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अनुवाद नाटक

पुरुस्कार – जयशंकर प्रसाद

जान-चिन्हार
महाराजा – कोसल के महाराजा
मंतरी – कोसल के मंतरी
मधुलिका – किसान कइना, सिंहमित्र के बेटी
अरुन – मगध के राजकुमार
सेनापति – कोसल के सेनापति
पुरोहित मन, सैनिक मन, जुवती मन, पंखा धुंकोइया, पान धरोइया

दिरिस्य: 1

ठान: बारानसी के जुद्ध।
मगध अउ कोसल के मांझा मा जुद्ध होवत हावय, कोसल हारे बर होवत हावय, तभे सिंहमित्र हर मगध के सैनिक मला मार भगाथे। कोसल के महाराजा खुस हो जाथें।

महाराजा – तैंहर आज मगध के आघू मा कोसल के लाज राख ले सिंहमित्र।
सिंहमित्र – सबो तुंहर किरपा हावय महाराज।

दिरिस्य: 2

ठान: राजमहल के गली।

आदरा नछत्तर, अगास मा करिया करिया बादर घुमड़त हावय। जेमा देवतामन के नगाड़ा के अवाज। पूरब के एकठन सुन्ना कोन्टा मा सोन पुरुस डोंगत हावय। दिखे बर लागिस महाराजा के सवारी। परबत माला के अंॅचरा मा समतल बहरा भुंइया ले सोंधी कहरत हावय। नगर तीर जयकारा होइस। भीड़ मा हाथी के सोंड़ ठाढ़े दिखिस। मजा अउ उछाह के सागर हिलोर मारत आघू बाढ़त हावय। बिहनिया के सोन किरन ले रचाय नानु नानु बूंॅदी के एकठन झोंका सोन मोती साही बरसिस। मंगल सूचना ले मनखेमन मजा के मारे नरियाइन।

दिरिस्य: 3

ठान: मधुलिका के खेत।

रथ, हाथी अउ घोड़ामन के लाइन। देखोइया मन ले खचाखच भरे हावय।

हाथी मा बइठ के महाराजा आइन। हाथी बइठ गिस। महाराजा मिसेनी ले उतरिन। सुहागिन अउ कुमारी मन के दू दल। आमपान ले सोभित मंगल कलस अउ फूल, कुमकुम अउ लाई ले भरे थारी। मीठ गीद गात आघू बढ़िन। महाराजा के मुंहू मा मीठ मुसकान रिहिस। सोन धराय नागर के मूठ धरके महाराजा हर फंदाय सुघ्घर बइलामन ला रेंगे बर किहिन। बाजा बाजे बर लागिस। किसोरी कुमारी मन लाईमन अउ फूलमन के बरसा करिन।

सूत्रधार – कोसल के येहर परसिध तिहार हावय। एकदिन बर महाराजा ला किसान बने बर परथे। इ दिन इन्दर पूजा बड़ घूमधाम ले मनाय जाथे। नगरीमन ओ पहरी भुंइया मा मजा ले मनाथे। हर साल खेती के ये तिहार उछाह ले होथे। दूसर राज के जुवराज मन घलो ऐला देखे बर आथे। मगध के राजकुमार आपन रथ मा चढ़े चढ़े ऐला देखत हावय। इ खेत हर मधुलिका के हावय। जेला इ साल खेती करे बर चुने गिस हावय। एकरे सेती बीज दे के मान मल्लिका ला मिले हावय। वोहर कुमारी हावय अउ सुघ्घर घलो हावय। गेरुवा रंग के बासन ओकर सरीर ले लहरात ओहर सुघ्घर दिखत हावय। वोहर कभू ओला ठीक करय, कभू आपन चूंदी ला।

बीज ला थारी मा धरे कुमारी मधुलिका महाराजा के तीर हावय। बीज बोय बर महाराजा जब हाथ करथे ता मधुलिका ओकर आघू मा थारी कर देथे। किसान कइना के सुघ्घर कपार मा पछीना के कमी नीए, वोमन बिरइन मन मा समा जात हावय। फेर महाराजा ला बीज देबर कोताही नी करत हावय। सबझन महाराजा ला नांगर जोतत देखत हावय, अचरज ले, कुतुहल ले। अउ अरुन देखत हावय किसान कइना मधुलिका ला। अहा!कतका सुघ्घर हावय। कतका सरल मन।

