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गोठ बात

परशुराम




प्रकृति संभव हे, असंभव नइ हो सके, ओ ह सनातन रूप म ले चलत आवत हे अपनेच बनाए नियम रीत ले। फेर रिसीमुनी मन ओही म देवता ल खोजथे। ऋतु के देवता वरूण, मेघ के बरखा के देवता इन्र्न, ओखद (औशधि के अश्विनीकुमार, अग्निदेव इनकर बर प्रकृति के हरेक सक्ति म देवता के वास हे, अउ खुस होके सोचथे कि स्तुति करे ले देवता प्रकृति के नियम ल बदल डालही। फेर अइसन होतिस त जम्मो जग्यकरता विश्णु, ब्रह्मा, जम, सुरूज, वरूण अउ अग्नि असन जब्बर सक्तिवान हो जातिन अउ सबले उपर, इन मन ह जउन आचार संहिता रचे हे नैतिकता वो हे तो देवता के पाख म हे, देविमन के विरूद्ध हे मनखेपुरूश मन के हित बर हे, माईलोगन के विरूद्ध म हे धितकार हे, रेणुका ह एक ठन अंचभो देखिन छुछींद लकलक ले रूप धरे, गंधरव चित्ररथ, नदिया के ओ दूसर तीर म संगी संग पानी म बूड़के खेलत रfहंन। वोमन अपन गोसइन संग मदन तिहार मनावत रfहंन। वो मन पानी म चिभोर-चिभोर के काकरो मेर लपटा जाए, त वो रमणी मन घलो गंधरव मन ले लपटा जावत रfहंन अउ मीठ खेल बर अपन ल समरपित कर देवत रfहंन, फेर गंधरव दूसर के संग मेल जोर कर लेवए। त फेर वो दसर रूपनी गंधरव उपर घात करे, ओला अपन कोति fखंचे ओला पकड़के चूमे ओला रपोटे अउ ओकर छत्तीस गत ल बना लेवे। त फेर वो गंधरव उनमन ल छोड़के पानी म डुबकी मारे जाए अउ दूसर संगी मन संग रमण करे लगे। कहुं कहंु वो सुंदरीमन बाल खेले त कोउनो मौका ल पाके गंधरव ल धरके ओकर उपर चघ जावत रहिन, त कोउनो गुदगुदाए, त कोउनो रंग-बिरंगी पिचाकारी चलाए, कोउनो गुलाल फेेंके त कोउनो गाना गाए कोउनो नाचे त कोउनो रिसा जाए त कोउनो लड़ई झगड़ा करे फेर गंधरव ले पटाए ले सब्बो झिन जोर के हांस परे फेर अपन-अपन म रम जाए, अचानक रेणुका ल लगिस कि गंधरव ह सुंदरी रेणुका ल सोच म मगन रूआसी, मने मन म लड़त मगन देखके, वो ह खेल म बूड़े रूपनी ल छोड़के नदिया के भीतर डुबकी लगावत। उपर आवत फेर डुबकी मारत रेणुका के तिरेच म पानी ले निकलिस अउ खेले बर एकदम तनिया के रेणुका ल पानी म घिच लिहिस, रेणुका एकदम काठ मारे असन होगे, ओह बल लगाके गंधरव ले छुटे के उदीम करिन, ए बेवहार के खतरा का हो सकथे फेर गंधरव ह जब मोहाये मद म मताए नजर ले रेणुका ल देखिन खेल बर गुहारिस त रेणुका के राज सुभाव ह ओकर विरोध नई कर सकिन अउ वो ह गंधरव संग रम गईन। एकेच कोति मन के भागे ले सब्बो आतम सुरता ल विसारके उही दसा म भागे लगिन। रेणुका ल कोउनो होस नई रिहिस, वो नदी के हिलोर संग बोहावत चले गईन अउ गंधरव उनकर काम म फुसफुसात रfहंस, तुमन एकदम घात सुंदरी हव, झन बतावत अपन पहिचान सब्बो ल निसार देवव, ए बसंत म काम तिहार हे, डूब जाव इहि मा अउ ए छन ल अमर बनाव, आवव।

