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कविता

परकीति के पयलगी पखार लन

आवव,
परकीति के पयलगी पखार लन।
धरती ला चुकचुक ले सिंगार दन।
परकीति के पयलगी पखार लन।।
धरती ला चुकचुक ले सिंगार दन।।

रुख-राई फूल-फल देथे,
सुख-सांति सकल सहेजे।
सरी संसार सवारथ के,
परमारथ असल देथे। ।
धरती के दुलरवा ला दुलार लन।
जीयत जागत जतन जोहार लन।।
परकीति के पयलगी पखार लन।। 1

रुख-राई संग संगवारी,
जग बर बङ उपकारी।
अन-जल के भंडार भरै,
बसंदर के बने अटारी। ।
मत कभु टँगिया, आरी, कटार बन।
घर कुरिया ल कखरो उजार झन।।
धरती ल चुकचुक ले सिंगार दन।। 2

रुख-राई ला देख बादर,
बरसथे उछला आगर।
बिन जल जग जल जाही,
देवधामी जस हे आदर। ।
संरक्छन के सुग्घर संसार दन।
परियावरन के तैं रखवार बन।।
परकीति के पयलगी पखार लन।। 3

रुख-राई ला बचाव संगी,
पेड़ परिहा बनाव संगी।
चिहुर चिरई चिरगुन,
सिरतोन सिरजाव संगी। ।
बिनास ला बेवहार मा उतार झन।
पर हित ‘अमित’ पालनहार बन।।
धरती ला चुकचुक ले सिंगार दन।। 4
परकीति के पयलगी पखार लन..

-अमित सिंगारपुरिया
शिक्षक, भाटापारा
जिला बलौदाबाजार (छग)
पिनकोड 493118
संपर्क 9753322055
लगाव रुख-कमाव सुख