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व्यंग्य

आऊटसोरसिंग

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मंगलू अऊ बुधारू खुसी के मारे पगला गे रहय। लोगन ला बतावत रहय के, हमर परदेस के किरकेट टीम ल रनजी टराफी म खेले के मउका मिलगे। गांव के महराज किथे – ये काये जी ? एमा खुस होये के काये मतलब हे ? सरकार ल खुस होना चाही। किरकेट के समान बेंचइया अऊ खेलइया ल खुस होना चाही। बुधारू कहत रहय – हमर बेटा मन कालेज के बड़े किरकेट खेलाड़ी आय, ऊंखर खेल ल देखके, ऊंखर चयन, परदेस के टीम म होवइया हे। समारू किथे – निचट भकला हो जी तूमन। नानुक सरकारी कालेज, जिंहा खेले के सुभित्ता एक डहर, पढ़हे के सुभित्ता तको निये, तेमा पढ़हइया ल, कोन बड़े जिनीस नाव अऊ काम मिल जही ? कोन ओकर खेल ल देखके, मोहा जही तेमा ? मान लो कन्हो मोहाइचगे, त ये रनजी – फनजी टराफी बर मेच खेले ले का होही ? मंगलू जवाब दीस – तूमन ल कहींच समझ निये खेलकूद के। तूमन जिनगी भर नांगरजोत्ता के नांगरजोत्ताच रहू। अरे उंहा बने खेलही त, आई. पी. एल. के कन्हो टीम मालिक के नजर में नी आही जी ……।




कभू बाप पुरखा सुने नी रहय समारू, पूछ पारीस – ये आई. पी. एल. खेले ले काये होही ? मंगलू किथे – जिंहा एकेक रन बनाये के अऊ टीम म सिरीफ नाव लिखाये के, बड़ पइसा मिलथे कथे बइहा………….उही आई.पी.एल.आय। बिहान दिन मनडल बने बर, गांव म बइठका सकलागे। जम्मो झिन अपन अपन लइका ल किरकेट खेले बर भेजे लागीस। खुडवा, खो-खो, गुल्ली-डंडा सब नंदागे।
गरमी छुट्टी बिता के बड़े गुरूजी अइस त इहां के नावा चरित्तर ल देखके पूछीस – कस जी, तुंहर लइका मन के नाव परदेस के रनजी टीम म आगीस, अऊ हमला कहीं जनाबा तको नि करेस। बुधारू किथे – निही, अभू कहां आहे गुरूजी। अभू टेम लगही तइसे लागथे। गुरूजी पूछीस – त किरकेट के नाव ले खरचा करे बर, रनजी टीम चुनइया मन तूमन ला पइसा दीस होही न …..? मंगलू मुड़ी गड़िया के धीरलगहा किथे – तहूं अच्छा गोठियाथस गुरूजी, अपने मारे बांच लेले त हमन ल दिही। गुरूजी फेर पचारिस – त सरकार डहर ले, किरकेट बर या कनहो अऊ बूता बर, फोकट म पइसा बांटे के जोजना चलत होही …? बुधारू किथे –गुरूजी घला, बड़ मजाक करथे गा……, अभू चुनई थोरेन आहे गा, तेमे फोकट देवइया मन आही ? इहां पइसा धरके, रासन कारड म, चऊंर नि मिलत हे….. फोकट म कोन दिही … उही मन रात दिन खांव खांव करथे।
गुरूजी पूछत रहय – बता मंगलू, रामू के लइका काये पढ़े हे ? मंगलू जवाब दीस -ओ हा कालेज पढ़ पुढ़ा के बइठे हे गुरूजी, अपन उनवरसिटी म अव्वल रिहीस। गुरूजी फेर पूछीस – अऊ होशियार सिंग के लइका ? समारू किथे – वो काला पढ़ही गा, ले दे के कालेज पूरा करीसे।



गुरूजी फेर पचारिस – त नउकरी कोन ल मिलीस। बुधारू किथे – होशियार सिंग के लइका ल। गुरूजी फेर परस्न करीस – काबर मिलीस ? मंगलू मुड़ी डोलावत किहीस – ओला नि जानों गुरूजी। गुरूजी भन्नाये रहय – अब तैं बता बुधारू, दुलारी के नोनी काये पढ़े हे ? बुधारू किथे – वा …. नि जानबो गुरूजी। बिचारी भउजी हा, कुटिया पिसिया करके नोनी ल नर्स बई बने बर लिखइस, पढ़हइस। गुरूजी किथे – फेर का होइस ? ओला तो अपन कलेज म सोन के मेडल घला मिलीस का ? बुधारू किथे – वा …. गुरूजी, सब्बो बात ल जानथंव में। उही मेडल के भरोसा, नोनी हा सहर के परइवेट हस्पताल म नउकरी घला करथे। गुरूजी पचारिस – अऊ तोर परोसी परदेसिया के नोनी ? बुधारू किथे – ओहा सरकारी हस्पताल म नउकरी करथे। गुरूजी किथे – अरे मुरूख, दुलारी के नोनी के परइवेट असपताल म सोसन होवत हे, अऊ परदेसिया के गदही टूरी सरकारी अस्पताल म मजा मारथे। अब तूहीं मन बतावव, एकर काये अरथ हे ? कन्हो समझिन निही। समारू किथे – तिंही बता गुरूजी …. काबर बेंझावत हस। गुरूजी बतावन लागीस – बेटा तैं छत्तीसगढ़िया अस, तोर भाग म सिरीफ दूसर के गुलामी, सोसन ….. लिखाहे। तोर लोग लइका, जेन दिन कमजोर अऊ अकछम रिहीन तेन दिन तक, लुका लुका के, बाहिर के मनखे मन ल, इहां नउकरी दीन। अभू तुंहंरों लोग लइका मन, बाहिरी मन ले जादा सकछम अऊ सजोर होगीन, तेकर सेती, बाहिरी मन ल भरती करे खातिर, नियम पास करे बर परगे। इही ल येमन आऊटसोरसिंग कहि दीन। जम्मो झिन के कान खड़े होगे, कलेचुप सुनत हे। मंगलू पूछीस – ये आऊटसोरसिंग काये गुरूजी ?