बछर ल मरजादा अउ बंधना ले बंधाए रेणुका के मन टूट गे ओला लगिस कि वोह सपना म कोउनो सुग्घर अनुरागी परेमी संग किंदरत हे। जइसे के कोउनो समाजिक ले प्राकृतिक होगे हो, अउ हरेक सिहरन अउ मीठ थरथरई ल चित म टांकत हो, जउन ल ए अद्भुत अहसास के बल म आगू के रिता जिनगी ल मीठ-मीठ सुरता म बीता दे।
रेणुका ल अचानक ए बात सुरता म आगे अउ गंधरव ल कहे रिहिस कि वोह एक अधेड़ हवय, लगभग आधा उमर ओकर सिरागे हे फेर गंधरव जादू् कस हाँसी हांसिस

पियारी! ए उमर का चीज हे, कहाँ हे, मन उछलथे त जिनगी हे नई उछले त बुढ़वा दसा हे अउ तैं ह त जवान दीखत हस, एकदम नारी, हरेक उमर म अलग-अलग अहसास, सुवाद अउ खेंचाव देथे, तुमन अजब हो, देवि अभी घलो तैं खुलके खेलना कामदेव के ए ह पूजा हे, ए कामाध्यात्म हे! कुंठा कहाँ मेर हे ए ह तो बैकुंठ हे देवव सब्बो झिन बेसुध हे मन के उपास म मस्त मगन हे, अपन मन के करव, कल कउन देखे हे अउ आपमन उन आत्मा के विरोध कइरया जइसन रिसी जटाजूट धरइया नांव के जमराज ले धलो कड़ा उनकर तिर लहुट के काय करहू आपमन थोरहे समे हमन गंधरव मन के तिर म रहव इहाँ संगीत, नाचा, गीत, कविता, नाटक, जल क्रीडा सब्बो हे आपमन काबर लहुटहू? जिहाँ हरेक दूसर के चाकरी, पहरेदारी करथे जिहाँ नारी ल संका के स्त्रोत माने जाथे जिहाँ वोह पांव के जूती समझे जाथे मात्र पुरूश मनखे ल संतान अउ चीज बस के कारन माने गे हे उहाँ कोनो जिम्मेवारी नई हे, हमर संगीत नाचा ह हमन के कला हे उही वेवसाय हे अउ हमन छुछींद हवन, हमन खुद के बस म हवन, आपमन आवव अउ अब कहुँ झन जाव।




अपन पूरा बल भर म कहिस नई गूंज गइस नई नई नई आचेत भुत गंवागे। जब चेत अइस त पहिलीच जघा म बइठे रहिन फेर वो गंधरव लीला नई रिहिस कोउनो नई रिहिस उहाँ वोह मात्र सोच हे ए ह तो बस मन सोच मात्र होथे, ए तभे आथे जब मनखे के बुद्धि बेलगाम हो जाथे, जम्मो झंझट ले छुfछंद रेणुका चकिताए रहिन कि जउन वोह देखिन ओमा तो वोह खुदे रिहिस फेर मोर अचरा सुखाए हे पहिली असन उही पथना म बइठे हंव फेर मैं जउन ल देखेंव जउन करेंव वोह का नजर के भरम रिहिस? का वो जल म मताए असन काम के पीरा मोर भरम, अनकहे अहसास असन रचना रिहिस मात्र इच्छा खास ल जउन पूरा नई होए वो काम इच्छा डाइन असन मात्र मन के सोच हे जउन सहि म नई होवय वोह खुद ले रचे माया जाल हे जउन अहसास म हो जाथे। अहा ए मन ह तो बड़का अजब रचइया निकलिस फेर गंधरव लीला म रंग म रंगाए जल ल काबर अभी तक रंगाए हवय। ए फूल के माला ह अभी तक लहर म भरके होए हे एकर का माने हे गंधरव मन रहिन, इहाँ !! वो भाव बदलतेच मोर दोस म आतेच आचनक कइसे ओझर होगें। गंधरव मनखे के ओ पार के जोनि हे उनकर बर कुछु असंभव नई हे, रेणुका पहिली बार डर म थरथरा गईन, हे देव ए मोर संग म ए का होगे ततकेच छिन म डरावत उठीन अउ कुदत भागिन। उनला लगिस कि उहि गंधरव ह हाथ ल बढ़ोके ओला पकड़त लेग जाही गंधरव बर कोउनो काम मुसकिल नई होवय? तिर म भागत रेणुका देखिन कोनो अनचिनहार हाथ हवा म लहरावत हे अउ ए हाथ उही हाथ हे, वइसनेच कुंवर सुग्घर अउ रतन ले बने चूड़ा पहिरे महमहात। ओला गंधरव रूखरई असन दिखे फेर ओकर ले बचत-बचत भागतिन, फेर उनकर ले बचे कइसे जाए एक डंगाल ओकर उपर ले बसंत हवा के तेज बहाव ले हिले लगिस, जइसे वो रेणुका ल उठा के लेगिच जाही रेणुका क चिचियाहन बंचाव अउ उही मेर गिर गईन।
होस म आए ले उठिन अउ रूखके डंगाल ल अपन जघा म पाके वोह अपने डर म दांत किटकिटाए लगिन मैं ह राजा सुधन्वा के बेटी, इक्ष्वाकु के खुन हंव अउ अपने डर म मरे जावत हंव?

