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इस्कूल : छत्‍तीसगढ़ी कहानी

राज-छत्तीसगढ़, जिला-कवरधा, गांव- माताटोला, निवासी- गियारा बारा अक सौ, इस्कूल- सरकारी पराइमरी, कच्छा- पांचमी तक,  गुरुजी-तीन, कुरिया- चार। बरामदा -पहिली दूसरी के, तीसरी चौथी बर एक कुरिया, एक कुरिया- पांचमी के,अउ एक गुरुजीमन बर। कच्छा- पांचमी, लइकन- तीस, बत्तीस। गुरुजी- गनित बिसय के, होमवर्क जाँचत रहिस। “सब झन अपन होमवर्क करके आये हव?” सब झन डाहर ल देखत गुरुजी पूछिस।  “यस्स सर!” सब लइकन हाथ उठाइन। “हंss, त चलव अपन- अपन कापी देखाव।” अउ गुरुजी भिड़गे जाँच करे म। गुरुजी, अइसने कभू- कभू घर बर काम जोंग देये करै अउ जाँच लै घलो कभू- कभू।पराभिट इस्कूल ले घिसा के आये रहिस तेखर सेति लइकन के कंडीसन सुधारे म गिरीह कारज के महत्व ल समझै-बुझै। अउ एखरे सेति कभू – कभू। हं, कभूच कभू। पराभिट म रहैं त एहि गुरुजी, रोज काम देवै अउ जांचै घलो। अब, अउ सरकारी म आगे, जादा तनखा म आगे त सब भुलागे। सिरतोन म, मनखे के सुभाव घलो, बइला-भइसा बानी होथे। जब लग, अरइ नइ परै, तब तक,काम नइ करै। हं, जेन दिन भिंड़य, तेन दिन पूरा उमचा लै।एक-एक जिनिस ल पूछै।एहु बात सहीं रहिस के अउ दूसर गुरुजी मन घलो अइसने काम देये करैं, जांचै। एक – दूसर के देखा सीखी म एक अच्छा माहौल तो बनत रहिस तेन बने बात रहिस। 
 गुरुजी, आज संजोग से जाँचत राहै। जेखर कापी ल जांचै, वोखर लंग जोड़ना, घटाना, गुना,  भाग पूछै।बीच-बीच म, हल्ला करत, मस्ती करत लइकन मन ल सान्त रहे बर बोलै, कभू तरेर के देखै घलोक। सब लइकन एकदम चुप्प ! 



“सब झन अपन कापी चेक करा डरेव जी?”  “यस्स सर।” “बिक्रम नइ कराये हे सर।” वोखर एक लाइन आड़ म बइठे अभिसेक  बोलिस। “खड़े हो, कइसे बिक्रम?” गुरुजी, वोखर डाहर ल देखत पूछिस।
 ” तबियत खराब हे सर, तेखर सेति नइ बनाये हंव सर।” बिक्रम घूर घुराये असन जवाब देइस खड़ा होके। “तबियत खराब हे धन बहाना मारत हस बेटा ?” गुरुजी अउ तिखारिस। बिक्रम चुप्प। “कइसे जी बिक्रम?” गुरुजी, अइसने दु तीन बेर अउ पूछ डारिस। बिक्रम हुकिस न भुकिस। ” तैं एति आ तो बेटा।” गुरुजी हाथ के इसारा करके बलाइस। “कइसे जी?” ….”नइ देखांव जा। का करना हे त करले।” चिल्लावात, गरजत बिक्रम बैठगे। जम्मो लइका मन बिक्रम डाहर देखे लगिन। “का कहेस रेss?” एक तो सरकार के उपेक्छा के सिकार, दूसर, घर म बाई के ताना, तीसर, इस्कूल आबे त गांव वाले मन के अटेलही गोठ। अउ अब तो हद होगे रहिस, वोखरे खेलाए, पढ़ाये लइका, वोखरे बर टेंसन देखावै,  जबान लड़ावै। गुरुजी के कुछ इज्जत, अस्तित्व होथे धन बांटी भौरा होथे गुरुजी, जेन पाय तेने खेल लै।