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कविता

गाँव गाँव आज शहर लागे

गाँव म गरीब जनता खातिर चलाये जात योजना मन उपर आधारित

गाँव गाँव आज शहर लागे,
चकचक ले चारो डहर लागे !

फूलत हे फूल मोंगरा विकास के,
ओलकी कोलकी महर महर लागे !

जगावत हे भाग अमृत बनके ,
जे गरीबी हमला जहर लागे !

संसो दुरियागे देख नवा घरौंदा,
खदर जेमा ढांके हर बछर लागे !



काया पलटत जमाना हे ललित,
सांगर मोंगर होगे जे दुबर लागे!

रद्दा गढ़त अब बिन संगवारी के,
रेंगत अकेल्ला जिंहा डर डर लागे !

घात सुग्घर निखरत रूप भूंइया ला,
देखव बने , झन काकरो नजर लागे !

ललित नागेश
बहेराभांठा (छुरा) 493996