थोरहे थिराए बर देव स्तुति पढ़े लगिन, जउन जमदग्नि के ममा विश्वामित्र के रचे गायत्री मंत्र सुग्घर लगे उही ल जपे लगिन।
ओम् भूर्भवः स्वः तत्सवितुरेण्य भर्गोदेवस्य
धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् ओम् ।।

ए मंत्र के जपे ले उनकर चित थिराए लगिस फेर भागत-भागत, गिरतहांफत मंत्र जपत आसरम के दुवारी मेर पहुँचिन, कइयो चिनहार मनखे उनला जोहार करिन फेर उनकर चेत म सब्बो गंधरव असन लगे, फेर उही बात ल सुरता म लावत सरपट भागे लगे। आसरम के दुवारी म विराजे। पंडित अउ रक्छक रहिन अउ पढ़इया लइका मन घलो रिहिन वो सब्बो उनला जोहार करे लगिन देवी माँ आयमन असीस देवव, अरे आपमन के चेत थिर नई लगत हे लागत हे आपमन डराए हवव ?




अचानचकरित आँखी ले निहारत देवी सीधा रिसी जमदग्नि तिर म पहुँचिनं गोसइया जमदग्नि ले आँखी के मेल होगे रिसी सब्बो माजरा ल समझ गईन उनकर मन धन ले जर उठीस ओ हा चिचियाए लगिन कोउनो ए दुरवेवहारिन दुराचरन करइया वाली ल बंदी बनाके एकर हतिया कर देवव? रेणुका तैं ह पाप कर हस तैं ह मरजादा तोंड़ं हस, तैं सजा ल भोगेबे अरे कोउनो हवय कि नई ?
जमदग्नि मारे रिस म दांत ल कटकटावत रिहिन अउ गारी देवत, अरे कोउनो हवय कइयो परत बोले रिसी क परचण्ड रिस ल देखके जम्मो कोति कोहराम मचगे। जउन उनकर बोली ल सुने उही कोति भागे लगे।

रूमण्ववान् सुशेण वसु अउ विश्वावसु भागत हाँफत जमदग्नि क आसन म डर म थरथराए, मुड़ी ल नवाए फेर कलेचुप महतारी रेणुका ल देखके, दसा के गंभीर भाव ल सगझत जमदग्नि रिसी अपन संयम ल बिसारके बइहा असन कहे लगिन
तुमन मोर बिटवा हव फेर तुमन मोला अपन पिता मानत हंव त रेणुका के अभीच बध कर देव, ए ह दुराचरनी होगे हे मरजादा ल तोड़ देहे हे। एला मार डालव नइतो पिता के कहे ल माने सेती तुमन ल सराय देहूँ।

चारों भाई मन काटो तो खुन नई असन बोकबाय हो गईन, तीनो झिन निरनय बर रूमण्ववान् कोति देखिन फेर वोहू ह बोक बाय हो गे रहे, भला पिता के अइसन आरोप ल महतारी ल कइसे मार डालबो ?

ऐति महतारी ल मार डालव, चुप्पी साधे ले तुमन नई बाचहू, मारव एला मार डालव जमदग्नि मारे चिचियावत रहे।

