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कविता

सरसों ह फुल के महकत हे

देख तो संगी खलिहान ल
सरसों ह फुल गे घम घम ल
पियर – पियर दिखत हे
मन ह देख के हरसावत हे
नावा बिहान के सन्देस लेके आये हे
नावा बहुरिया कस घुपघुप ल हे
हवा म लहरत हे
सुघ्घर मजा के दिखत हे
पड़ोसिन ह लुका लुका के भाजी ल तोरत हे
फुल के संग म डोलत हे
अगास ह घलो रंग म रंग गेहे हे
देखैया मन के मन मोहत हे
महर महर महकत हे
रसे रस डोलत हे
देख के मन ह हरसत हे
पियर – पियर दिखत हे
धरती ह सोन बरोबर दिखत हे
हिरदे के तार ल
कुलेचुप छेड़त हे
मने मन म फुलसुन्दरी
अपन पिया ल खोजत हे
सरसों के फूल ल टोर टोर के
मुँह म चुमत हे
घेरी बेरी पीछू ल देखत हे
दोपहरी के बेरा म
सज संवर के मने मन गुनत हे
पिया के सपना सँजोये
घेरी बेरी फूल ल चुमत हे

लक्ष्मी नारायण लहरे “साहिल”
कोसीर सारंगढ़