को पइसा दान-पुन नई लेवत रिहिस। सियान मन कहिथें- तइहा के बात ल बइहा ले गे। ये समे घलो नारद हे। ऐकरो काम वो पाहरो के नारद जइसन हे। फेर, वो बखत एके झन नारद राहय जडन ह जम्मो जुग के काम-बुता ल सरकाय। ऐ समे क्लदुष्ट ग हे। त नारद मन के संखिया जादा हेंरै गे हे। काबर कि वो समे भगवान मन के संखिया कमती रिहिस हे। अब भगवान मन के गिनती म बढोतरी हो गे हे। इंकर परकार ह घलो बदल के दू परकार हो गे हे। पहिली म बडका भगवान अउ दूसर म नान्हे भगवान।

लखपति, करोड्पति, अरबपति, खरबपति जइसन उद्योगपति अड राजनीतिक बिभाग के बडका-बडका कुरसीपति मन ह बडका भगवान के गिनती म आथे। अउ, इंकर ले खाल्हे कुरसी म बइठइया बडका साहेब, अधिकारी मन ह दूसर परकार के भगवान होथे। त भगवान के बिचार के मुताबिक परिचे अड पहुंच ल जादा अड कमती ल देखके नारद मन के घलो कद अउ पद ह घटत-बढत रहिथे। इंकरो परकार ह बदलत रहिथे। येमन काकरो काम बनही कि नइ बनय, काकरो उप्पर अलकर समे अवइया हे कि नइ अवइया हे अउ ककरो समसिया ह सुधरही कि नट सुधरय, जम्मो बात ल कुछु समे आघू बता देथे फेर ये समे के नारद मन ल ये जम्मो बात ल जाने बर दान-पुन करे बर परथे।




छोटे किसम के नारद मन तो गांव-गांव अउ घर-घर म होगे हे, जडउन ह मनखे संग मनखे ल लडाय के, मारपीट करवाय के अउ थाना-कचहरी म पहुंचाय के बुता करथे। इंकर सेती ये समे घरोघर ह कबड्डी के मइदान बनगे हे अउ गांव-गांव ह कुरुछेत्र। बडका परवार देखव म नई मिलय। लइका मन के बर-बिहाव होइस तहां ले नारद मन के दया-मया ले अकेल्ला अउ हरहिंछा जिनगी जिये बर धर लेथें। दाई-ददा ले बांटा-हिस्सा ले लेथें। एकठन अउ बात हे। वो समे के नारद मुनि ह बबा जात रिहिस हे। अब के नारद मन ह बबा जात अउ माइलोगन जात दूनों किसम ले देखे बर मिलथे। ये जम्मो मयारूक नारद मन के हिरदे म अनख अड इरखा ह गाडा-गाडा भरे रहिथे। काकरो बनत अड बढहत परवार के सुनता-सुलाह ल के, एक-दूसर म झगरा-लडुई के करिया चारा ल डार देथें। तहां ले थाना-कछेरी पहुंचा के दूनों डाहर ले, यहू पार अड बहू पार के मनखे मन करा ले दुहानू गाय के बरवाही बरोबर जतेक बिचार होथे वोतेक पइसा ल ओसरी-पारी दूहत रहिथें। ये समे के नारद मन ह अडचन आय म ठडका बखत म पहुंच जथे, फेर एकाद कन भोग लगाय बिना, दान-पुन चढाय बिना थोरको काम नई करय। तेकर सेती इंकर मन के नांव ल हाइटेक के जमाना म बदल के दलाल के नांव ले सुने बर मिलथे। इही मन ह कलजुगी नारद आय।

बीरेन्द्र कुमार साहूू
नेवई, दुर्ग, छत्‍तीसगढ़