महाराजा हर मधुलिका के खेत ला पुरुस्कार दिस। थारी मा कुछु सोन मुदरा। येहर राजा के नियम रिहिस। मधुलिका हर थारी ला आपन माथा मा लगाइस। फेर ओ सोन के मुदरा मला महाराजा के उपर चढ़ात बीछ दिस। मनखेमन अचरज ले देखे बार लागिन। महाराजा के टेपरा तनगिस।

मधुलिका – देवता! येहर मोर ददा बोबा के भिंया हावय। ऐला बेचे हर अपराध हावय। एकरे बर दाम लेहर मोर सामरथ ले बाहिर हावय।

मंतरी – कड़कत- अबोध! का बकत हावस। राजा के नियम के तिरस्कार। तोर भिंया के चैगुना दाम हावय। फेर कोसल के येहर बनाय नियम हावय। तैंहर आज ले राजा के रच्छन पाय के अधिकार पाय। इ धन ले आपन ला तैंहर सुखी बना।

मधुलिका – राजा के रच्छन पाय के अधिकार जमो मनखे मनला हावय। महाराजा ला भिंया दे मा मोला कोन्हों बिरोध नी रिहिस, आभी घलो नीए। फेर दाम मैंहर नी लेवंव।

महाराजा – कोन हावय ये छोकरी।

मंतरी – देवता! बरानसी जुद्ध के महान बीर सिंहमित्र के एकझन बेटी हावय।

महाराजा – सिंहमित्र के बेटी । जेहर मगध के आघू मा कोसल के लाज राखिस। ओई बीर के मधुलिका बेटी हावय।

मंतरी – हांॅ देवता।

महाराजा – इ तिहार के नियम का हावय, मंतरी।

मंतरी – देवता! नियम हर सधारन हावय। कोन्हों बने भिंया ला इ तिहार बर चुनके ओला नियम अनुसार पुरुस्कार मा ओकर दाम दे जाथे। वो दाम हर ओकर चैगुना रइथे। ओ खेती ला ओइच हर साल भर देखथे। वोला राजा के खेत कइथे।

मनखेमन – महाराजा के जय। महाराजा के जय। महाराजा के जय।

सबो चल देथे। मधुलिका आपन खेत के पार मा बड़खा महुआ पेड़ के तरी कलेचुप बइठे रइथे।

दिरिस्य: 4

ठान: बिसराम भवन

तिहार अब बिसराम लेत हावय। राजकुमार अरुन जागत हावय। ओकर आंॅखी मा नींद नीए। पूरब मा जिसने गुलाली उअत हावय। वोई रंग ओकर आंॅखी मा रिहिस। आघू देखिस ता मुंडेर मा परेविन एक गोड़ मा ठाढ़ होके पांख खोलके टर्रात हावय। अरुन ठाढ़ होइस। मुहटा मा सजाय घोड़ा हावय। वोहर देखते देखत नगर के तीर पहंॅुच गिस। सैनिक मन उंॅघात रिहिस। घोड़ा के गोड़ के अवाज सुनके चमकिन। राजकुंमार तीर साही निकल गिस।

दिरिस्य: 5

ठान: मधुलिका के खेत।

सिंधु देष का घोड़ा बिहनिया के हवा साही खुस होवत हावय। घूमत घूमत अरुन ओइ महुआ पेड़ के तरी आइस। जिहांॅ मधुलिका आपन हाथ मा मुंड़ी धरके सूतत रिहिस। अरुन हर देखिस एक महुआ डार परे हावय। फूल फूले हावय, भंवरा सांत हावय। अरुन आपन घोड़ा ला मुक्का रहे बर किहिस। ओ सुघ्घरता ला देखे बर, फेर कोयली कूकिस। जेला सुनके मधुलिका के आंॅखि खोलिस। ओहर देखिस, एकझन अनचिन्हार छोकरा। वोला लाज लागिस।

अरुन – देवी! तैंहर काल के तिहार के संचालन करोइया रेहे।

मधुलिका – तिहार! हाहो! तिहारेच रिहिस।

अरुन – काल ओ सम्मान।

मधुलिका – काबर तोला काल के सपना सतात हावय। आप मोला तैंहर इ अवस्था मा संतोख नी रहन दस।

अरुन – मोर हिरदे तोर ओ छवि के भगत बन गे हावय देवी।

मधुलिका – मोर ओ नाचा के, फेर मोर दुख के। आह! मनखे कतका निरदय हावय। अनचिन्हार, छमा करबे, जा अपन डहर।

अरुन – सरलता के देवी। मैंहर मगध के राजकुमार। तोला पाना चाहत हवौं, मोर हिरदे के भाव बंधना मा रेहे नी जाने। ओला आपन—।

