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कहानी

कहिनी : राजा नवयुग के मंत्रीमंडल

सतराज नाव के बड़ सुग्घर राज्य मा सत्यबीर सिंह नाव के प्रतापी राजा राज करय, वइसे तो ओखर नाम बीर सिंग ही रीहिस, फेर जब वोहा राजा बनिस तब राज परंपरा निभाय खातिर बीर सिंह के नाव के आघू मा सत्य जुडगे, ये परंपरा ला उँखर पुरखा मन तइहा जमाना ले चलाय रीहिन, उँखर कहना रीहिस कि राजा ला गियानी अउ पराकरमी होये के संग सत्यवान होना जरूरी हे, अइसे भी सत्य अजेय अमर हे, ये गोठ ला सबो झन तइहा ले मानत हे, अउ वोमन सत्य ला अपन कुलदेवँता घलो माने। उहाँ के मानता रीहिस कि सत्य के रहत ले ना कोनों बिपत आये ना कोनों ये राज्य ला जीत सके। त इही सोच के संग राजा के नाव मा सत्य जोडे के परंपरा रीहिस, अउ येखर असर मा ओखर राज्य म लोगन हाँसी खुसी ले रहय।
राजा हा अपन मंत्रीमंडल मा सबले ज्यादा मंत्री संतोष ला पसंद करे। संतोष के रहत ले राज्य मा कोनों ल काहीं अड़चन नइ होवत रीहिस, छोटे-बडे सबो बिपत ला वोहा अपन सूझबूझ ले संभाल डरे। निच्चट सिधवा संतोष दूसर के गोठ अउ उपकार माने बर कभू पाछू नइ रहय, अउ अपन मानगुन कभू नइ खोजय, ओखर रेहेच ले कतको अकन झगरा बिपत टल जाये। वोला कतको झन डरपोकना घलो समझे, फेर ओखर गुन ला राजा जाने तभे तो वोहा वोला अपन अंतस मा घलो जगा दे रीहिस।




अब संतोष के सूझबूझ अउ राजा के मिहनत पराकरम के सेती राज्य के यस-जस हा चारो कोती बगरगे, राज्य के मनखे मन सबो बेरा खुस रहय, धन दौलत कुठार कोठी घलो उन्ना दुन्ना होय लागिस, अउ बिपत म परे मनखे ल पंदोली देके लोगनेच मन हा बिपत ले उबार डरे, अइसन म राज्य के नकसान थोरको नइ होवय, अउ राज्य के जनता के पोठ होय ले राज्य घलो पोठ्ठावन लागिस।
फेर अउ आने राज्य मा संतोष असन मंत्री नइ राहय, अउ ओमन सतराज असन खुस नइ रहे सकय। त दुनिया भर के सबो राज्य मा सतराज अतका सुखी कइसे हे कइके कारन के खोज भीतरे-भीतर करे लागिस। त जलनराज के राजा पापचंद हा सोचथे, कि मेहा सतराज ला हरा के अपन राज्य मा सँघेर लुहूँ, त मोरो राज्य सतराज असन सुखी हो जही। इही सोच के वोहा इरखा बैर अउ लालच ल सतराज के कमजोरी पता करके भीतरघात अउ छल ले जीत पाये खातिर उदीम करे बर कथे, काबर कि वोहा जानत रथे कि सत्य अउ संतोष के रहत ले, सोज जुद्ध करके जीतना संभव नइये।
राजा पापचंद के आदेस पाके इरखा बैर अउ लालच हा जुगत लगाथे, फेर सत्य अउ संतोष के रहत ले उँखर एको उदीम काट नइ करे, त ओमन ताक म रथे, कि कभू तो मउका मिलही ओतकी बेरा सेंध लगा के खूसर जबो।
अउ ये डहर ये सब सडयंत्र ले अनजान, राजा सत्यबीर सिंह डोकरा होवत रथे, अउ बेरा बदले के संगे-संग ओखर बेटा नवयुग हा बाढ़त जथे, नवयुग के तेवर अउ काम-काज, बोलचाल सबो हा राजपरिवार के आने मनखे मन ले अलग ढंग के लागय, फेर जम्मों झन सोचथे कि राजा के लइका त कुछू नवा ढंग के कारज ले राजपाठ अउ दिन दुनिया ला देखही, इही सोचके मनखे मन नवयुग के वाहवाही करे।
धीरे-धीरे नवयुग के बूता हा अउ अलकरहा होय लागथे, फेर जम्मों झन वोला नवा संस्कृति अउ परंपरा के नाव ले अपना लेथे। अउ नवयुग हा जम्मों मनखे, मंत्री, अउ परंपरा ले बड़का माने जाथे, अब राजा सत्यबीर सिंह ला अथक होवत देख के नवयुग ला पूरा बाढ़े के पहिलीच राजा अउ मंत्रीमंडल हा सतराज के राजकुमार बना देथे।
त नवयुग हा अब मेहा राजकुमार बनगेंव, मिही भावी राजा हरँव कइके अपन मनमानी करे लागथे, अउ एक घँव राजा कर दूसर राज्य मा घूमे बर जाये के अनुमति माँग डरथे, राजा हा खतरा भाँप के, वोला संतोष संग जाये के सरत मा अनुमति दे देथे। अब नवयुग हा राज्य ले तो संतोष संग निकलथे, फेर वोला डोकरा संतोष संग घूमे मा लाज लागथे, त वोहा संतोष ला आने बूता मा अरझा के धोखा देके अपन अकेल्ला घूमे बर भाग जथे, अउ इही बेरा के ताक मा तो इरखा बैर अउ लालच बइठे रथे, नवयुग ला अकेल्ला पाके वोमन तिर मा ओधियाथे, अउ मीठ-मीठ गोठिया के मितानी कर डरथे, नवयुग हा झट ले उँखर परभाव मा आ जथे, अउ जब नवयुग हा लहुटथे त अपन रथ मा बइठार के वो तीनों झन ला राज्य मा ले आनथे।
संतोष नवयुग के पहिलीच राज्य मा लहुट जाये रथे, अउ राजा ला सबो बात ला बता डारे रथे, फेर जब नवयुग आथे त राजा वोला बेटा हरे कइके कुछू नइ कही सके। अउ नवयुग हा इरखा बैर लालच ला अपन राज्य मा किंजरे के अनुमति घलो दे देथे, अब ये तीनों झन लोगन संग कउखन मितानी कर लेथे, अउ संतोष के बिरोध मा मनखे मन ला उकसा देथे, अउ नवयुग ला राजा बने के लालच देके, राजा ला धीरे-धीरे चारी-चुगली अउ छल-कपट के जहर दे बर कथे, ये जहर के सेवन ले राजा सत्यबीर हा धीरे-धीरे दुबराके मर जथे।