चारो भाई एकमई होके तय करिन कि महतारी ल नई मारन, उनकर पिता के कोप ह धरम के विरूद्ध हे। महतारी ल सुने नई गइस कि आखिर उनकर संग होइस का ? अउ सजा घलो सुना देहे गइस हमर देह ह तो माँ के लहू ले बने हे। उनहा जब्बर पीरा ल सहत कइयो बछर बड़का पीरा ह सहिकेे पाले हे वोह राजकुंवरी रहिन, वो हू घलो सुग्घर इक्ष्वावुवंश के, वोह तो रिसी के रूप गुरू अउ गौरव म मोहाके आसरम म खुद अपन इच्छा ले आके रहिन अउ कतकोन पीरा ल सहिन अब फेर रिसी के अनियाव हमन पिता के सराप ल सहिबो परान जाही त जाए फेर महतारी के आगू म परान के काय मोल हे फेर महतारी ल हमन नई मारन। अउ ऐती जमदग्नि अपन आग्या ल नई मानत देखके अउ दहक गईन अउ जब चारो लइका मन उपर उनकर कहे के कोनो असर नई होइस त रिसी हे कमंडल ले हाथ म जल ल लिहिन अउ सराप मंत्र वुदवुदाए लगिन आसरम म रहइया लोगन त्राहि करे लगिन काबर चारो भाईमन आसरम के चहेता रहिन, छमा रिसी छमा जइसनेच ए शब्द ल सुनिन जमदग्नि थम गईन फेर जोंगिन ए ह अनियाव करे हे, एकर मुड़ी ल काट देबे अउ एकर लास ल उही चित्ररथ गंधरव ल सौंप आवव, जउन संग ए ह करम करे हे। आसरम के रहइया लोगन बोक-बाय हो गईन ए महराज ह बइहा होगे हे अपन परान ले पियारी गोसइन उपर अइसन अतियाचारी आरोप लगावत हे उहू सब्बो झिन के आगू म अउ महतारी रेणुका मेर पूछत घलो नई हे रिसी सिरतौन म बइहा होगे हे एकेच संदेह म रिसी खुद के मरजादा ल बिसार दिहिन। लोगन फेर रोकके कहिन –
हे रिसी छमा छमा करव लइकामन ल झन सरापव, महतारी मेर पूछ लेवव कि उनकर संग का होए हे ?




काय का कहेव तुमन मन ? मैं का नियालय लगाव इहि मेर ? मोला जानकारी म हे कि काय होए हे ? अउ मैं सरापत हंव अपन चारो लइका ल जउन पिता के आग्या ल नई मानिन एकर सेति ओमन अपन होस खोहीं अउ जड़ जाहीं।

रिसी जमदग्नि हाथ म जल ल धरके ओमा मंत्र फूंकके लइकामन कोति फेंकिन। जाद्र असन होइन चारो लइकामन हाथ जोड़े चुप ठाढ़े रहिन वहसनेच जड़ हो गईन, जउन कोति ताकत रहिन उहींच कोति ताकतेच रह गईन। पांव पिरथी म जम गे अउ पलक घलो थिर होगे हाथ मन लटक गईन।

राम परशुराम कहाँ हे, कहाँ गे हे परशुराम ? रिसी चायमान कोउन कोति गे हे अरे कोनो गोहारव जमदग्नि मात्र चायमान रिसी के सुनथे अउ राम ल वो ह सबले मया करथे।

एति राम परशुराम उण हाथ म उठाए अलहड़ हरिना असन चायमान चाल म उड़त आवम रहे। अइसन चाल परशुराम ल रिसी चायमान सिखोए रिहिन। जउन ल परवर्ती त्रेताजुग म हनुमान चाल कहे गे हे। राम हरदम बिन डरके, बिन द्ववन्द के रहे ओमा धरम संकट नई जगे। भीड़ ल खसकावत रद्दा ल आगू म आ गईन जोहार करिन रिसी चायमान घलो हांफत पाछु ले आ गईन। उनहा सब्बो कुछ सुन डाले रहिन फेर निरनय घलो ले लेहे रहिन काबर कि परशुराम कोति नवाक कुछु बुदबुदावत रहिन।

परशुराम जब्बर रिस म बगियावत रिहिन। अपन मयारूक महतारी ल देखतेज ताव म आ गईन। फेर पिता के सिवाए कोउनो दूसर महतारी ल अइसन पीरा देतिस त ओकर मुड़ी कबके कटा जाए रहतिस फेर परशुराम पिता के आग्या बर उनला देखत रह गईन अउ हाथ ल जोरे रहिन उनकर फरसा, उनकर तिरेच म काल असन चमचमात रहिस लोगन डर म कंपकंपा जाए ए परशु तो कभु नई चुके आज एला का होगे, परभु हमन के रक्छा करव।

राम मैं कहत हंव ना तैं इचिदे, ए रद्दा ले भटके रेणुका के मुड़ी ल काट दे, ए मारेच लइक हे, एला मार बेटा।

