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कविता

सावन के झूला

सावन के झूला झूले मा , अब्बड़ मजा आवत हे।
सबो संगवारी मिलके जी ,सावन के गीत गावत हे।।

हंसी ठिठोली अब्बड़ करत , झूला मा बइठे हे।
पेड़ मा बांधे हाबे जी , डोरी ला कसके अइठे हे।।

दू सखी हा बइठे हे जी , दू झन हा झूलावत हे।
पारी पारी सबो संगी, एक दूसर ला बुलावत हे।।

हांस हांस के सबोझन हा , अपन अपन बात बतावत हे।
सावन के आगे महीना जी ,सबोझन झूला झूलावत हे।।

प्रिया देवांगन “प्रियू”
पंडरिया (कवर्धा)
छत्तीसगढ़