राजा मरथे ताहन नवयुग हा राजा बनथे, फेर इरखा बैर लालच के केहे मा अपन नाव के आघू मा सत्य नइ लिखे। तब बेरा ला अपन पाले मा जान के पापचंद हा नवयुग ला कथे ते मोर अधिनता मान ले, नइते राज्य मा हमला करके मेहा सबला हथिया लुहूँ, अब नवयुग हा अपन हाथ मा तो काहीं बनाये नइ रहय ! पुरखा के बनाये धन अउ नाव ला दूसर के गोड़ मा राखे बर चिटिक बिचार नइ करे, अउ झटले वोला मितान बना लेथे।
तब पापचंद अउ नवयुग हा मिलके ये समिलहा राज्य के नाम कलयुग राख देथे, अउ अपन राज्य के राजा तो नवयुग ही रथे, फेर इरखा बैर अउ लालच ला उहाँ के मंत्री बना के बइठार देथे। नवयुग हा पहिली ले वोमन ल मितान समझे त वोहा ये बात मा कोनों बिरोध नइ करे।
अब नवयुग के राजतिलक के दिन आथे त वोहा अपन कुलदेवँता सत्य के मुर्ति करा जाथे त वोला वोखर ठऊर मा नइ पाये, ताहन अपन पूर्व मंत्री संतोष ला खोजवाथे त वहू नइ मिले। त वोहा धरम डोकरा ल वोखर मन के बारे मा पूछथे, त धरम डोकरा अब्बड़ हाँसथे अउ कथे- सत्य अउ संतोष इँहा रतिस त ये पापचंद, इरखा, बैर, लालच मन इँहा कभू नइ आतिन। अउ अब महूँ जावत हँव काबर कि जिहाँ सत्य अउ संतोष रही उँहें महूँ रइहूँ, उँखर बिना इहाँ मोर दम घूटथे।
नवयुग थोकन मुडी ला गडियाथे फेर वोला ज्यादा फरक नइ पड़े, वोहा सोचथे कि ले येमन चल दिस त का होगे हमर करा खुसी तो हवय, फेर एक झन सैनिक हा नवयुग के कान मा आके बताथे, कि सत्य संतोष अउ धरम के संग मा खुसी घलो राज्य छोड़ के चलदिस, त नवयुग हड़बडा जथे, अउ वोहा पहिली ले ज्यादा सुंदर नकली खुसी ल बुलवाथे, अउ सत्य, संतोष, धरम के मुखौटा बनवा के जनता ला ठगे लागथे। अउ उही नकली खुसी अउ मुखौटा के फेर मा लोगन आज ले ठगावत हे।

ललित साहू “जख्मी” छुरा
जिला-गरियाबंद (छ.ग.)