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कहानी

सरद पुन्नी के सार कथा

चार महीना चौमास के बीते ले सरद रितु के शुरुवात होय ला धर लेथे ता गुरतुर जाड़ हा तन मन ला मोहे ला धर लेथे। इही कुनकुनहा जाड़ मा सरद पुन्नी के वरत हा आथे। घर परवार जुरमिल के पुन्नी के रतिहा चंदा ले बरसे अमरित ला पाये खातिर रातभर एके जगा जुरिया जाथें। ए पुन्नी के वरत हा मन के सब्बो कामना ला पुरा करइया वरत हरय। सरद पुन्नी के गुन अउ महत्तम के कारन एखर अब्बड़ अकन नाँव घलाव हे। एला कोजागरी वरत, रास पूर्णिमा, कुमार वरत, अउ चंदा के अँजोर ला कुमुद कहे के कारन सरद पुन्नी ला कुमुद वरत घलो कहीथें। बच्छर भर मा सरद पुन्नी के रतिहा हा सबले जादा अँजोर रथे। चन्दा अउ चंदैनी के अँजोर मा जम्मो धरती हा चकचक के उज्जर इही रतिहा दिखथे। अइसन लागथे के चौमास के कीचीर काचर चिखला पानी ले उबर के धरती हा रगरग ले सुग्घर मनमोहना रुप ला धरे हावय। चारो खूँट परकीति मा सफ्फा अउ सुघराई छा जाथे। चंदा के सोला कला ला देख के मनखे हा मोहा जाथे अउ तन मन हा सीतल हो जाथे। ए वरत ला हमर देश भर मा सरद पुन्नी के मानियता अउ महत्तम ले मनाय जाथे। विधि विधान ले पूजा अरचना करे जाय ले जीयत भर इहलोक अउ परलोक मा लछमी दाई के आसीरबाद हमर संग बने राहय।
जुन्नहटा मानियता हे के सरद पुन्नी के रतिहा बेरा मा चंदा के झम्मक अँजोर मा माता लछ्मी हा पिरिथिवी घुमे ला आथे। हमर हिन्दू ग्रंथ पुरान के हिसाब ले सरद पुन्नी के रात मा लछमी दाई हा अपन सवारी उल्लू मा सवार होके धरती के सुघराई अउ मनमोहना रुप के आनंद ले बर आथे। संगे संग माता लछमी हा एहू देखथे के मोर कोन कोन भगद मन आज रतिहा जगवारी करके मोर भक्ति करथें। एकरे सेती सरद पुन्नी के ए रतिहा ला “कोजागरी” घलाव कहे जाथे। “कोजागरी” शब्द के अर्थ होथे “कोन जागत हावय”। अइसन मानियता हावय के सरद पुन्नी के रात मा जगकरमा लछमी के उपास करके पूजा पाठ करे ले लछमी दाई के बड़ किरपा मिलथे। सरद पुन्नी के महत्तम ला जोतिष मन हा बताथें के जौन मन हा ए रतिहा माता लछमी के रात भर जाग के पूजा उपास करथें तेन मन के कुण्डली मा धन योग नइ रहे ले घलो लछमी माता के किरपा ले धन दोगानी बरसथे।
पुरखा मन के मानियता एहू हे के सरद पुन्नी के दिन माता लछमी के जनम होय रहीस। एखरे सेती हमर देश के कई जगा जगा मा सरद पुन्नी के दिन लछमी पूजा करे के प्रथा हावय। द्वापरयुग मा भगवान श्रीकृष्ण हा जनम लेइच ता माता लछमी हा घलाव राधा जी के रुप मा जनम धरीन। भगवान श्रीकृष्ण अउ राधारानी जी के सुग्घर अउ अद्भुत रासलीला हा सरद पुन्नी के दिन ले शुरु होय रहीस। शंकर भगवान के भगद मन बर सरद पुन्नी के बिसेस महत्तम हावय। मानियता हावय के भगवान भोलेनाथ अउ माता पारवती के बड़े बेटा कारतिक के जनम हा सरद पुन्नी के दिन होय रहीस। एखरे सेती सरद पुन्नी ला “कुमार पूर्णिमा” घलाव कहे जाथे। हमर देश के पश्चिम बंगाल अउ उड़ीसा मा सरद पुन्नी के दिन कुँवारी नोनी मन बड़े बिहनिया ले असनाँद करके सूरुज अउ चंदा के पूजा-पाठ करथें। अइसन करे ले कुँवारी लइका मन ला मनमरजी जोंड़ी मिलथे।