परशुराम एक छिन देरी नई करिन। राम फरसा जेवनी हाथ म धरिन अउ तिर म मुड़ी नवाए ठाढ़े महतारी के घेंच के पाछु कोति तान दिfहंन, डर अउ उहां ठाढ़े भीड़ ल मानो सांप सुंघगे। राम ल अभी कुछु कहिना अविरथा रिहिस अउ समे घलो नई रिहिस ? लोगन परशु के चले ले छिन म एक चमक देखे रहिन, अउ वोमन ह त्राहि-त्राहि चिचिया उठिन, कराटा रेणुका के कांधा के तिर पाछु कोति पड़िस अउ रेणुका हाय हाय तड़फड़ गिर परिस। लहू के तरिया बोहागे त फेर चायमान रिसी ह अपन ओन्हा ल फाड़के महतारी के घाव म रखके बोहावत लहू ल रोकिन रेणुका क पुतरी पलट के रिहिस अउ वो अचुक मार सेती मरे असन कलेचुप हो गइन परशुराम फरसा म लगे लहू ल बिन पोछे मुड़ी ल नवाए पिता के आगू म ठाढ़े रिहिन। राम अतकेच भर कfहंन पिता अउ कोउनो आदेश ?




रिसी जमदग्नि मारे लड़ियावत पहिली होए घटना ल भुलाके राम कोति अभय अउ वर मांगे बर हाथे ल उंचा करके कहिन-राम तैंहिच हे असल म मोर बेटा हस। मैं खुस हौं पिता के अइसन वज्र असन दुब्भर आदेश अउ बिन ना नकुर के सकेच बेरा म पूरा करे राम मांग तैंह वर मैं सिरतौन बहुत खुस हंवव।

पिता फेर आप मन खुस हंव त फेर वरदान देवव। देवत हंव, बोल काय वर देवव, मोर महतारी फेर जी जाए जउन होइस वो सब्बो भुला जाए।

तथास्तु अउ मोर परपंरा के रक्छक मोर महान पिता मोर बड़का भाईमन घलो पहिली असन हो जाए। अइसनेच होही।
परशुराम पिता के पांव म गिरे बर कुदिन फेर जमदग्नि ह बड़ मया ले ओला डाटिन- अरे तैं बड़ भोला हस अपन बर कुछु नई मांगे मांग अपन बर तैं मोला बड़का पियारा हस झट ले मांग ले।

परशुराम मुसकावत खुस हो उठिन। लोगन के भीउ़ बइहा कोलबिल करे लगिन-राम अपन अभ्युदय के वर मांग ले। हा राग। मांग ले सब्बो कुछ।

राम अपन गुरू रिसी चायमान कोति देखिन चायमान थोरहे बुदबुदाइन, उन ह राम उनकर संकोच म हाथ जोड़े मोर राम अपन बर कुछु मांग के अपन ल छोटे सिद्ध नई करना चाही रिसी चायमान तुमन राम के गुरू अउ पिता असन हव, तुहिमन उनकर सेती वर ल मांगव।
ब्रह्मरिसी मोर राम जुद्ध म हरदम विजयी अउ चिरंजीवी होवय। अइसनेच होही फेर अउ कुछु मांगव। अनके पइत राम कहिन-परभु आपमन खुस हवव त आपमन सब्बो घटना ल विसार देवव अउ हमन सब्बो झिन फेर मया परेम म रहेंन। अइसनेच होही अतका जब्बर जय-जयकार होइस कि अगास घलो फटे लगिस।

सब्बो परशुराम के कोति जय जयकार होवत देख जमदग्नि अपन अपेक्षा ल समझ गईन कि रिस म उनकर निरदई आदेश ल समाज ह नई मानिन अउ इहू घलो कि उनकर छमा अउ वरदान ह उनकर महता ल बढ़़ा देहे हे समाज म बड़ गहिरा समझ होथे। इहि मेर ले जमदग्नि के आसरम म राम के नांव परशुराम पड़िस। पहिली कभु-कभु कोउनो मन परशुराम कहें फेर रामेच नांव ह जादा नामचीन रहिस फेर अव सब्बोझिन परशुराम कटे लगिन। जउन कोति जाए उहि कोति उनकर चमकत फरसा ल देखके रूद्र के औतार माने लगे। परशुराम अउ रिसी चायमान के गुन ले परशुराम पालन करिन अउ अमर हो गईन।

गीता शर्मा
लेखिका