मधुलिका – राजकुमार ! मैंहर किसान कइना हवौं। आप नंदनबिहारी अउ मैंहर कमोइया। आज मोर मया के भ्ंिाया मा ले मोर अधिकार छीन ले हावय। मैंहर दुख ले बियाकुल हवौं, मोर हंसी झन करा।

अरुन – मैंहर कोसल महाराजा ले तोर भिंया देवा दिंहा।

मधुलिका – नीही! येहर कोसल राज के नियम हावय। मैंहर ओला बदलना नी चाहत हवौं, चाहे ओमे मोला कतको पीरा होवय।

अरुन – ता तोर रहस का हावय?

मधुलिका – ये रहस मनखे हिरदे के हावय। मोर नी हावय। राजकुमार नियम ले यदि मनखे के हिरदे बंधाय रथिस ता आज मगध के राजकुमार के हिरदे कोन्हों राजकुमारी कोति नी तीराके एक किसान छोकरी ला अपमान करे नी आथिस।

चोंट खाके राजकुमार लहुंॅट गिस। किरन ले ओकर रतन मुकुट चमकिस। घोड़ा दउंॅड़त हावय। मधुलिका इसने कहके खुद आहत होइस। वोहर सजल आंॅखि ले उड़त धुर्रा ला देखे बर लागिस।

दिरिस्य: 6

ठान: मधुलिका के खेत के पान के झाला।

मधुलिका हर राजा के सोन मुदरा नी लिस। वोहर दूसर के खेत मा काम करथे अउ चैथा पहर रूखा सूखा खाके परे रइथे। महुआ पेड़ तरी नानकन पान के झाला रिहिस। सूख्खा डार के दीवार रिहिस। मधुलिका के ओई आसरम रिहिस। कठोर मेहनत ले जे रूखा सूखा मिलथे, ओकर सांस ला बढ़ाय बर अबड़ रिहिस। पतली होय मा घलो ओकर सरीर मा तपसिया के कांति रिहिस। आसपास के किसान ओकर आदर करे। वोहर बढ़िया छोकरी रिहिस। दिन हप्ता महिना अउ साल बीते बर लागिस।

दिरिस्य: 7

ठान: मधुलिका के खेत के पान के झाला।

ठंढा रतिहा, बादर भरे अगास, जेमा बिजुरी कूदत हावय। मधुलिका के झाला चुहत हावय। ओढ़े बर नीए। वोहर ठिठुर के एकठन कोन्टा मा बइठे हावय। मधुलिका आपन अभाव ला बढ़ा के सोचत हावय। आज ओला राजकुमार के सुरता आत रिहिस। का कहत रिहिस?

पानी गिरत हावय।

अरुन – कोन हावय इहांॅ? पथिक आसरा चाहत हवौं।

मधुलिका हर डार के फइरका खोल दिस। बिजुरी चमकिस। ओहर देखिस एकझिन मनखे घोड़ा के डोर धरे ठाढ़े हावय।

मधुलिका – राजकुमार।

अरुन – मधुलिका।

मधुलिका – अतका दिन बाद फेर।

अरुन – कतका समझाय फेर।

मधुलिका – अउ आज तुंहर का दसा हावय?

अरुन – मैंहर मगध के बिदरोही हवौं, देस ले निकाल दे गे हवौं। कोसल में जीविका खोजे बर आय हवौं।

मधुलिका – मगध के बिदरोही राजकुमार के सुआगत करे, एकझन बिना दई ददा के छोकरी। इ कइसे दुरभाग हावय। ता फेर मैंहर सुआगत करे बर तियार हवौं।

दिरिस्य: 8

ठान: पहरी गुफा के दुआर मा बर पेड़ के तरी।

मधुलिका – तैंहर अतका गरीब हावस ता अतका सैनिक राखे के का जरूरत हावय।

अरुन – मधुलिका, बाहुबल हर बीरमन के आजीविका हावय। येमन मोर जीवन मरन के संगी हावय। भला मैंहर इमनला कइसे छांड़ देवंव। अउ का करथे?

