Categories
कविता

समे-समे के बात

बदलाव होवत रहिथे संगी,
जिनगी के सफर म,
कोनों धोका म झन रहै,
बपौती के,न अकड़ म।
काल महुँ बइठे रहेंव सीट म,
संगी,आज खड़े हौं,
कोनों बइठे हे आज, त झन सोचै,
के मैं फलाने ले बड़े हौं।

केजवा राम साहू ‘तेजनाथ’
बरदुली, कबीरधाम, छ ग.
7999385846