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साहित्यिक पुरखा के सुरता : प्यारेलाल गुप्त

झिलमिल दिया बुता देहा

गोई, पुछहीं इन हाल मोर तौ, धीरे ले मुस्क देहा।
औ आँखिन आँखिन म उनला, तूं मरना मोर बता देहा।।

अतको म गोई नइ समझें, अउ खोद खोद के बात पुछैं।
तो अँखियन म मोती भरके, तूं उनकर भेंट चढ़ा देहा।।

अतको म गोई नइ समझें, अउ पिरीत के रीत ल नइ बूझें।
एक सुग्घर थारी म धरके, मुरझाए फूल देखा देहा।।

गोई, कतको कलकुत उन करहीं, बियाकुल हो हो पाँ परहीं।
तौ काँपत काँपत हाँथ ले तूं, झिलमिल दिया बुता देहा ।।

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घर उज्जर लीपे पोते , जेला देख हवेली रोथे
सुग्धर चिकनाये भुइंया , चाहे भात परोस ले गुइन्या
कोठा मं भैंसा गरुवा , अंगना मं तुलसी घरुवा
लकठा मं कोला बारी , जिंहा बोथन साग तरकारी
ये हर अन्न पूर्णा के छाँव , हमर कतका सुग्धर गांव ।
हमर कतका सुग्घर गांव जइसे लछमी जी के पांव ….

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हमर कतका सुन्दर गांव

हमर कतका सुन्दर गाँव
जइसे लछिमी जी के पांव
घर उज्जर लीपे पोते
जेला देख हवेली रोथे
सुघ्घर चिकनाये भुंइया
चाहे भात परूस ला गूइंया
अंगना मां तुलसी चौरा
कोठा मां बइला गरूवा
लकठा मां कोला बारी
जिहँ बोथन साग तरकारी
ये हर अनपूरना के ठांव। हमर…..
बाहिर मां खातू के गड्ढा
जिहां गोबर होथे एकट्टा
धरती ला रसा पियाथे
वोला पीके अन्न उपजाथे।
ले देखा हमर कोठार
जहाँ खरही के गँजे पहार
गये हे गाड़ा बरछा
जेकर लकठा मां हवे मदरसा
जहाँ नित कूटे नित खॉाँय । हमर…..
जहाँ पक्का घाट बंधाये
चला चली तरइया नहाये
ओ हो, करिया सफ्फा जल
जहाँ फूले हे लाल कंवल
लकठा मां हय अमरैया
बनबोइर अउर मकैया
फूले हय सरसों पिंवरा
जइसे नवा बहु के लुगरा
जहाँ धाम लगे न छांव। हमर….
चला जल्दी गियां नहाई
महदेव ला पानी चढ़ाई
भौजी बर बाबू मंगिहा
‘गोई मोर संग झन लगिहा’
‘ननदी धीरे-धीरे चल
तुंहर हँउला ले छलकत जल’
कहिके अइसे मुसकाइस
जाना अमरित चंदा बरसाइस
ओला छोड़ कहूँ न जाँव। हमर…..
आपस मां होथन राजी।
जहाँ नइये मुकदमा बाजी
भेदभाव नइ जानन
ऊँच नीच नह मानन
दुख सुख मां एक हो साथी
जइसे एक दिया दू बाती
चरखा रोज चलाथन
गांधी के गुन गाथन
हम लेथन राम के नांव। हमर…..

धान लुवाई

चलिस मंडलिन धान लुआये,
सुरुज किरन के छांव म।
कान न खिनवा, गर म सुतुवा,
हरपा पहिरे पावं म॥
संग म कमिया चोंगी पियत,
सूर लमाये खांध म।
हँसिया खोंचे गात कमैलिन,
सेंदुर बुके मांग म॥
लठ॒हा-लठहा चला कमैलिन,
सोन बिछे हय खेत म।
सोनहा झुमका इन्दरानी के,
टूट परे हय खेत म।
पान पान म मोतियन माला,
अरझ परे हय खेत म।
धरती माता के छाती के,
दूध बहे हय खेत म॥
जल्दी गोड उठावा कमिया,
जांगर के फल पाये बर।
लहू पसीना एक करे हा,
तेकर दुख बिसराये बर॥
गाबो गीत सबो झन जुरके,
लूबो पाही पाही गा।
करपा ऊपर चंदा रानी,
रास रचाही रात म॥
संग चंदेनी सखी सहेली,
रस बरसाही रात म।
सोनहा घ्रुघरू पायजेब के,
छटक बगरही खेत म॥
सीला बिनहीं टूरी टूरा,
होत बिहनिया खेत म।
चला गा कमिया सूर लमावा,
डोला साजा छांव म॥
अनपुरना ओमा चढ़ आही,
लहसत लहसत गांव म।
गोबरौटे सुघ्छर कोठार म,
उन ल हम परथाबौ गा।
उन्हीं ल लेके उन करे मंदिर,
हम सब उहाँ बनाबो गा॥

  • प्यारेलाल गुप्त