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अनुवाद कहानी

अपन-अपन समझ

जब मेहा अपन चार बछर के बेटा रामसरूप ला बने तउल के देखथंव, त जान परथे के वोमे भोलापन अउ सुनदरई नई रहि गे, जउन दू बछर पहिली रिहिस हे। वो अइसे लागथे जाना-माना अपने गुस्सेलहा बानी म लाल आंखी मोला देखावत हे। वोकर ये हालत ला देख के मोर करेजा कांप जथे अउ मोला अपन वो बचन के सुरता आ जथे जउन दू बछर पहिली मरन सैय्या म परे वोकर महतारी ल दे रेहेंव। मनखे अतेक सुवारथी अउ अपन इंद्री के गुलाम हे के अपन फरज ला कोनो बखत बेरा म महसूस करथे।

वो दिन जब डाक्टर ह उमीद छोड दीस, तब रोवत-रोवत टूरा के दाई ह केहे रिहिस- का तेंहा दूसरया बिहाव कर लेबे? जरूर कर लेबे। फेर चौक के कहिस- मोर बेटा राम के का होही? वोकर खियाल राखे रिबे, अगर हो सकही त।

मेहा कहेंव- हां-हां, मेहा बचन देवत हंव के मेहा दूसरइया बिहाव नई करंव अउ तैं रामसरूप के फिकर झन कर। का तेहा बने नई होबे?
वोहा मोर डाहर हाथ ल फेंक के किहिस- ले बिदा दे। दुओ मिनट बाद मोर संसार म अंधियारी छा गे। रामसरूप बिन महतारी के हो गे। दू तीन दिन बोला करेजा ले लगाके राखेंव। आखिर छुट्टी सिरागे तब वोला अपन ददा करा छोड के फेर मेहा काम म चल देंव।

दू-तीन महीना गजब उदास रिहिस। नोकरी करत जांव। काबर के वोकर सिवाय जीये के कोनो उदिम न रिहिस। मने-मन म कतको बात
आवय। दू-तीन बछर बने नोकरी करके घूमे बर निकल जहूं। ये करहूं, वो करहूं, अब कोनो मेर मन ह नई लागत राहय। घर ले चिट्ठी आवय के फलाना-ढेकाना जगा ले बिहाव के संदेस आवत हे। मनखे मन बने हे, लडकी ह बुधमानिन हे अउ सुघ्‍घर घलो हे। अइसन सगा नई मिलही। आखिर करना तो हइहे, कर ले। हर बात म मोर बिचार पूछे जाय। फेर, मेहा बरोबर इनकार करत जांव के मनखे ह कइसे झटकुन दूसरइया बिहाव बर तियार हो सकथे। जबकि अब्बड पियारी सुन्दर बाई जउन ह वोकर बर सरग के एकठन भेंट रिहिस तेला भगवान ह एक बेर नगा लीस।




समे बीतत गीस। यार-दोस्त मन के तगादा शुरू हो गे। जान दे रे भाई, औरत ह पांव के पनही ताय। पांव हे त पनही के का दुकाल। एक ठन फटगे त दूसरइया बदल ले। माइलोगन के कतेक अपमान, हिन्दू रांडी ल दूसरइया बिहाव के छूट नई दे जाय त मोला सोभा नई दय के मेहा कुंवारी कनिया संग दूसरइया बिहाव कर लंव। जब तक ये कलंक ह हमर समाज ले मेटा नई जही, तब तक कुंवारी कनिया तो दूर मेहा रांडी संग घलो बिहाव नई करव। छड़ये ल घलो नई बनावंव। खियाल अइस, चलव नौकरी छोड़ के इही बात के परचार करे जाय। फेर, मंच म अपन दिल के बात ल जुबान म कइसे लानहूं। भावना ल बेवहार म लाने बर चरित्र, आचरन मजबूत बनाय बर जो कहना वोला करके देखाय बर हमर भीतर कतेक कमजोरी हे। ये बात ल मेहा उही समे जानेंव। जब छह महीना बाद मेहा एकझन कुंवारी टुरेलही ल बिहाके ले आनेंव।

घर के मन खुसियाली मनइन के चलव कोनो ढंग ले मानिस तो। ओती मोर बिरादरी के दू-तीन झन मनखे मन मोला डाटिंन- तंय ह तो काहत रेहे के रांडी, बरेंडी, छड़वे ल बनाहूं किके । लमबा चौडा हाकत राहस अब तमाम तोर हंकई कहां चलदीस। तंय ह तो एकठन रद्दा घलो नई बनाय जेमा हम चल सकन। मोर उप्पर तो जाना-माना घडों पानी पर गे। आंखी खुल गे। जवानी के जोस म मेहा का कर डरेंव। आंजत-आंजत कानी हो गे।

जुन्ना सब बात फेर सुरता आ गे अउ आजो मेहा उही सब बात ल गुनते बइठे हंव। सोचे रेहेंव- नौकर ह लइका ल नई सम्हाले सकय,
माइलोगन ह ये काम बर ठीक रिही। बिहाव कर लेब जब घरवाली आही तब रामसरूप ल अपन करा राख लुहूं अउ वोकर बने खियाल राखहूं। फेर, वो सब ह गलत अच्छर साहीं मेटा गे। रामसरूप ल फेर अपन ददा करा गांव भेजे बर मेहा मजबूर हंव। काबर येहा तो ककरो ले छिपे बात नोहय। औरत के अपन सौतेला बेटा संग परेम करना ह असम्भो बात ए। बिहाव के मोका म सुने रेहेंव के लडकी गजब गुनवन्तिन हे। परवार के बने खियाल राखही। सौत के बेटा ल अपन बेटा सांही राखही। सोचेंव फेर सब लबारी ए। डौकी जात चाहे कतको बने राहय, वोहा कभु अपन सौतेला बेटा ल परेम नइ कर सकय। अउ, इही दुख ह वो वचन ला टोरे के सजा ए जउन मेहा एक नेक
घरवाली के आगू म आखरी समे म करे रेहेंव।

(मुंशी प्रेमचंद के कहिनी के अनुवाद)

– डॉ. परदेशीराम वर्मा
आमदी नगर ( हुडको), भिलाई
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