गुरुजी घलो तैस म आगे। बात  इज्जत के रहिस। अउ उप्पर ले वरमा के जात। खुरसी ले रखमखावत उठगे। “का कहेस रे ? अउ बोल के तो बता। आवत हौं बेटा।”.. गुरुजी, वोखर कान ल पकड़ के उठादिस अउ एक कोन्हा म मुरगा बना दिस। ” सीघा पुछथौ त अकड़बाजी करथस। लगे राह बेटा। आज तोर पूरा गड़मस्ती निकाल देथौं।” गुरुजी घलो तमतमागे। अउ दूसर लइकन मन बिक्रम डाहर देखिन एक नजर, अउ फेर भिड़गे अपन पढ़ई -लिखई म।
बिक्रम, न गोरिया रहिस न करिया, बीमार जुगुत दीखै न मुजरिम कस। फेर वोला गुस्सा आतिस, माथा सरक जातिस त फेर नइ गुनतिस के आघु म कोन हे? कुछ भी बोल डारतिस। जेने ल पातिस, तेने ल उठाके फटिक, पटक देतिस। नहीं.…नहीं, वोखर कोनों नइहे अइसे नइहे। दाई -ददा,परिवार हे। बहिनी तेन पराभिट इस्कूल म पढ़थे वोही गांव के ‘विनय पब्लिक इस्कूल म।बिक्रम खुद उन्हें पढ़त रहिस पउर साल।मुस्किल से दू साल  नइ टिक पाए रहिस। अइसे तो ‘विनय’ वाले मन एके बछर म अकुलागे रहिन फेर दुघारू गाय के लात अमोल।जब लइकन ले झगरा- लड़ई, उंखर दाई-ददा मन ले सिकायत मिले लगिस त बिही के बीच ले कटही लिमऊ ल काटना जादा उचित समझिन। अइसे भी वोहू इस्कूल के पढ़ई – लिखई म रंग-ढंग नइ रहिस फेर जानत तो हव  अंधवा के बीच म कनवा राजा।भेड़िया धसान बस।



बिक्रम मुरगा बनेच रहिस।अकबकागे।गुरुजी के दइया-मइया! हाँ, सहीं समझेव। गुरुजी ल गारी देवत, जोर -जोर से, उठगे। सब लइकन अकबकागें। “का होगे  भगवान! बिक्रम थोड़े होही? सब गुरुजी मन पांचमी ककछा डाहर दउडिन।”खाली ये, खाली वो।” बिक्रम बड़बड़ाये लगिस। “भाड़ म जाय अइसन पढ़ई- लिखई।” बिक्रम धरिस अपन बस्ता अउ चलते बनिस। ” का होगे जी, बिक्रम?…?” अउ दूसर गुरुजी मन जेन मेर भेटिन, पुछिन, समझे, समझाये के परयास करिन। बिक्रम कनमटक नइ देइस। निकलगे इस्कूल ले।”का होगे .. का होगे?” जम्मों गुरुजी पुछिन। वरमा सर, रखमखावत जम्मो बात ल मुड़ा छोर ले बताइस। “…. हमरे पढ़ाये, खेलाए लइका हमरे मेर जबान लड़ाथे? वोखरे जबान सूरर देहुँ, धनिया बो देहुँ वोखर । का समझे हे मोला..।” वरमा सर ये बाजू ले वो बाजू खर खर-खर खर करत रहिस। ले दे के ठाकुर सर अउ बड़े गुरुजी  साहू सर सान्त कराइन। “..टीसी काट दब, जादा ऐच- पैच लगाहि त।होही लात साहब अपन घर के। हम गोरमेन्ट के खाथन धन वोखर बाप के ?  ले दे के माहौल सान्त होइस अउ फेर ककछा चालू होइस।तब तक लइका मन घलो खुसुर-फुसुर चालू कर देये रहिन।
सांझकुन, लइकन के घर पहुंचते ही बात घरो घर, बांस के भीरा म लगे आगि जस बगरगे। “…. साले टुराच के गलती होही। उज्जड हे। जइसन बाप तइसन बेटा।कोन दिन वोखर बाप ह कखरो इज्जत करे हे जेन वोखर बेटा..। वोखर बबा तो घलोक अटेलहा रहिस। तेखर तो खून आवै। डोमी के पीला ह ढोढ़वा थोड़े निकल जहि ग?” नानम गोठ।
