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व्यंग्य

पोल खोल

पोल खोल देबो के नारा जगा जगा बुलंद रहय फेर पोल खुलत नी रहय। गांव के निचट अड़हा मनखे मंगलू अऊ बुधारू आपस म गोठियावत रहय। मंगलू किथे – काये पोल आये जी, जेला रोज रोज, फकत खोल देबो, खोल देबो कहिथे भर बिया मन, फेर खोलय निही। रोज अपन झोला धर के पिछू पिछू किंजरथंव …..। बुधारू हाँसिस अऊ किहीस – पोल काये तेला तो महू नी जानव यार, फेर तोर हमर लइक पोल म कहींच निये अइसन सुने हंव। मंगलू किथे – तैं कुछूच नी जानस यार ……., नानुक पेटारा खुलथे त अतेक अकन समान रहिथे तब, जेकर अतेक हल्ला हे , जेला खोले बर, अतका अकन मनखे मन जुरियावत हे, ओमा कइसे कहींच नी होही यार। बुधारू किथे – तैं नी जानस ….., पोल म न कहीं खाये के समान हे न पिये के, काबर फोकट इंकर मनके पिछू पिछू झोला लटकाये लठंग लठंग किंजरत रहिथस। मंगलू किथे – कहींच नी होतीस, त पोल खोलइया मन, पोल खोले बर खाली हाथ नी आतीन जी, वहू मन अपन बर, झोला धरके काबर आथे, फेर को जनी, कती तीर हाबे पोल ……महू ला समझ नी आवत हे यार।




दूसर दिन पोल खोले के कार्यक्रम दूसर गांव म रिहीस। मंगलू झोला धरके कुछु पाये के उम्मीद म फेर पहुंचगे। बुधारू फकत देखे बर गे रहय। गांव के मन मंगलू ला देखीस, त झोला धर के आये के कारन पूछ दीस। मंगलू लजावत किथे – एसो के अकाल दुकाल के मारे, घर म दार चऊंर सिरागे हे …..। पोल खुलतीस त, कुछ न कुछ खाये पिये के मिलबे करही, उही ला महू, एकात कन रपोट लेतेंव सोंच के, झोला धर के किंजरत हंव। गांव के मन किथे – तोर गांव म बोनस नी बांटे हे जी …? मंगलू किथे – बोनस बंटइस तो जरूर, फेर धान बेंचइया ला कमती अऊ ईमान बेंचईया ला जादा मिलीस हे। गांव के एक झिन मनखे किथे – यहू बछर के बोनस तो घला दिही सरकार हा, ओतको तोला पुर नी आवत हे। मंगलू किथे – गदगद ले धान होइस ते बछर, बोनस ला ओस कस बूंद चंटा दीस, येसो फसल के दाना नी लुवे हन, तेमा सरकार ला का बेंचबो अऊ बोनस के का मांग करबो…..?
तभे बड़े बड़े मनखे मन, लामी लामा गाड़ी घोड़ा म, पोल खोले बर उतरीन। मंगलू अऊ बुधारू अपन झोला के मुहुं खोले, सपट के ताकत रहय। तभे बड़े जिनीस गोठ के पोल जामगे। पोल खोलइया मनला, अबड़ बेर ले तो समझेच नी आवत रहय के, पोल जाम तो गे फेर, कती ले खोलना हे। जे तीर ले खोले बर धरतीस, तिही तीर, ओकरे मनखे मन के, कतको कच्चा चिट्ठा दिखे बर धर लेतीस। पोल ला येती ओती उनडा के देख डरीन, तभे ऊप्पर ले आदेस अइस के, पोल ला सोज खड़े करव, अऊ उप्परे ले खोलव, भोरहा म तरी कोती हाथ परगे अऊ पोल म टोंड़का होगे त, आंजत आंजत कानी हो जही अऊ पोल ला खोले के बदला तोपे के पहिली उदिम करे बर पर जही। आदेस सुन उप्पर ले ढकना खोलना सुरू होगे। पनदरा बछर ले चलत, लूट, डकैती, बलातकार अऊ भरस्टाचार के परमान मन बाहिर आये लगीस। पूरा पोल खुलगे त ओमा के बड़का नेता किथे – सरकार के पोल हरेक गांव म जामे हे, येला खोल के, देस म गनदगी बगरइया संग अइसन कचरा काड़ी मनला, बाहिर करव, तब तुंहर गांव के मनखे ला पेट भर खाये बर मिलही, पहिरे बर कपड़ा मिलही अऊ रेहे बर घर मिलही, तभेच तुंहर गांव सुंदर बनही। जेकर भी गांव म अइसन गनदगी होही ते मोला बतावव, कालीचे हमन आके सफ्फा कर देबो ….। मंगलू किथे – हमर घुरवा ला ये बखत सफ्फा नी कर सके हन मालिक, एक ठिन पोल गड़ियाके सफ्फा कर देतेव का ……? कन्हो झिन सुनय कहिके, बुधारू लकर धकर, ओकर मुहूं ला तोप दीस।




पोल खोले म कोन ला काये मिलीस यार बुधारू …..? मंगलू के परस्न हा बुधारू ला हूल मारे कस गड़त रहय। बुधारू किथे – पोल खोले म गरीब ला का मिलही बइहा …..? येहा बड़का मनखे मनके चोचला आय। ओमन ला दार चऊंर के भूख थोरहे लागथे तेमा, ओमन ला खुरसी, पद अऊ परतिस्ठा के भूख पदोथे। जे जतका पोल खोलही तेकर झोला म ओतके वोट आही अऊ ओतके बड़ खुरसी म बिराजित होही। मंगलू ओकर बात ला समझिस निही। अपन घर म निगतेच साठ अपन सुवारी ला कहत रहय, तोरो कहूं पोल होतीस तेला बताते का वो …….। जगा जगा महूं ओला खोलतेंव अऊ पद परतिस्ठा के हकदार बनतेंव। हतरे लेड़गा गारी सुनत, पोल गड़ाये के अऊ ओला खोले के उदिम सोंचत कतका बेर मंगलू के नींद परगे …….।

हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन, छुरा
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