सरद पुन्नी ला कोजागरी पुन्नी के नाम ले घलो जाने जाथे। एखर पाछू के कारन नारद पुरान के हिसाब ले सरद पुन्नी के रतिहा मा लछमी माता हा अपन दुनों हाथ मा वरदान अउ अभय ला धरे घुमथे। इही रतिहा मा लछमी दाई के कीरतन-पूजन कर रात भर जगइया भगद मन ला धन-दोगानी के आसीरबाद मिलथे। सरद पुन्नी के दिन लछमी दाई के पूजा-पाठ करना चाही। सरद पुन्नी के दिन संझा बेरा चंदा उवे ले चांदी, सोन या फेर माटी के दीया जलाँय। इही दिन घी अउ शक्कर डार के बनाय खीर ला चंदा के अंजोर मा अँगना मा रखथें। एक पहर रतिहा बीते ले खीर के भोग लछमी दाई ला अरपन करना चाही। भोग लगाय खीर ला परसाद बाँट के रात भर भजन किरतन गा के पूजा पाठ करत करत रात जगवारी करना शुभ माने गे हावय। ए प्रकार ले ए वरत पूजा करते रहे ले लछमी दाई के किरपा जिनगी भर बने रथे अउ मरे के पाछू परलोक मा घलो देवी लछमी के किरपा बने रहिथे।
सरद पुन्नी के महत्तम के कहिनी हा कुछ अइसन हावय। एक झन साहूकार के दू झन बेटी रहय। दूनों बेटी मन हा सरद पुन्नी के वरत करय। बड़े बेटी हा वरत ला विधि-विधान ले पूरा करय अउ छोटे बेटी हा हा आधा -अधूरा वरत पूजा करय। अइसन करे ले बड़े बेटी के लइका मन हा जीयय अउ छोटे बेटी के लइका मन होवय अउ मर जाय। छोटे बेटी हा अपन लइका मन के मरे के कारन ला गियानी पंडित मन ले पुछथे। पंडित मन बताइन के आधा-अधूरा सरद पुन्नी के वरत करे के कारन तोर लइका मन हा मरथें। छोटे बेटी हा अपन लइका मन ला बचाय के उदिम पुछीस ता जानिस के सरद पुन्नी के उपास अउ पूजा-पाठ विधि-विधान ले पूरा करे मा भलई हावय। छोटे बेटी हा ए उपाय ला जान के सरद पुन्नी के दिन विधि-विधान ले वरत पूजा करीस फेर ओखर लइका थोरिक समे पाछू मरगे। छोटे बेटी हा मरहा लइका ला पिढ़वा मा सुता के कपड़ा मा ढ़ाक-तोप के अपन बड़े बहिनी ला बलाके उही पिढ़वा ला बइठे बर दीस। बड़े बहिनी के लुगरा हा मरहा लइका ले छुआइस ता लइका रोय ला धर लीस। बड़े बहिनी हा छोटे बहिनी ले कहीस के तैं मोला पाप बोहाय बर अपन जीयत लइका उपर बइठारत रहेस लइका मर जातीस ता। ता छोटे बहिनी हा कहीस के मोर लइका तो पहिलीच ले मरगे रहीस दीदी। तोर पुन ले मोर लइका जिन्दा हो उठीस।एखर पाछू छोटे बेटी हा अपन शहर मा सरद पुन्नी वरत के महत्तम के हाँका परवा डारीस। ए प्रकार ए सरद पुन्नी वरत हा संतान सुख के संगे संग सकल सुख के देवइया हरय।

कन्हैया साहू “अमित”
शिक्षक-भाटापारा(छ.ग)
संपर्क~9753322055
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