बिक्रम के घर म कोनों पुछइया नहीं। बाप ह तेन अइसने घूमे ल निकले रहिस। बइठे रहिस होही कोनों दुकान, ठेला म गप्प मारत नहीं त तास खेलत। अउ वोखर महतारी खेत गेये रहिस।बिचारी वोही एक तो हे गाय – गरुआ, खेत- खार के जतन करइया अउ अपन गोसइया, लइका के सहैय्या। पति संग म अब पूत घलो दइया- मइया घर लेथें जब नहीं तब। कोन हे रोकैया, समझैय्या उन्ह ल। दुनों पुरुस परानी हें, सबल हें। तीसरी म पढ़त रमिया बस समझ पावै फेर का बोल पातिस नानक लइका बिचारी । बस, अपन महतारी के कोरा म सो जै त कभू वोखर मुड़कान कर दै। रमिया, वोतके बेर अपन महतारी ल, अपन महतारी – संगवारी जस लगै। रामियाये ह वोला बताइस के….। ” … कुछु करै कोनों? कोन होथौं मैं कोनों ल समझइया- बुझैय्या?… का इज्जत हे मोर ये घर म? खेत कमइया बनिहारिन, सब के जतन करइया नौकरानी के, सबके तन मन के गुस्सा सहे के झउहा के ?.. ।” फूलबाई अपने अपन झंउहाइस। अइसने कभू परब पर जै त फूलबाई अपन गुस्सा, मजबूरी, पीरा बियान करै। रमिया घलो वो मेर ले घुच दिस। अपन कुरिया म घुसर के पढ़े लगिस। 
 भुवन, बिक्रम के बाप वोही दुकाने डाहर सुन डरे रहिस। “.. कुछ नहीं, गुरुजी मन के चरबी चढ़गे हे। आके ठलहा खुरसी टोरत रहिथें …।” भुवन खरखराइस।
सात अक बजे घर आइस त कोनों ल कुछ पूछिस न बोलिस। बिक्रम अउ रमिया अपन कुरिया म पढ़त रहिन अउ फूलबाई आगि बारे रहिस। बस अतके झन रहिन भुवन के परिवार म।बाप खतम होगे रहिस । महतारी छोटे भाई मेर रहिस अउ फेर बांटे भाई परोसी कहिथें। भुवने भर। घर के सियान समझ के गंवार?



हं, त दुसरैय्या दिन, बिक्रम,  रोज कस संगवारी मन संग इस्कूल गइस। जेखर पारी बंधाये राहै, तेन मन इस्कूल ल बाहरिन, साफ -सफाई करिन, पानी भरिन।दस बजे करेक्ट घण्टी लगाके परारथना करिन रोज कस। गुरुजी मन  कप्तान ल जेता देये रहिन। सवा दस अक बजे ले गुरुजी मन के टपकना चालू होवै। सब गुरुजी आये लगिन।बिक्रम अउ मुकेस सर मन बर, उंखर डब्बा म पानी भरे ल निकले रहिन केम्पस के बोरिंग म।वरमा गुरुजी वोतकेच खानी पहुँचीस। बिक्रम ल देखके बगियागे। वोखर पांव के गुस्सा मुड़ी म चढ़गे। फटफटी ले उतरे के पहिली बिक्रम ल इसारा करके गल्दारिस ” येss तैं कहाँ आये हस रे? काबर आये हस रे?” बिक्रम अउ मुकेस वोही मेर ठोठकगें।बिक्रम मुड़ गड़ियाये खड़ेच वोही मेर। मुकेस ककछा डाहर चलदिस गुरुजी के कहे मुताबिक। गुरुजी वोखर तीर म जाके तरेरिस ” काबर आये हस? तोला तो पढ़ई- लिखई, इस्कूल ले तो कोई मतलबे नइ हे।.. जा अपन घर म, गांव म देखाबे अपन हेकड़ी, इंहा नइ चलै।