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कविता

संगी के बिहाव

दोस्ती म हमर पराण रिहिस हे, जुन्ना अब संगवारी होगे।
तोर बिहाव के बाद संगी, मोर जिनगी ह अंधियारी होगे।

बाबू के घर म खेले कूदे, तै दाई के करस बड़ संसो।
सुन्ना होगे भाई के अंगना, जिहाँ कटिस तोर बरसों।।
अपन घर ह पराया अऊ, पर के घर अपन दुवारी होगे।
तोर बिहाव के बाद संगी, मोर जिनगी ह अंधियारी होगे।।

तोर आंखी म आँसू आतिस, त मोर छाती ह कलप जाये।
जबै तैहा खुश होतै पगली, तभै मोला खुशी मिल पाये।।
बिहाव होए ले‌ संगी तोर, दिल के मोर चानी चानी होगे।
तोर बिहाव के बाद संगी, मोर जिनगी ह अंधियारी होगे।।

खुशी के मारे आयेव बिहाव म, आके मोला थरथरासी लागिस।
बिदाई बेरा तोला रोवत देख, महु ल बड़ रोआसी लागिह।।
चंदा चमकत रिहिस फेरा म, बिदाई के बेरा एतवारी होगे।
तोर बिहाव के बाद संगी, मोर जिनगी ह अंधियारी होगे।।

भुलाबे झन तै मोला संगवारी, खियाल राखबे तैहा तोर।
दुख झन मिलै कभु मिस खान, विनती हवै ईहीच मोर।।
सुरता त‌ तोर आही संगी, फेर तै अब काकरो सुवारी होगे।
तोर बिहाव के बाद संगी, मोर जिनगी ह अंधियारी होगे।।

पुष्पराज साहू “राज”
छुरा (गरियाबंद)

5 replies on “संगी के बिहाव”

Sahi kaha dost kavita me
Apna sangi jise hum chahte hai wo kisi aur k sath shadi ho ke chali jaye toh bada dukh hota hai…
Nice kavita

chhattisgarhi bhasha ke vikaas me bahut yogdaan dega ye website
aisy aur karyo ki jarurat hai

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