का सोंचबे
अउ का हो जाथे
फेर गोठ
फटाक ले
निकल जाथे
मुह के तो
धरखंद नइहे….!
असकरन दास जोगी जी के ये कविता उंखर ब्लॉग www.antaskegoth.blogspot.com म छपे हे। आप येला उहां से पूरा पढ़ सकत हव।
का सोंचबे
अउ का हो जाथे
फेर गोठ
फटाक ले
निकल जाथे
मुह के तो
धरखंद नइहे….!
असकरन दास जोगी जी के ये कविता उंखर ब्लॉग www.antaskegoth.blogspot.com म छपे हे। आप येला उहां से पूरा पढ़ सकत हव।
One reply on “सासाबेगी”
धन्यवाद आदरणीय संजीव भईया जी