चल जा।” गुरुजी, बिक्रम के बाँह ल पकड़ के चेचकारिस। चल जा।” अउ दूसर गुरुजी मन घलो निकलेगें।लइका ल अतेक कसना ठीक नइ समझत रहिन फेर तभो ले साथी के साथ देइन। वोहू मन लइका ल चमकाइन। “…अपन बाप ल घर के लाबे तभे इस्कूल आबे..।” बिक्रम वोही मेर खड़े, कले चुप, जइसे बदलगे रातो रात। गुरुजी मन हंउहावत रहिन चारो मुड़ा ले।… दूसर लइका मेर ले वोखर बस्ता मंगा के खदेड़ दिन ” तोर बाप ल धर के लाबे तभे आबे ।” सब गुरुजी एके राग म राग मिला दिन अउ घुसरगें कक्छा म।बिक्रम आज बिचारा बनगे रहिस।  सुख्खा लकड़ी के खम्भा जुगुत खड़े रहिगे। का बतातीस बाप ल ? का करतिस?  आखिर म रोवत सुसकत लहुटगे अपन मुंह, अपन बस्ता लेके इस्कूल डाहर ल घेरी – बेरी देखत जइसे बेटी के बिदा होवत हे। घर आवत रहिस। वोही मेर गली के दुकान म वोखर बाबू ठलहा गप्प मारत रहिस। अपन बेटा ल इस्कूल ले लहुटत देखते साठ पूछिस ” का होगे रेss? का होगे बे? साले बोलबो नइ करै।मुँह सिलागे हे साले के।” बिक्रम अउ रोये लगिस सुसक-सुसक के जोर जोर ले। ” मारे हे गुरुजी मन धन कुछु काहत रहिन।” बिक्रम हुंकिस न भुकिस। ” चल आज ये गुरुजी मन के नाटक ल खतम करि देथौं।” भुवन रखमखावत उठिस। “जादच अकड़त हें।” अपन लइका के बाँह ल पकड़ के चेचकारत इस्कूल डाहर रेंगीस। ” महुँ आवौं का भईया? ” वोखर चेला चपाटी मन नमक अदा करिन।
”नहीं बे। उंखर बर तो महिं काफी हंव। .. आज उंह ल मजा चखाहुँ। धनिया बो देहुँ उंखर..।” भुवन, गली म बोमियावत आवत रहिस अपन लइका ल धरे।



” का होगे गुरुजीss? दुआरी ए मेर ले गल्दारिस भुवन। ” .. जेन हमर आज पेसी हे।” गुरुजी मन सचेत होगैं। “अरे दाऊजी! आव -आव। ” बड़े गुरुजी अपन खुरसी ले उठ के आदर करिस अउ अपन टेबिल के आघु खुरसी म बइठे के इसारा करिस। पांचमी के एक लइका ल पानी बर भेजे ल सर ल कहिस।भुवन बइठिस। एक माड़ी ऊपर दूसर पैर लाद के अइसे ठाठ-बाठ से बइठिस जना मना वोखरे दान ले इस्कूल चलत हे। बिक्रम वोही मेर खड़े रहिस बस्ता लादे बाजू म। ” अउ दाऊजी, का होवत हे?” गुरुजी थोकिन सकपकाए असन लगत रहिस। नेतातन्त्र, पालकतन्त्र अतका हावी होगे हे के एक अंगूठा छाप ले घलो, कलेक्टर, एसपी, मंतरी, सन्तरी तइयार करइया गुरु ल डरे ल परथे। का करही? जमानाच वोइसने आगे हे त। बड़े गुरुजी साहू ह टेबुल म बगरे सब कागजात ल सकेले असन जमाइस। पांचमी के लइका बोरिंग ले गिलास अउ जग म पानी भर के आगे। “दाउ जी, जल?” साहू गुरुजी जल लेये के अनुरोध करिस। लइका ह गिलास के पानी ल वोखर आघु, टेबिल म रख दिस।”राहुल, जग ल वो, बाजू के बेंच म रख के अपन कक्छा जा।” बड़े सर के आदेस पाके राहुल वोइसने करिस।
