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समीक्छा : दोहा के रंग




साहित्य के छंद के अपन अलगे महत्ता हवय। छंद ह साधना के विसय आय, बेरा-बेरा म छत्तीसगढ़ी म छंद लेन के काम होवत रहे हे, फेर आज के नवा पीढ़ी ह छंद के नाव ले सुनके भागथे। अइसन बेरा म रमेेश चौहान के दोहा गीत संगरा- दोहा के रंग के परकासन ये बात द्योतक हे कि अभी घलो छंद के महत्ता कम नइ होय हे, ओकर लिखईया भले कम होगे हे। दोहा के रंग ल चौहान बड़ सुग्घर ढंग ले अलग- अलग खंड म बांट के लिखे हवय। खंड “अ” म दोहा छंद के सिल्प बिधान दे गे हवय। दोहा काला कहिथे, दोहा कतका परकार के होथे, कतका मातरा के होथे, दोहा कईसे लिखे जाथे अउ दोहा लिखे के कोन-कोन से नियम धियम हे तेला विस्तार ले समझाय गे हवय। मात्रिक छंद म मातरा गिने के तरीका, लघु अउ गुरु लगाय के तरीका, तुकांत के नियम, समचरण अउ विषम चरन ल बिस्तार से समझाय गे हवय। अलग-अलग संदर्भ ग्रंथ ले दोहा सिल्प विधान के जानकारी ल चौहान जी बड़ मिहनत ले संग्रहित करे हवय। छंद सिखैया मन बर ये बड़ उपयोगी साबित होही। दोहा- गीत, दोहा-ददरिया, दोहा-सिंहावलोकनी अउ दोहा मुक्तक ल उदाहरन सहित समझाय गे हवय।

खण्ड- “अ” में दोहा छंद के शिल्प विधान दे गे हवय । दोहा काला कहिथे, दोहा कतका परकार के होथे, कतका मातरा के होथे, दोहा कईसे लिखे जाथे अउ दोहा लिखे के कोन-कोन से नियम धियम हे तेला विस्तार ले समझाय गे हवय। मात्रिक छंद म मातरा गिने के तरीका, लघु अउ गुरू लगाय के तरीका, तुकान्त के नियम, सम चरण अउ विषम चरण ल बिस्तार से समझाय गे हवय। अलग अलग संदर्भ ग्रंथ ले दोहा शिल्प विधान के जानकारी ल चौहान जी बड मिहनत ले संग्रहित करे हवय। छंद सिखैया मन बर ये बड उपयोगी साबित होही। दोहा-गीत, दोहा-ददरिया, दोहा-सिंहावलोकनी अउ दोहा मुक्तक ल उदाहरण सहित समझाय गे हवय।

खण्ड- ब ” दोहावली” आय जेमा कुल मिलाके 349 दोहा संग्रहित हवय। दोहा ह अलग-अलग विषय जइसे-अध्यात्म, मया पिरीत, बेजा कब्जा,गाँव अउ किसान, शिक्षक दिवस, मडसम,आतंकवाद, टूटत परिवार, संस्कार,रामकथा, सहिष्णुता,काम बुता सहित अन्य विषय म लिखे गे हवय।

खण्ड “स’ दोहा गीत जेमा कुल 43 गीत समावेशित हवय जेमा अलग-अलग विषय, परिवेश, परब, तीज त्योहार, धार्मिक स्थल आदि ल लेके दोहा गीत रचे गे हवय।

खण्ड “द’ दोहा-ददरिया आय येहा लेखक के नवा प्रयोग आय काबर ददरिया म दोहा के प्रयोग हवय। नायक अउ नायिका के सवाल अउ जवाब दोहा म करे गे हवय जेन ह मोर जानबा म छत्तीसगढी म पहिली प्रयोग आय। खण्ड “‘इ’ म दोहा मुक्तक अउ सिंहावलोकनी दोहा मुक्तक हवय। पुस्तक के कुछ बानगी देखव :-

मजदूर के पीरा ल देख के चौहान जी लिखथे –

लात परे जब पीठ मा,पीरा कमे जनाय ।
लात पेट मा जब परय,पीरा सहे न जाय ॥।

बेजा कब्जा ले व्यथित होके कवि लिखथे –
तरिया नरवा छेक के ,दे हे ओला पाट ।
कहाँ हवे पानी भला,कहाँ हवे गा घाट ।।

तंबाकू ,मदिरा जइसन दुर्व्यवसन के भयावहता के चित्रण देखव-
दारू मंद के लत लगे,मनखे मर-मर जाय ।
जइसे सुख्वा डार हा, लुकी पाय बर जाय ।।

छ.ग.के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल मन के सुग्घर बरनन चौहान जी अपन दोहा म करथे –
दामाखेडा धाम मा,हे साहेब कबीर ।
ज्ञानी ध्यानी मन जिहाँ, बइठे बने फकीर ।।

रमेश चौहान जी नवा पीढी के प्रतिनिधित्व करथे ,छत्तीसगढी साहित्य म छंद विधा ल पोठ करे के काम चौहान जी करे हवय। दोहा गागर म सागर भरे के विधा आय वो दृष्टिकोण से चौहान जी के कुछ दोहा म थोकिन कसावट के जरूरत महसूस करेंव फेर उँकर मेहनत अउ नव प्रयोग सराहनीय हवय। कव्हर पेज सुग्घर कलात्मक हे, कुल मिला के पुस्तक ह संग्रहणीय हे। उन ला बधाई अउ शुभकामना।

अजय अमृतांशु”

साहित्यकार – रमेश चौहान
पुस्तक दोहा के रंग
साहित्यकार -रमेश चौहान
प्रकाशक -वैभव प्रकाशन रायपुर
मूल्य -100/- मात्र