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व्यंग्य

व्‍यंग्‍य : रोटी सेंकन मय चलेंव………

छत्तीसगढ़िया मन के आदत कहां जाही। बिगन भात बोजे पेट नी भरय। फेर कुछ समे ले मोर सुवारी ला को जनी काये होगे रहय, कोन ओकर कमपयूटर कस बोदा दिमाग ला हेक करके, रोटी नाव के वाइरस डार दे रहय, फकत रोटीच सेंके के गोठ करथय। भाग के लेखा ताय, अनपढ़, निच्चट सिधवी अऊ नरम सुभाव टूरी संग बिहाव होय रिहीस मोर। फेर कुछ समे ले, होटल के रोटी कस चेम्मर, टेड़गा, पेचका होवत जात रिहीस । अखबार म कोन जनी काये पढ़हय, फकत इहीच पूछय, हमर देस म, अतेक मनखे मन रोटी सेंकत हे, तभो ले, कतको झिन, भूख म काबर मरत हे ? ओकर जवाब देवत केहेंव के, भूख म मनखे मरथे, तब इहां रोटी सेंकथे…..। ओहा प्रतिपरस्न करय – भूख म मर जाये के पाछू, रोटी सेंके के काये मतलब …..। में अपन सुवारी ला वकील कस, कतको धंवा के समझायेंव, फेर, जज कस ओकर दिमाग म, मोर बात नी खुसरीस। तभे अखबार म फेर समाचार पढ़हे बर मिलगीस के, एक झिन मनखे भूख ले तलफत मरगे। ओला देखाये के सोंचेंव के, मरे के पाछू मनखे मन, कइसन रोटी सेंकथे …….।
एक जगा, एक ठिन लास कस परे रहय, देखते देखत भीड़ सकलागे। कन्हो ला ये देखे के न फुरसत हे, न इकछा, के मनखे जियत हे, के राम नाम सत होगे हे। कुछ भइया टाइप मन, लास के उप्पर, राजनीति के, करिया तावा मढ़हा दीन। महत्वाकांछा के आटा, अपन झोला ले निकालीन अऊ मक्कारी के नून म, बेईमानी के सकलाये पानी रिको, सान डरीन। सुवाद बर मनखे के लहू, लिमऊ कस निचो दीन। गरम गरम रोटी सेंकावत हे, फेर बिगन देखाये लुका लुकाके खाये लगीन। धीरे धीरे, रोटी सेंकइया मन के सत्ता के भूख मेटाये लगीस। इंकर भूख मेटागे, तब इंकर तावा अपने अपन जुड़ागे अऊ येमन दूसर ठीहा खोजे लागीन। हमर सुवारी देखीस, फेर ओला समझ नी अइस।

थोरेच बेरा म, उहीच करा दूसर परकार के मनखे मन अमरगे। एक झिन कहन लगीस – ये लास हमर धरम के आय, अऊ येला कोन मारे हे तेला मे जानत हंव, तभे दूसर धरम के मनखे अमरगे, ओहा ये लास ला अपन धरम के बताके, पहिली धरम के मनखे उप्पर, मारे के आरोप लगइस। आरोप परतिआरोप चलत हे। धरम के करिया तावा म सामपरादाईकता के आटा, सुवारथ के पानी म सनावथे, रोटी सेंकागे, इंकर बिरोध के भूख सांत होगे। लास ला दूनों धरम के मन, उइसने छोंड़ के जाये बर धरीन, मोर सुवारी ओमन ला पूछथे – अभीच्चे तूमन, हमर धरम के आय येहा कहिके, झगरत रेहेव अऊ अपन रोटी सेंकागे तहन, उइसनेच येला छोंड़ के रेंगत हव, तूमन ला एको कनीक लाज सरम निये। ओमन किथे – हमर रोटी सेंकावत ले जान डरेन बहिनी के, न ये हिंदू आय, न मुसलमान आय, येहा केवल इनसान आय, हमर नजर म येकर कन्हो किम्मत निये …..। मोर सुवारी मुहुं ला फार दीस …..।




राम नाम सत्य हे, सबका वही गत्य हे, कहत, कुछ मनखे मनला आवत देखीस त, मोर सुवारी ला लास के गत बन जायेके, उमीद जगीस। येमन लास के ठिकाना लगाये बर नी आय रहय बलकी, अपन बर ठिकाना खोजे बर आय रहय, तभे तो आतेच साठ, अपन अपन जात पात के करिया तावा, ओकर उप्पर म मढ़हाये लागीन। झोला ले, भेदभाव के आटा निकालीन, ऊंचनीच के नून मिंझारके, छुवाछूत के पानी म सान के, रोटी सेंक डरीन। रोटी ले इंकरो परतिस्ठा के धोंध भरगे। मोर सुवारी किथे – तुंहर मन के पेट भरगीस होही ते, अब तो लास के गत बना दव। लास ला जइसे हाथ लगइस, हाथ म किटकिट ले धरे जुन्ना सिक्का देख पारीस, तुरते पिछू घुच दीन। ओमन किथे, हमर मनखे नोहय, बड़े मनखे आय, येकर काबर गत बनाबो। कुछ बड़े मनखे मन, ओकर गोड़ करा ठाढ़हे रिहीन, भदई फूटे कस चटके गोड़ देखीन, यहू मन ओला अपन नोहे कहिके, जान डरीन। कुछ सधारन टाइप के मनखे मन ला, ओकर टोंटा म जनेऊ दिखगे, वहू मन पछगुच्चा होगीन।

जनेऊ धारी मन ला ओकर कनिहा म, कारी पोत के दरसन होगे, यहू मन ओला छुये ले मना कर दीन। मोर सुवारी देखत रहय, ओ किथे – अभू तक तूमन, येला अपन जात के समझ, अपन अपन दावा करके, लेजे बर आय रेहेव, तूमन ला काये ……… मार दीस तेमा, कम से कम, इनसान समझ के, लेग जावव अऊ गत बना देवव। ओमन किथे – इनसान होतीस ते खत्ता म लेग जतेन बहिनी, येहा जनता आय। जनता ला, हमर समाज, न जियत ले पूछे, न मरे म …….। एकर गत बनाये म, हमर गत बन जतीस, त लेग घला जतेन ……। मोर सुवारी उही करा बेहोस होगे ….।

संझाती बेर, जब ओला होस अइस तब, मोला घर म आटा सानत देख पारीस …….. ओकर आंखी, गप्प ले फेर मुंदागे। केऊ परत पानी थोपेन, होस अइस त, पहिली परस्न इही करीस के, तहूं मन रोटी सेंकत हव …………? में कुछु कहितेंव तेकर पहिली, उठके बइठगे, ओला पूरा होस आगे, हांसत किहीस – तूमन, मोला लास समझगे रेहेव का ….? में केहेंव – हमन जनता आवन जी, हमन सिरीफ अपन पेट भरे बर, रोटी सेंक सकत हन, भूख मेटाये बर निही ………..।

हरिशंकर गजानंद देवांगन
छुरा
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