“गुरुजीss, ये नानकन लइका” अपन लइका डाहर हाथ से इसारा करके, ” तुंह ल कतेक तर भूंज डरिस, का पाप, गुना कर डरिस जेन इस्कूल म बइठारे बर बाप के हाजिरी होवत हे ।आंय।” गुरुजी के अउ कुछ बोले कि पहिली भुवन सीधा ताना कसिस। ” बेटा तैं कक्छा म जा” बड़े गुरुजी बहस के बीच म लइका ल रखना ठीक नइ समझत रहिस। ” नहीं, नइ जाय।”भुवन झट ले काट दिस। “”तैं एहि मेर राह रे। लबरा के मुंह जरै फुरा- जामोंगी म।” लइका वोही मेर फेर ठोठक के रहि गै। “पहिली ये बताव गुरुजी मोर लइका ले का..?”  “बस कुछ नहीं दाऊजी।”  गुरुजी मामला निपटाए के परयास करिस। “आप बात के बतंगड़ काबर बनावत हव भइ? लइका  इंहे पढ़त हे अउ इंहे पढ़त रइही।”  “बतंगड़? हूंह।बतंगड़ तो तुमन बनावत हव सर। नाटक करत हव।” भुवन के आँखि म, बात म रातकुन के दारू के नसा ले जादा, पइसा, पहुँच अउ पालक होये के नसा छलकत रहिस। “कहाँ हे वो वरमा गुरुजी?” भुवन अकड़ के बोलिस। ” महुँ तो देखंव, कुछ समझौ ।” वरमा गुरुजी कक्छा म पढ़ावत रहिस फेर भीतरे भीतर वोहू सुलगत रहिस छेना कस।बड़े गुरुजी के बलाए के पहिली, आगे वोहू रखमखावत।



“दाऊजी, जै राम।” जरूरी रहिस फॉरमैलिटी निभाना। “जै राम सर!” भुवन अटेलही बोलिस। वरमा सर बाजू के बेंच म बइठगै। कले चुप्प सब।…” कइसे सर, जादा पइसा होगे का? फोकट के पइसा ह पचत नइहे लगथे। मस्तियाये लगेव..”  “का होगे दाऊजी?” वरमा सर सरिफी देखाइस जइसे कुछ जानबे नइ करै। “का होगे? हुंह! बिचारा जइसे कुछ जानबे नइ करै। साधु बनके बइठे हे।आगि लगाके जाड़ मरे के बहाना करत हे। बाहह! ” बड़े सर चुप, वरमा सर चुप। “तहीं तो बिदारे हस मोर लइका ल सब बतावत हें। वोला, ये इस्कूल म पढ़न धकबे धन नहीं?” “देख दाऊजी” वरमा सर  मरियादा से बात राखिस “बिक्रम हमरो लइका हे। हमुं मन वोखर बिकास चाहथन, अच्छा बनाना चाहत हन, कुछ जिनिस गलत लगथे तेन ल दूर करे के परयास म कभू- कभू डांटे ल पर जथे।” वरमा सर, दाउ जी संग बहस करना सांप चाबे फेर सांप के मुंह जुच्छा के जुच्छा जस लगिस। “सुधारे के बहाना म सोटियाये ल, सड़काये ल मिल जथे कहौ न सर।” दाऊजी अटेलिस। “अइसन झन कहौ, समझौ दाऊजी।” बड़े गुरुजी बीच बचाव करिस। ” मैं कुछ नइ जानौं, मोर लइका बनय चाहे बिगड़ै, वो ल बिदारौ, बिचकावौव झन तेने बने होही।” भुवन एक लाइन म अपन अउ अपन लइका के दादागिरी चलाये के परमिट जारी करदिस। ” अच्छा!” वरमा गुरुजी के मान सम्मान ल जोर ठेस पहुँचीस। भीतरे भीतर वोहू भमकत रहिस । बोलिस “तुमन बाप, बेटा इंहा दादागिरी करत रहौ, मछरी जुगुत तरिया ल मतावत रहौ अउ हम देखत रहिन, ताली बजाइन। है न? फेर अइसन नइ हो सकै दाऊजी! ये गुरुजी के पद अइसने नइ होवै।” हाथ ल ऊपर डाहर उठाके, हलाके बोलिस वरमा सर बड़ गरब करके।  बड़े गुरुजी, दुनों झन ल सांत कराये के परयास करै फेर मानै त तो कोनों। पैरा जस आगि ये मेर गुंगवावै त वो मेर ले..। 



