Categories
कविता

नवा बिहान

नवा बछर के नवा अंजोर,
थोकिन सुन गोठ ल मोर।
उही दिन होही नवा बिहान,
जेन दिन छूटही दारू तोर।

तोला कहिथे सब झन चोर,
कोठी के धान बेचे बर छोर।
उही दिन होही नवा बिहान,
जेन दिन छूटही दारू तोर।

जगा-जगा सुते दांत निपोर,
मांगथस तै चिंगरी के झोर।
उही दिन होही नवा बिहान,
जेन दिन छूटही दारू तोर।

बाई के झन मुड़ी ल फोर,
मया के माटी मं घर ल जोर।
उही दिन होही नवा बिहान,
जेन दिन छूटही दारू तोर।

लइका बर जहर झन घोर,
खेलय सुघ्घर गली-खोर।
उही दिन होही नवा बिहान,
जेन दिन छूटही दारू तोर।

सियान करन झन नाता टोर,
दाई-ददा के तै हाथ अउ गोर।
उही दिन होही नवा बिहान,
जेन दिन छूटही दारू तोर।

कु.सदानंदनी वर्मा
रिंगनी {सिमगा}
मो. न.-7898808253
[responsivevoice_button voice=”Hindi Female” buttontext=”ये रचना ला सुनव”]