मधुलिका – काबर? हामन मेहनत ले कमाथेन अउ खाथेन ता तैंहर।

अरुन – भुला झन । मैंहर आपन बाहुबल मा भरोसा करथों। नवा राज बना सकत हवौं। निराष काबर हो जाओं।

मधुलिका – नवा राज। ओहो! तोर उछाह हर कम नी होइस। भला बता कइसे। कोन्हों ढंग के बतावा। ता मैंहर घलो कलपना के आनंद ले लों।

अरुन – कलपना के आनंद नीही, मधुलिका। मैंहर तोला रानी साही सिंघासन में बैठांहा। तैंहर आपन छीने खेत के चिंता करके झन डराव।

मधुलिका – मैंहर आज तक तोर इंतजार करत रेंहे राजकुमार।

अरुन – ता मोर भरम रिहिस। तैंहर सिरतोच मोला पिंयार करत हस। तोर चाह होही ता मैंहर परान लगाके तोला इ कोसल सिंघासन मा बैठा दिंहा। मधु अरुन के तलवार के आतंक देखबे।

मधुलिका – का।

अरुन – सच मधुलिका, कोसल राजा तभू ले तोर बर चिंता करत हावय। ये मैंहर जानत हौं, तोर सधारन बिनती ला वोहर नी मानिही। अउ मोला पता हावय, कोसल के सेनापति अबड़ सैनिकमला लेके दस्युमला दमन करे बर बड़ दूरिहा चल दिन हावय। — तैंहर बोलत नीहस।

मधुलिका – जे कइबे ओला करिहांॅ।

दिरिस्य: 9

ठान: राजमहल

सोन के मंच मा कोसल राजा आंखि मूंदे हावय। एकझन छोकरी पंखा धूंॅकत हावय। एकझन छोकरी पान धरे मूरति साही ठाढ़े हावय। कमिया आथे।

कमिया – जय हो देवता। एक झन छोकरी तुंहर मेर मिले बर आय हावय।

महाराजा – छोकरी। आन दे।

कमिया जाथे अउ मधुलिका ला लेके आथे।

मधुलिका – जय हो देवता।

महाराजा – तोला कहूंॅ देखे हवौं।

मधुलिका – तीन बच्छर होगिस देवता। मोर भिंया ला खेती बर ले गे रहिस।

महाराजा – ओह! तैंहर अतका दिन कस्ट मा बिताय। आज ओकर दाम मांॅगे आय हावस। ठीक ठीक, कमिया।

मधुलिका – नीही महाराजा। मोला दाम नी चाहत हों।

महाराजा – मुरुख फेर का चाहत हावस।

मधुलिका – ओतनेच भिंया। दुरुग के रक्सहू नाला के तीर मा जंगली भ्ंिाया। उहांॅ मैंहर आपन खेती करिहांॅ। मोला एकझन संगी मिलगे हावय। वोहर बइरीमन ले मोर सहायता करिही। भिंया ला समतल बनाय बर होही।

महाराजा – किसान कइना। वोहर अबड़ उबड़ खाबड़ भिंया हावय। तेमा वोहर दुरुग के तीर सैनिक महता राखथे।

मधुलिका – का मैंहर फेर निरास लहुंॅट जांव।

महाराजा – सिंहमित्र की बेटी। मैंहर का करौं? तोर ये बिनती?

मधुलिका – देवता! जइसने तुंॅहर आग्या।

महाराजा – जा तैंहर ओमा कमिया लगा। मैंहर अमात्य ला आग्या पत्र देबर आग्या देवत हवौं।

मधुलिका – जय हो देवता।

मधुलिका चल देथे।

दिरिस्य: 10

ठान: दुरुग के रक्सहू नाला के तीर के जंगली भ्ंिाया।

अरुन अउ मधुलिका बइठे हावय।

अरुन – चार पहर अउ बिसराम कर। बिहनिया तोर जुन्ना कलेवर कोसल राज के राजधानी श्रावस्ती मा तोर अभिसेक होही अउ मैंहर मगध के भगोइया कोसल के राजा होंहा।

मधुलिका – भयानक, अरुन तोर साहस देख के मैंहर चकित होवत हवौं, सिरिफ सौ सैनिक ले तैंहर—।

अरुन – रतिहा के तीसर पहर मा मोर बिजय यात्रा होही।

मधुलिका – ता तोला इ बिजय यात्रा मा बिस्वास हावय।

अरुन – अवस्य। तैंहर आपन झाला मा ये रतिहा बिता, बिहनिया तो राजमंदिर तोर लीलाघर होही। अच्छा अंधियार जादा होगिस। आभी तोला दुरिहा जाय बर हावय। अउ मोला परान पन ले इ अभियान ला आधा रतिहा पूरा करना हावय। ता रात भर बर बा बिदा।

