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कविता

पइधे गाय कछारे जाय

पइधे गाय कछारे जाय
भेजेन करके, गजब भरोसा।
पतरी परही, तीन परोसा।
खरतरिहा जब कुरसी पाइन,
जनता ल ठेंगवा चंटवाइन।
हाना नोहे, सिरतोन आय,
पइधे गाय, कछारे जाय ॥
ऊप्पर ले, बड़ दिखथे सिधवा,
अंतस ले घघोले बघवा।
निचट निझमहा, बेरा पाके,
मुंहूं पोंछथें, चुकता खा के।
तइहा ले टकरहा आय,
पइधे गाय कछारे जाय ॥
गर म टेम्पा, घंटी बांधव,
चेतलग रहि के बखरी राखव।
रूंधना टोरिस हरहा गरूवा,
घर के घला, बना दिस हरूवा।
हरही संग, कपिला बउराय।
हाना नोहे, सिरतोन आय,
पइधे गाय, कछारे जाय ॥

गजानंद प्रसाद देवांगन
छुरा
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One reply on “पइधे गाय कछारे जाय”

बड़ सुघ्घर रचना… बड़ सुरता आथे गुरुजी आप मन के।

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