गुरूजी बतइस – एकर मतलब, इहां के सोर्स ल, इहां ले बाहिर करना, अऊ इहां के मनखे मन ला, इहां के सोर्स ले दूरिहा देना आय। गुरूजी सरलग केहे लागीस – लइका मन किरकेट खेलही, रनजी टीम म चयन हो जही, आई. पी. एल. खेले ल मिल जही, अऊ तुंहर घर पइसा के खजाना आ जही, सोंचत हव तूमन ? मुरूख हव जी। जेन समे रनजी टीम के चयन होही, तुंहर नोनी बाबू के कन्हो कका बन के आगू म ठाढ़ नी रही, हां नाव कटवाये बर जरूर हमरे कन्हो बड़े भई, आगू खड़े मिल जही। हमर परदेस के रनजी टीम म, एको छत्तीसगढ़िया नी चुने जा सके, यहू मा पूरा आऊटसोरसिंग चलही।
बुधारू किथे – गुरूजी, तैं कहत हस तेमें सचाई हे, फेर हम छत्तीसगढ़िया मन, जब लड़ भिड़ के अपन बर परदेस बना सकत हन, अपन राज लान सकत हन, तब का हमन अपन टीम म अपन लइका के चयन नि करवा सकबो ? गुरूजी पूछीस – कोन कथे तूमन अपन परदेस बनवाये हव कहिके, अऊ कोन कथे तुंहर राज चलत हे कहिके ? तोर गांव के मुखिया कती आय …? तूमन अपन लइका ल मासटरी के या नर्स बई के नउकरी देवा नी सकत हव, अऊ बात करथव …….। रिहीस बात तुंहर मेहनत ले परदेस बने के ? तूमन तो अपन भाखा तक ल राजभाखा नि बनवा सकत हव, अतेक बड़ परदेस कइसे बनवा डरहू ? समारू हांसत किहीस – ओकर बर तो आयोग बनाये हे सासन। गुरूजी किथे – आयोग के काये माने हे तेमा, इहां बइठने वाला ल लालबत्ती धरा के ओकर मुहूं ल टोनही कस धर देथें, जब तक खुरसी म रिथें मुहूं तोपायेच रिथे। अब तो उहू दिन बादर दूरिहा निये बेटा, जब तुंहर राजभाखा आयोग म, दिल्ली के मनखे आके बइठही, अऊ केहे जाही, इहां के मनखे म जोग्यता निये, तेकर सेती आऊटसोरसिंग करे गे हे………..।
समारू पूछीस – त अब काये करे जाये गुरूजी ? गुरूजी उपाय बतावत किहीस – ये समसिया ले दू तरहा ले निपटे जा सकत हे। पहिली ये के, अपन नाव ल, छत्तीसगढ़ के भुंइया ले कटवा दव। गुरूजी चल गे हे कारे ….फुसुर फुसुर गोठियाये लागिन सबोझिन …..?
बुधारू किथे – समझेन निही गुरूजी ? गुरूजी जवाब दीस – मोर केहे के मतलब ये आय के, अपन आप ल बहिरी मनखे बताहू तभे, तुंहर लइका मन के नउकरी लगही, रनजी टीम म खेले बर मिलही, उही बहाना आई.पी.एल. म जाही, तभे तहूं मन मंडल बनहू, अऊ इहां के राज पाठ घला समहालहू। दूसर उपाय बड़ कठिन आय। किटकिट ले मुठा बांधत मंगलू किहीस – कतको कठिन रही, अपन लइका लोग के खातिर वहू कर लेबो। गुरूजी बतइस – त अभू ले, जऊन खांधी म बइठे हव, तेला पोट्ठ बनावव, ओमा आरी झिन चलावव, निही ते, नकसानी झेलत रहिहौ, अऊ दूसर मन, मजा ले ले के अमरबेल कस चुंहकत रही तुंहर लहू ल, अऊ तूमन, धान के कटोरा धरे, दाना दाना बर लुलवावत किंजरत रिहू….., कहत कहत गुरूजी पट ले गिरगे, परान निकल गे…..। कोन जनी अऊ का बतातीस ….. गुरूजी चल दीस। फेर कन्हो ऊंकर एको बात ल नि मानिस …। कतको झिन अभू घला अपन आप ल छत्तीसगढ़िया बता के अपनेच नकसानी करे म लगे हाबें, अऊ कतको झिन थोरकुन लालच म फंस के, अपने गोड़ म पथरा कचारत, इहां ले आऊट होये के अगोरा करत हे ………।
हरिशंकर गजानंद देवांगन
छुरा