मधुलिका उठिस अउ आपन झाला कोति गिस।

दिरिस्य: 11

ठान: कांॅटा ले भरिस डगर

मधुलिका के आत्मा – अरुन अगर सफल नी होइस ता।

मधुलिका – वोहर काबर सफल होही? श्रावस्ती दुरुग एक बिदेसी के अधिकार मा काबर जाही? मगध कोसल के चिर बइरी। ओह ओकर बिजय। कोसल राजा का कहे रिहिस- सिंहमित्र की कइना! सिंहमित्र कोसल रच्छक बीर, ओकर कइना, आज का करे जात रेहे। नीही नीही।

सिंहमित्र की आत्मा – मधुलिका मधुलिका।

सैनिक – कोन हस।

मधुलिका –

सेनापति – तैंहर कोन हावस छोकरी? कोसल के सेनापति ला तुरत बता।

मधुलिका – बांध लेवा मोला। मोर हतिया करा। मैंहर इसने अपराध करे हवौं।

सेनापति – पगली हावय।

मधुलिका – पगली नी हवौं। पगली होथें ता अतका बिचार बेदना काबर होथिस मोला। सेनापति मोला बांध लेवा। राजा के तीर ले चला।

सेनापति – का हावय? सफफा बता?

मधुलिका – श्रावस्ती के दुरुग एक पहर मा दस्युमन ले लिहीं। रक्सहू नाला के तीर ओमन हमला करिही।

सेनापति – तैंहर का कहत हावस।

मधुलिका – मैंहर सच कहत हवौं। तुरत करा।

सेनापति – अस्सी सैनिक तुमन नाला कोति जावा। मंगल तैंहर इला आपन संग बांध ले।

दिरिस्य: 12

ठान: दुरुग के दुआर

जब थोरे घुड़सवार आके रुकिन। ता दुरुग के जोगोइया चैंकिन।

जोगोइया – सेनापति तैंहर।

सेनापति – हांॅ अग्निसेन! दुरुग मा कतका सैनिक होही।

जोगोइया – सेनापति जय हो। दू सौ होही।

सेनापति – ओमन ला बला, फेर बिना बात करे। सौ मनला लेके तैंहर तुरत दुरुग के रक्सहू कोति जाबे। परकास अउ बात करे बर नी होय।

सेनापति हर मधुलिका कोति देखिस, वोला छोर दिन। ओला आपन पाछू आय बर किहिस।

कमिया महाराजा ला सचेत करिस।

सेनापति – जय हो देवता। इ छोकरी के सेती मोला इ बेरा आय बर लागिस हावय।

महाराजा – सिंहमित्र की बेटी। फेर इहांॅ काबर आय हावस। का तोर खेत हर नी बनत हावय? कोन्हों बाधा। सेनापति, मैंहर एला रक्सहू नाला के तीर के भिंया ला दे हवौं, का ओकरे संबंध मा तैंहर कुछू कहना चाहत हावस?

सेनापति – देवता! कोन्हों गुपुत बइरी हर ओई कोति ले आज रतिहाकन दुरुग मा अधिकार कर ले के परबंध करे हावय। अउ इ छोकरी हर मोला रस्दा मा इ संदेस बताय हावय।

महाराजा – मधुलिका येहर सच हावय?

मधुलिका – हां देवता।

महाराजा – सिंहमित्र की बेटी, तैंहर ए घ फेर उपकार करे हावस। ये सूचना देके तैंहर पुरुस्कार के कारज करे हावस। अच्छा तैंहर इहांॅ ठहर। पहिली ओ आतंकवादी मन के परबंध कर लों।

दिरिस्य: 13

ठान: सभा मंड़वा

अरुन ला बंदी बनाय गे हावय।

मनखेमन – एकर बध करा।

महाराजा – परानदंड देवत हवौं। मधुलिका ला बलावा।

मधुलिका पगली साही ठाढ़ हो जाथे।

महाराजा – मधुलिका तोला जे पुरुस्कार लेना हावय मांॅग ले।

मधुलिका –

महाराजा – मोर जतका खेती हावय मैंहर सबला तोला देवत हावौं।

मधुलिका एक घ बंदी अरुन कोति देखिस।

मधुलिका – मोला कुछू नी चाही।

अरुन हांॅसथे

महाराजा – नीही! मैंहर तोला खच्चित दिंहा। मांग ले।

मधुलिका – ता मोला घलो परानदंड मिलय।

अतकी कहके वोहर बंदी अरुन तीर ठाढ़ होगिस।

एकांकी रूपांतरण- सीताराम पटेल सीतेष