“..त तैं दुनिया ल सुधारे ल निकले हस? ” दाऊजी गरजिस। ” हुंह!” वरमा झट्ट ले बात ल उठालिस। गरब से सिर उठाके बोलिस ” त अब आपमन के बताये ले एक एमे, बीए, बीएड करे आदमी अपन फरज ल जानही दाऊजी। ह ह ।” वरमा सर अइसने मुस्कुराये असन करिस। “अइसन नइहे दाऊजी। दुनिया के बरदीधारी, चोलाधारी, सरकार चाहे संसार अपन काम करै चाहे झन करै, चाहे पद, पइसा के पाछु भागै फेर गुरुजी अपन गुरुता ल नइ तियागै। अइसन होथे गुरुजी के पद।” वरमा सर तनियावत बेंच ल उठगे। ” भरम म झन रहौ दाऊजी!” दाऊजी ल जरे म नून डारे जस लगिस। वोहू कोनों कसर नइ छोडिस “चल छोड़ना सर, तोर जइसे कतको देखे हन। आइन अउ गइन। हुंह।” दुआरी तिरन खड़े बिक्रम तनातनी देख के कांपे लगिस। “…त ठीक हे। जा लेग जा अपन पूत ल। कटा ले टीसी। तहाँ ले बना चाहि बिगाड़। इंहा रइही त कायदे म रइही।अच्छे से रइही तभे…।”  “चुपौ- चुपौ दुनों चुपौ। बड़े गुरुजी बहुत थमिस। फेर अब “मैं कब के राहौ – राहौ काहत हौं त कोनों मानबे नइ करत हौ। कुकरी लड़ई लड़त हौ।एक दूसर ल दबोचे लेवत हौ। कहाँ के संस्कार हे? एक हाथ खीरा के नौ हाथ बीजा बना देव। .. तमासा बनगे।” बड़े गुरुजी घलो ससन भर सुनाइस दुनों झन ल।इंखर तमकी तमका म आजु बाजू घर वाले मन जुरियागे रहिन। महाभारत जस कांव – कांव होये लगिस। “का होगे- का होगे? हटाव – हटाव..।” सब झन झगरा मेटे के परयास करिन।फेर… हाथा पाई के नम्बर  आ जाही अइसे माहौल बनगे। सब अपने ‘आप’ ल लेके लड़े लगिन।जेखर बर लड़त रहिन वो लइका ल तो भुलाये गे रहिन। बिक्रम गदगद कांपे लगिस, रोये लगिस “अss..। मम्मीss!” तब सब झन वोखर डाहर धियान देइन।  ” अरे अपन कुकरी लड़ई ल छोड़व। ये लइका ल देखौ ग।” सब समझाइन।सब चुप्प। ….। ” मैं बकथौं, चिल्लाथौं, गुसियाथौं ” हाथ जोरके  वरमा गुरुजी के पांव तरी घुलंड गे बिक्रम ” मैं गलत हौं सर, फेर मैं का करौं सर मोर घर म अइसने माहोल हे त ? अइसने सुनत -सुनत बड़े होये हौं अउ अइसने बनगे हौं।.. फेर मैं पढ़ना चाहत हौं सर। मोला माफ करदे सर। मोर टीसी झन काटौ सर।मैं तुहरे लइका आंव।अब अइसन गलती नइ होवै सर । मोला….।”  बिक्रम सुसके लगिस। कुरिया म सन्नाटा छागे।

तेजनाथ
बरदुली, पिपरिया,
जिला- कबीरधाम, मो-7999385846
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